जिन हालातों में दुनिया के कई देश अपने ट्रेड आंकड़े समेट रहे थे, भारत ने वहां से उम्मीद की एक नई दास्तान लिख दी. बात हो रही है देश के बासमती चावल की…जिसने ईरान-इजरायल तनाव और मिडिल ईस्ट क्राइसिस के बावजूद न केवल अपने पांव मजबूती से जमाए रखे, बल्कि 1,923 करोड़ रुपये की रिकॉर्ड ग्रोथ के साथ वैश्विक बाजार में ‘खाद्य कूटनीति’ का सबसे सुगंधित चेहरा बनकर उभरा.

बासमती चावल ने कैसे रचा नया इतिहास?

वाणिज्यिक जानकारी और सांख्यिकी महानिदेशालय (DGCIS) द्वारा जारी किए गए ताजा आंकड़ों के मुताबिक, FY 2024-25 में बासमती चावल का कुल निर्यात: ₹50,312 करोड़ (लगभग $5.87 अरब) हुआ. FY 2023-24 की तुलना में ग्रोथ: ₹1,923 करोड़ की वृद्धि (3.97% का इजाफा) हुई. निर्यात की मात्रा: 60.65 लाख मीट्रिक टन (15.7% की वृद्धि हुई). यह न सिर्फ कृषि सेक्टर के लिए, बल्कि भारत की एग्रो डिप्लोमेसी के लिए भी एक बड़ा मील का पत्थर है.

 कहां से आई सबसे ज्यादा डिमांड?

भारत के बासमती चावल की सबसे ज्यादा डिमांड मिडिल ईस्ट और वेस्ट एशिया में रही, जो पिछले वर्षों की तरह इस बार भी बड़ी खरीदारी के लिए जिम्मेदार रहे.

  •  सऊदी अरब: ₹10,190.73 करोड़
  •  इराक: ₹7,201 करोड़
  •   ईरान: ₹6,374 करोड़
  •  यूएई: ₹3,089 करोड़
  •  यमन: ₹3,038.56 करोड़
  •  अमेरिका: ₹2,849 करोड़
  • इसके अलावा, UK, कुवैत, ओमान और कतर जैसे देश भी भारत के बासमती चावल के प्रमुख ग्राहक रहे.

क्या युद्ध की आंधी से कांपा था बासमती का बाजार?

ईरान-इजरायल टकराव के चलते वैश्विक सप्लाई चेन में कुछ समय के लिए बड़ा व्यवधान देखा गया. गुजरात के मुंद्रा और कांडला बंदरगाहों पर कई बासमती शिपमेंट फंस गए. शिपिंग इंश्योरेंस की कमी और समुद्री मार्गों में अस्थिरता ने कई निर्यातकों को झटका दिया. इससे बासमती चावल की कीमतों में भी अस्थायी गिरावट आई. लेकिन जैसे ही सीजफायर की घोषणा हुई और हालात सामान्य हुए, भारत के एक्सपोर्ट इंजन ने एक बार फिर रफ्तार पकड़ ली.

भारत सरकार की नीतियों का असर

बासमती चावल की इस सफलता के पीछे सिर्फ फसल नहीं, रणनीति भी है. सरकार की कुछ प्रमुख पहलें:

क्वालिटी कंट्रोल और पैकेजिंग में सुधार

नॉन-टैरिफ बैरियर्स पर डिप्लोमैटिक प्रयास

नए बाजारों में एग्रो-प्रमोशन ड्राइव्स

इन प्रयासों का ही नतीजा है कि इस साल भारत ने 154 देशों को बासमती चावल का निर्यात किया, जो पिछले वर्ष की 150 देशों की संख्या से ज्यादा है.

क्या भारत बनाए रखेगा लीड?

विश्व में लगातार बढ़ रही प्रीमियम राइस डिमांड, खासकर हेल्थ और क्वालिटी-कॉन्शियस कंज्यूमर्स के बीच, भारत के लिए एक सुनहरा अवसर है. लेकिन इसके साथ ही क्लाइमेट चैलेंज, पानी की कमी और अंतरराष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स की समस्या भी भविष्य की चुनौतियां हैं.

फिर भी, अगर मौजूदा ट्रेंड्स और पॉलिसी सपोर्ट बरकरार रहता है, तो आने वाले समय में भारत का बासमती चावल सिर्फ एक निर्यात उत्पाद नहीं, बल्कि ‘कृषि कूटनीति का ब्रांड एंबेसडर’ बन सकता है.