हेमत शर्मा, इंदौर। एक ऐसा शहर जो अपनी तेजी से बढ़ती रफ्तार और विकास के लिए जाना जाता है, लेकिन अब यह शहर आत्महत्याओं की बढ़ती घटनाओं के कारण चर्चा में है। शुक्रवार सुबह एक और दिल दहलाने वाली खबर सामने आई। जब पीटीसी में पदस्थ नेहा शर्मा नामक सूबेदार ने गैजेटेड ऑफिसर हाउस की 7वीं मंजिल से कूदकर अपनी जान दे दी। यह पिछले तीन महीनों में इसी तरह की आत्महत्या का छठवां मामला है।
सूबेदार नेहा शर्मा की आत्महत्या ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि आखिर क्यों लोग अपनी जिंदगी से हार मानकर इस तरह खौफनाक कदम उठा रहे हैं। सुबह 5:30 बजे जब पूरा शहर अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में व्यस्त था, नेहा ने मौत को गले लगा लिया। पुलिस की शुरुआती जांच में पता चला है कि नेहा और उनके पति के बीच लंबे समय से विवाद चल रहा था। एक समय था जब नेहा ने परिवार की जिम्मेदारियों के चलते सीसीएल (चाइल्ड केयर लीव) ली थी, और यह छुट्टी 10 सितंबर को खत्म हो रही थी।
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पुलिस अधिकारी बता रहे हैं कि अगर नेहा चाहतीं, तो वह और भी छुट्टी ले सकती थीं, क्योंकि कानून में 2 साल तक की छुट्टी का प्रावधान है। सूबेदार की इस दर्दनाक घटना के पीछे जो सबसे बड़ा कारण उभर कर सामने आया है, वह है डिप्रेशन। पुलिस विभाग की महिला विशेषज्ञों का कहना है कि प्रेगनेंसी के बाद महिला पुलिसकर्मियों में डिप्रेशन का खतरा बहुत बढ़ जाता है। जब घर में जिम्मेदारियां और नौकरी का तनाव बढ़ जाता है, तो महिलाएं अक्सर मानसिक दबाव महसूस करती हैं। खासकर अगर परिवार, विशेषकर पति का सहयोग न मिले, तो यह मानसिक स्थिति और भी गंभीर हो जाती है। डिप्रेशन एक ऐसा अंधकार है, जो धीरे-धीरे व्यक्ति को अपनी चपेट में ले लेता है। नेहा की जिंदगी में भी यही हुआ होगा। शायद वह खुद भी इस मानसिक बोझ को समझ नहीं पाईं और आखिरकार इसे खत्म करने का यही तरीका उन्हें सही लगा।
3 महीने में आत्महत्या की 6 घटनाएं, डिप्रेशन का बढ़ता प्रकोप
इंदौर में पिछले तीन महीनों के भीतर हाईराइज बिल्डिंग से कूदकर आत्महत्या करने के कुल 6 मामले सामने आ चुके हैं। इन सभी मामलों में एक समानता है- डिप्रेशन। चाहे वह 14 साल की अंजलि हो, जिसने लसूडिया थाना क्षेत्र में अपोलो डीबी सिटी बिल्डिंग से कूदकर जान दे दी या टीसीएस की मैनेजर सुरभि, जिन्होंने बीसीएम हाइट्स से कूदकर आत्महत्या की। इन सबके पीछे एक ही कारण बार-बार उभर कर सामने आ रहा है- मानसिक तनाव और डिप्रेशन।
समाज की जिम्मेदारी- मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देना जरूरी
यह आत्महत्याओं का सिलसिला हमें सोचने पर मजबूर कर रहा है कि आखिर कहां कमी रह गई है। समाज के हर व्यक्ति की जिम्मेदारी है कि वे अपने आस-पास के लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान दें। यह समय है कि हम डिप्रेशन को समझें और इसे एक गंभीर बीमारी मानें। जो लोग इस मानसिक बीमारी से जूझ रहे हैं, उन्हें सिर्फ सहानुभूति नहीं बल्कि सहयोग और समर्थन की जरूरत है।
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खासकर परिवार के सदस्यों का साथ बहुत मायने रखता है। अगर नेहा को उनके परिवार का साथ मिला होता, अगर कोई उनके दर्द को समझ पाता, तो शायद आज यह दुखद घटना नहीं होती। पुलिस इस मामले की जांच कर रही है, और जल्द ही पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बाद अधिक जानकारी सामने आएगी। लेकिन जो सवाल हमेशा खड़ा रहेगा, वह यह है कि आखिर कब तक लोग अपनी जिंदगियों को इस तरह खत्म करते रहेंगे ? कब तक डिप्रेशन को हम नजरअंदाज करते रहेंगे ?
अपील
अगर आप या आपके परिचित किसी मानसिक तनाव से गुजर रहे हैं, तो तुरंत परिवार/घर वालों, दोस्त या रिश्तेदारों की मदद लें। आपकी जिंदगी अमूल्य है।
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