हेमंत शर्मा, इंदौर। मध्य प्रदेश के इंदौर में रहने वाले मन्नालाल पाल का जीवन किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं। एक वक्त था जब उन्होंने सिनेमा हॉल में अमिताभ बच्चन की ‘रोटी, कपड़ा और मकान’ देखी और उसी दिन उनका जीवन बदल गया। उस फिल्म के बाद से मन्नालाल सिर्फ दर्शक नहीं रहे, बल्कि सदी के महानायक के सबसे समर्पित फैन बन गए। पिता का मकान टूटा तो नया घर बनाया और नाम रखा — एक घर का जलसा और दूसरे का‘प्रतीक्षा’, ठीक वैसे ही जैसे अमिताभ बच्चन का मुंबई वाला घर। शादी हुई तो पत्नी का नाम रखा जया, और जब बेटा हुआ तो नाम दिया अभिषेक। कहते हैं, किस्मत भी मानो अमिताभ की कहानी को उनके जीवन में उतारना चाहती थी, क्योंकि मन्नालाल और उनकी पत्नी जया की उम्र में भी वही 10 साल का अंतर है, जैसा अमिताभ और जया बच्चन के बीच है। 

 पेशे से ऑटो चालक हैं मन्नालाल पाल 

मन्नालाल पाल पेशे से ऑटो चालक हैं, पहले हम्माली का काम करते थे। पर उनके दिल में सिर्फ एक ही पौधा हर दिन और बड़ा होता गया अमिताभ के प्रति प्रेम का पौधा। उन्होंने अपने घर में सदी के महानायक का एक मंदिर बना रखा है, जहां वे पिछले 25 सालों से रोज सुबह और शाम आरती करते हैं। दीवारों पर अमिताभ की तस्वीरें, पोस्टर, पुराने फिल्मी संवाद और हर आरती में वही श्रद्धा, जो किसी देवता के प्रति होती है। मन्नालाल कहते हैं — “अमिताभ मेरे भगवान हैं, और उनकी फिल्में मेरी गीता हैं।”इतना ही नहीं, उन्होंने कई पत्र भी अमिताभ बच्चन को लिखे हैं और खास बात ये कि हर बार उन्हें जवाब भी मिला। यही उनके जीवन की सबसे बड़ी खुशी है। अब जब अमिताभ बच्चन अपना 83वां जन्मदिन मना रहे हैं, तो इंदौर के इस छोटे से घर में भी दीप जलेंगे, आरती होगी और “जय अमिताभ” के जयकारे गूंजेंगे।

एक बार अमिताभ बच्चन से मिलने की है ख्वाहिश 

मन्नालाल पाल का कहना है  “मैंने अपने घर का नाम ‘जलसा’ रखा है, ताकि मुझे हर रोज वो एहसास हो कि मैं अमिताभ के करीब हूं।” आज उनकी एक ही ख्वाहिश बाकी है, अमिताभ बच्चन से एक बार मिलना। वे कहते हैं “बस एक बार सामने बैठकर उनके पैर छू लूं, तो समझूंगा कि जीवन सफल हुआ। इंदौर के इस विनम्र ऑटो चालक की कहानी हमें सिखाती है कि सच्चा प्रेम न दूरी जानता है, न सीमा। कभी किसी महानायक के अभिनय ने किसी के जीवन में इतनी रोशनी भरी, जितनी शायद किसी चमत्कार ने भी नहीं भरी होगी। यह कहानी सिर्फ एक फैन की नहीं — यह आस्था, समर्पण और प्रेम की कहानी है, जहां सिनेमा ने किसी के दिल में भगवान की जगह ले ली…और इंदौर के मन्नालाल पाल ने अपने जीवन को बना दिया ‘रोटी, कपड़ा और मकान’ से लेकर ‘प्रतीक्षा’ और ‘जलसा’ तक का सच्चा सफर।

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