हेमंत शर्मा, इंदौर। मध्य प्रदेश की इंदौर पुलिस एक बार फिर सवालों के घेरे में है। परदेशीपुरा थाने पर पदस्थ देवेंद्र कुशवाहा का एक और चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जिसमें आरोप है कि पिस्तौल के साथ पकड़े गए दो आरोपियों को मोटी रकम लेकर थाने से ही छोड़ दिया गया, जबकि एक गरीब युवक को झूठे केस में फंसा दिया गया। पुलिस पर सीधा आरोप है कि उसने अपराधियों से सौदा कर कानून को बेच दिया और एक ईमानदार मजदूर को हथियारों के केस में फंसा दिया।

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जानकारी के अनुसार, पिस्टल के साथ गिरफ्तार किए गए आरोपी राहुल ठाकुर और युवराज भट्ट को थाने लाया गया था। दोनों के पास से अवैध हथियार बरामद होने की बात सामने आई थी, लेकिन बताया जा रहा है कि 80 हजार रुपये की डील होते ही दोनों को बिना किसी कानूनी कार्रवाई के छोड़ दिया गया। सवाल यह उठता है कि जब पुलिस के पास हथियारों के साथ पकड़े गए आरोपी थे, तो फिर उन्हें छोड़ने का अधिकार किसने दिया। क्या कानून सिर्फ गरीबों के लिए है और पैसे वालों के लिए रास्ता अलग बना दिया गया है। हालांकि फरियादी का यह दावा है कि यह पूरा घटनाक्रम थाने में लगे सीसीटीवी कैमरे में कैद हो चुका है ऐसे में अगर जांच होती है तो थाने लगाए गए आरोपियों को कैसे छोड़ा गया इसकी अगर जांच हो तो कई पुलिसकर्मी कटघरे में खड़े हो जाएंगे

इसी मामले में दीपक कुशवाहा नाम का एक युवक भी पुलिस की कार्रवाई का शिकार हुआ। दीपक एक गरीब परिवार से आता है और पुताई का काम कर अपनी रोजी-रोटी चलाता है। पुलिस रात के समय उसके घर पहुंची और बाहर चेकिंग की। इस पूरी कार्रवाई का सीसीटीवी फुटेज सामने आया है, जिसमें साफ दिख रहा है कि दीपक के पास से कोई चाकू, कोई पिस्तौल और न ही कोई आपत्तिजनक वस्तु बरामद हुई थी। फुटेज में साफ नजर आता है कि घर के बाहर की गई तलाशी में कुछ भी गलत नहीं मिला।

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इसके बावजूद पुलिस दीपक को थाने ले गई और आरोप है कि थाने पहुंचने से पहले ही रास्ते में उस पर चाकू रखकर 25 आर्म्स एक्ट में मामला दर्ज कर दिया गया। यानी जो युवक अपने घर के बाहर बेगुनाह साबित हो चुका था, उसे थाने के रास्ते में अपराधी बना दिया गया। सवाल यह है कि अगर मौके पर कुछ नहीं मिला, तो फिर थाने पहुंचते-पहुंचते हथियार कहां से आ गए?

इस घटना के बाद पूरे इलाके में गुस्से का माहौल है। लोगों का कहना है कि परदेशीपुरा पुलिस अपराध रोकने की जगह खुद अपराध गढ़ने का काम कर रही है। जिन लोगों ने पैसे दिए, वे खुले घूम रहे हैं और जिस गरीब ने एक पैसा भी नहीं दिया, वह जेल की राह देख रहा है। यह न सिर्फ पुलिस की छवि पर दाग है बल्कि पूरी व्यवस्था की विफलता भी है।

अब यह मामला पुलिस कमिश्नर के पास पहुंच चुका है और लिखित शिकायत भी दी जा चुकी है। मांग की जा रही है कि इस पूरे प्रकरण की निष्पक्ष जांच हो, सीसीटीवी फुटेज की फोरेंसिक जांच कराई जाए और जिसने रिश्वत लेकर आरोपियों को छोड़ा तथा निर्दोष को फंसाया उसके खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई हो। सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या यह सब अकेले एक पुलिसकर्मी कर रहा था या फिर पूरी व्यवस्था इस खेल में शामिल है।

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परदेशीपुरा थाना अब संदेह के घेरे में है। अगर समय रहते सच्चाई सामने नहीं आई तो लोगों का पुलिस से भरोसा पूरी तरह उठ जाएगा। क्योंकि जब कानून के रक्षक ही कानून तोड़ने लगें, तब आम आदमी किसके पास जाए। यह सिर्फ दीपक की लड़ाई नहीं है, बल्कि हर उस गरीब की कहानी है, जिसे कानून के नाम पर डराया जाता है और पैसे के दम पर कुचला जाता है। अब देखना होगा कि पुलिस कमिश्नर इस मामले में कार्रवाई करते हैं या फिर यह मामला भी फाइलों में दफन हो जाएगा।

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