Indian INR US Dollar Update : रुपया आज 3 दिसंबर को डॉलर के मुकाबले अपने सबसे निचले लेवल पर पहुंच गया. PTI के मुताबिक, रुपया 9 पैसे गिरकर डॉलर के मुकाबले 90.05 पर खुला. इससे पहले मंगलवार को यह 89.96 पर बंद हुआ था. घरेलू शेयर मार्केट में गिरावट और लगातार विदेशी फंड के निकलने से रुपये पर दबाव पड़ा है.

2025 में अब तक रुपया 5.16% कमजोर

2025 में अब तक रुपया 5.17% कमजोर हुआ है. 1 जनवरी को रुपया डॉलर के मुकाबले 85.70 पर था, और अब 90.05 पर पहुंच गया है.

रुपए की गिरावट से इंपोर्ट महंगा हो जाएगा

रुपये की गिरावट का मतलब है कि भारत के लिए इंपोर्ट महंगा हो जाएगा. इसके अलावा, विदेश में घूमना और पढ़ाई करना भी महंगा हो गया है. सोचिए कि जब रुपया डॉलर के मुकाबले 50 था, तो US में भारतीय स्टूडेंट्स को 50 रुपये में 1 डॉलर मिलता था. अब, 1 डॉलर के लिए स्टूडेंट्स को 89.79 रुपये खर्च करने होंगे. इससे स्टूडेंट्स की फीस, रहने की जगह, खाने और दूसरी चीज़ों का खर्च बढ़ जाएगा.

डॉलर ने रुपये पर दबाव क्यों डाला? क्या कारण हैं?

इंपोर्टर्स की तरफ से डॉलर की भारी डिमांड ने भी रुपये को नीचे धकेल दिया. फॉरेन पोर्टफोलियो इन्वेस्टर्स (FPIs) हाई वैल्यूएशन के कारण कंपनियों में स्टेक बेच रहे हैं, जिससे आउटफ्लो हो रहा है. ऑयल परचेज, गोल्ड परचेज, और कॉर्पोरेट्स और सेंट्रल गवर्नमेंट द्वारा रीपेमेंट ने भी दबाव बढ़ाया. ट्रेड टेंशन के कारण US के साथ बातचीत में रुकावट आ रही है. ट्रंप एडमिनिस्ट्रेशन द्वारा टैरिफ लगाने से बातचीत मुश्किल हो गई है.

मार्केट पर असर: सेंसेक्स और निफ्टी में गिरावट

रुपये में लगातार गिरावट का घरेलू इक्विटी मार्केट पर भी नेगेटिव असर पड़ा. कल, 2 दिसंबर को सेंसेक्स 503 पॉइंट्स गिरकर 85,138 पर बंद हुआ. निफ्टी भी 143 पॉइंट्स गिरकर 26,032 पर बंद हुआ.

एक्सपर्ट्स ने कहा: आउटफ्लो ने चिंता बढ़ाई

मार्केट एक्सपर्ट्स का कहना है कि रुपया दबाव में है क्योंकि FPIs की भारी खरीदारी से आउटफ्लो हो रहा है. हाई वैल्यूएशन से स्टेक सेल, तेल और सोने की खरीद और रीपेमेंट से आउटफ्लो हो रहा है. यह ट्रेंड शॉर्ट टर्म में जारी रह सकता है, लेकिन ट्रेड डील पर प्रोग्रेस से राहत मिल सकती है.

करेंसी की कीमत कैसे तय होती है?

डॉलर के मुकाबले करेंसी की वैल्यू में गिरावट को करेंसी डेप्रिसिएशन कहते हैं. हर देश के पास फॉरेन करेंसी रिज़र्व होता है, जिसका इस्तेमाल वह इंटरनेशनल ट्रांज़ैक्शन के लिए करता है. फॉरेन रिजर्व में बढ़ोतरी और कमी करेंसी की कीमत में दिखती है.

अगर भारत का फॉरेन एक्सचेंज रिज़र्व यूनाइटेड स्टेट्स के डॉलर अमाउंट के बराबर है, तो रुपये की वैल्यू स्टेबल रहेगी. अगर हमारा डॉलर रिज़र्व घटता है, तो रुपया कमजोर होगा; अगर इसका डॉलर रिज़र्व बढ़ता है, तो रुपया मजबूत होगा. इसे फ्लोटिंग रेट सिस्टम कहते हैं.