हेमंत शर्मा, इंदौर। मध्य प्रदेश के इंदौर में ऑटो डीलरों की सेटिंगबाजी का ऐसा खतरनाक खेल सामने आया है, जिसने पूरे सिस्टम की पोल खोल दी है।इंदौर के ऑटो डीलर दिल्ली से गाड़ियां लाकर यहां खुलेआम बेच रहे हैं। उससे भी बड़ा खेल यह है कि खरीदार के पास दिल्ली का एड्रेस प्रूफ हो या न हो, फिर भी गाड़ी दिल्ली के नंबर पर ही खरीदार के नाम ट्रांसफर करवा दी जा रही है। दिल्ली में कार ब्लास्ट का मामला सामने आने के बाद बड़े सवाल उठने लगे हैं।
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यह पूरा तंत्र इतना मजबूत और सेटिंग से चल रहा है कि कोई भी फर्जी दस्तावेज देकर दिल्ली RTO में अपने नाम पर गाड़ी ट्रांसफर करवा सकता है और इंदौर में बिना रोक-टोक दौड़ा सकता है। यह मामला अब सुरक्षा पर सीधे सवाल खड़ा कर रहा है। ऐसे में अगर कोई अपराधी या आतंकी इंदौर से फर्जी एड्रेस की मदद से गाड़ी खरीद कर दिल्ली के नंबर पर अपने नाम ट्रांसफर करवा ले तो उसका वास्तविक पता किसी राज्य की पुलिस के पास नहीं होगा। गाड़ी इंदौर में चलेगी, मालिक के खिलाफ मामला दिल्ली में दर्ज होगा और उसके पीछे असली चेहरा कोई नहीं पकड़ पाएगा।
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दिल्ली ब्लास्ट केस ने जो खतरा दिखाया, उसी ने इंदौर के इस सेटिंग सिंडिकेट पर रोशनी डाल दी है। गाड़ियों की इस फर्जी खरीद-फरोख्त में जिन दस्तावेजों की जरूरत होती है, वे सामान्य नियमों के हिसाब से सिर्फ उसी राज्य के वैध एड्रेस पर निर्भर करते हैं। लेकिन इंदौर में खेल बिल्कुल उल्टा चल रहा है। खरीदार चाहे किसी भी राज्य का हो, दिल्ली का कोई एड्रेस न हो, फिर भी दिल्ली RTO से उसके नाम पर ट्रांसफर करा दी जाती है। इंदौर के कई ऑटो डीलर्स इसमें पूरी तरह शामिल हैं और यह सेटिंग कई साल से चल रही है।
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गाड़ियों की खरीद सिर्फ कागजों का खेल बन चुकी है और असली खतरा यह है कि अपराधी इसी का फायदा उठाकर बड़े अपराध कर सकते हैं। सबसे बड़ा सवाल इंदौर RTO पर खड़ा होता है। शहर में दिल्ली, मुंबई, देहरादून और अन्य राज्यों की गाड़ियां इतनी बड़ी संख्या में चल रही हैं, लेकिन किसी भी वाहन का असली पता इन राज्यों में है ही नहीं। यह स्थिति साफ बताती है कि इंदौर RTO न सिर्फ बाहरी राज्यों की गाड़ियों पर ध्यान नहीं दे रहा, बल्कि इस पूरे खेल को अनदेखा करके अपराधियों के लिए रास्ता आसान कर रहा है।
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गाड़ियां दूसरे राज्यों में रजिस्टर्ड हैं, मालिक का पता फर्जी है, गाड़ी इंदौर में चल रही है, और सिस्टम अंधा बना हुआ है। दिल्ली ब्लास्ट के बाद यह पूरा तंत्र संदेह के घेरे में आ गया है। अब यह बात आम हो गई है कि इंदौर में गाड़ियों का कारोबार सिर्फ व्यापार नहीं, बल्कि सेटिंग, फर्जीवाड़ा और सुरक्षा को दांव पर लगाने वाला एक बड़ा नेटवर्क बन चुका है। इस पर कार्रवाई कब होगी, जवाबदेही कौन तय करेगा, यह सवाल अभी भी हवा में है। पर इतना साफ है कि अगर इस खेल पर तुरंत लगाम नहीं लगी, तो किसी भी दिन किसी फर्जी नाम पर खरीदी गई गाड़ी किसी बड़ी वारदात का हिस्सा बन सकती है।
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