हेमंत शर्मा, इंदौर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत शुक्रवार को मध्य प्रदेश के इंदौर पहुंचे। जहां वे आरएसएस के ‘स्वर शतकम्’ कार्यक्रम में शामिल हुए। इस दौरान उन्होंने स्वयंसेवकों को संबोधित किया और बताया कि लाठी चलाना क्यों सीखना जरूरी है। भागवत ने यह भी कहा कि किसी भी मामले में हमारा देश पीछे रहने वाला नहीं है।

महाभारत में पांडवों ने युद्ध के समय घोष किया था- मोहन भागवत

इंदौर में आयोजित आरएसएस के ‘स्वर शतकम्’ कार्यक्रम में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने अपना संबोधन दिया। उन्होंने कहा कि एक साथ इतने स्वयंसेवक संगीत का प्रस्तुतिकरण कर रहे हैं, यह एक आश्चर्यजनक घटना है। हमारी रण संगीत परंपरा जो विलुप्त हो गई थी, अब फिर से लौट आई है। महाभारत में पांडवों ने युद्ध के समय घोष किया था, उसी तरह संघ ने भी इसे पुनः जागृत किया।

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उन्होंने आगे बताया कि “संघ जब शुरू हुआ, तब शारीरिक कार्यक्रमों के साथ-साथ संगीत की भी आवश्यकता थी। उस समय मिलिट्री और पुलिस से ही संघ ने संगीत सीखा। यह सब देशभक्ति के लिए किया गया।” भागवत ने यह भी कहा कि “हमारा देश दरिद्र नहीं है, हम अब विश्व पटल पर खड़े हैं। संघ के कार्यक्रमों से मनुष्य के सद्गुणों में वृद्धि होती है।

डंडा चलाने का बताया उद्देश्य

वहीं RSS प्रमुख मोहन भागवत ने बताया कि “डंडा चलाने का उद्देश्य झगड़ा करना नहीं है, बल्कि यह उस स्थिति के लिए है जब कोई हमारे सामने आकर गिर जाए, तो हम उसकी मदद कर सकें। लाठी चलाने वाले व्यक्ति को वीरता प्राप्त होती है, वह कभी नहीं डरता।” इस दौरान संघ प्रमुख ने स्वयंसेवकों को देशभक्ति और अपने कर्तव्यों को निभाने का संदेश भी दिया।

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दशहरा मैदान पर संघ का भव्य आयोजन

इंदौर के दशहरा मैदान पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का एक ऐतिहासिक और भव्य कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिसमें 20 हजार से अधिक स्वयंसेवकों ने भाग लिया। इस आयोजन में 1,000 घोष वादकों ने पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ अपनी कला का प्रदर्शन किया। कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण संघ प्रमुख मोहन भागवत का प्रेरणादायक संबोधन रहा, जिसमें उन्होंने भारतीय संस्कृति, राष्ट्रीय एकता और अनुशासन पर जोर दिया।

एक हजार घोष वादकों का सामूहिक प्रदर्शन

इस कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण 1,000 घोष वादकों का सामूहिक प्रदर्शन था। शंख, नगाड़ा, बांसुरी और ढोल जैसे पारंपरिक वाद्य यंत्रों की ध्वनि से पूरा दशहरा मैदान गूंज उठा। घोष वादन न केवल एक सांस्कृतिक प्रस्तुति थी, बल्कि यह अनुशासन और सामूहिकता का प्रतीक भी था। वादकों ने एक साथ तालमेल में प्रदर्शन कर यह संदेश दिया कि भारतीय परंपराओं में एकता और अनुशासन निहित है।

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मालवा प्रांत के 28 जिलों की सहभागिता

मालवा प्रांत के 28 जिलों से आए हजारों स्वयंसेवकों ने इस कार्यक्रम में हिस्सा लिया। कार्यक्रम में न केवल मालवा प्रांत, बल्कि देशभर के अनेक राज्यों से स्वयंसेवकों और संघ के वरिष्ठ पदाधिकारियों की उपस्थिति रही।

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