हेमंत शर्मा, इंदौर। मध्य प्रदेश की इंदौर पुलिस में चल रहे भ्रष्टाचार, पक्षपात और अमानवीय व्यवहार की गूंज अब दिल्ली से लेकर बैंकॉक तक पहुंच चुकी है। जोन-1 के एडिशनल डीसीपी आलोक शर्मा के खिलाफ भारत की महामहिम राष्ट्रपति और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (बैंकॉक) को सीधी शिकायत भेजी गई है। शिकायतकर्ता ने ठोस सबूतों के साथ पुलिस महकमे की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए हैं। उनका आरोप है कि इंदौर में भ्रष्ट अफसरशाही की गठजोड़ के चलते निर्दोषों को न्याय नहीं मिल रहा और जो सवाल पूछ रहा है उसे खुलेआम धमकाया जा रहा है।

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जघन्य हत्या, 40 टूटी हड्डियां – लेकिन अफसरों को फर्क नहीं पड़ा!

सामाजिक कार्यकर्ता सुरेंद्र सिंह पवार पवार ने एडिशनल डीसीपी आलोक शर्मा के खिलाफ राष्ट्रपति और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को शिकायत भेजी गई है। शिकायत में सबसे गंभीर मामला आजाद नगर थाना क्षेत्र का है। जहां एक निर्दोष युवक उमेंद्र बघेल की हत्या कर दी गई। आरोप है कि एक कंस्ट्रक्शन कंपनी के परिसर में तैनात वेतनभोगी कर्मचारियों ने उस पर चोरी का झूठा आरोप लगाकर इतनी बेरहमी से पीटा कि उसकी 40 हड्डियां टूट गईं और उसकी मौत हो गई और कंपनी को पूरी तरह बेदाग छोड़ दिया। सिर्फ पांच स्थानीय लोगों पर केस दर्ज कर खानापूर्ति कर दी। क्या कंपनी ने इन पांच कर्मचारियों का थाने में कोई वेरिफिकेशन कराया था ? क्या कंपनी की जवाबदेही तय नहीं होनी चाहिए ?

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राष्ट्रपति और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार मंच से की आलोक शर्मा को पद से हटाने की मांग

इस पूरे मामले की शिकायत राष्ट्रपति महोदया, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग बैंकॉक तक भेजी है। शिकायतकर्ता सुरेंद्र सिंह ने मांग की है कि अतिरिक्त डीसीपी आलोक शर्मा को पद से हटाकर उनके पूरा कार्यकाल, विशेषकर बालाघाट जिले की पोस्टिंग की भी निष्पक्ष जांच की जाए।

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बुजुर्ग महिला से मकान छीनने की कोशिश, FIR में आरोपी का नाम तक नहीं

शिकायत में एक और मामला उल्लेखित है, जोन 1 क्षेत्र की एक बुजुर्ग महिला सरसिज द्विवेदी के 1990 में खरीदे गए मकान पर कब्जे की कोशिश की गई। मकान को तोड़कर कब्जा करने की धमकी दी गई, एफआईआर भी हुई लेकिन मुख्य आरोपी का नाम “अज्ञात” लिख दिया गया। पीड़ित परिवार आज भी मकान की मरम्मत नहीं कर पा रहा और आरोपी खुलेआम घूम रहा है।

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क्या इंदौर में अब अफसरशाही ‘न्याय’ तय करेगी ?

डीजीपी कैलाश मकवाना खुद 29 जून 2025 को इंदौर दौरे पर आए थे और उन्होंने अफसरों को हर शिकायतकर्ता की सुनवाई के निर्देश दिए थे। लेकिन जोन-1 के आलोक शर्मा जैसे अफसर इन आदेशों की धज्जियां उड़ा रहे हैं। इस पूरे प्रकरण ने इंदौर की पुलिस व्यवस्था पर गहरा सवाल खड़ा कर दिया है, क्या इंदौर में गरीब, पीड़ित और पत्रकारों को न्याय मांगने की भी इजाजत नहीं रही ? क्या अफसरशाही की ये बेलगाम मानसिकता लोकतंत्र को शर्मसार नहीं कर रही ?

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