रायपुर. आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को इंदिरा एकादशी व्रत और श्राद्ध किया जाता है. इस एकादशी के व्रत को करने से अनेकों पापों को नष्ट करने में समर्थ माना जाता हैं. माना जाता है कि आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को भटकते हुए पितरों की गति सुधारने वाली एकादशी कहा जाता है. इस दिन भगवान शालीग्राम की पूजा का विधान है.

इस व्रत के दिन मिट्टी का लेप कर स्नान कर भगवान शालीग्राम की पूजा कर तुलसीपत्र चढ़ाया जाता है. इस व्रत में दस चीजों के त्याग का महत्व है जिसमें जौ, गेहू, उडद, मूंग, चना, मसूर दाल, प्याज और चावल ग्रहण नहीं करना चाहिए साथ ही इस दिन इन सभी वस्तुओं का दान करने का विधान है. ऐसा करने पर पितरों को यमलोक की यंत्रणा से मुक्ति प्राप्त होती है. पाप से बचना तथा हानि पहुचाने से बचना चाहिए.

व्रत की समाप्ति पर दान-दक्षिणा कर फलो का भोग लगाया जाता है. व्रत की रात्रि जागरण करने से व्रत से मिलने वाले शुभ फलों में वृद्धि होती है. शास्त्रों के अनुसार एकादशी तिथि के श्राद्धकर्म में ग्यारह ब्राह्मणों को भोजन करवाने का विधान है. सर्वप्रथम नित्यकर्म से निवृत होकर घर की दक्षिण दिशा में सफेद वस्त्र बिछाएं. पितृगण के चित्र अथवा प्रतीक हरे वस्त्र पर स्थापित करें.

पितृगण के निमिततिल के तेल का दीपक जलाएं, सुघंधित धूप करें, जल में चंदन और तिल मिलाकर तर्पण करें. चंदन और तुलसी पत्र समर्पित करें. इसके उपरांत ब्राहमणों को मखाने की खीर, पूड़ी, सब्जी, साबूदाने से बने पकवान, लौंग-ईलायची तथा मिश्री अर्पित करें. भोजन के बाद सभी को यथाशक्ति वस्त्र, धनदक्षिणा देकर उनको विदा करने से पूर्व आशीर्वाद लें.