हेमंत शर्मा, इंदौर। किराये के लालच और पुलिस की कमजोर मॉनिटरिंग ने एक बार फिर शहर की सुरक्षा व्यवस्था की परतें उधेड़कर रख दी हैं। दो दिन पहले रेजीडेंसी इलाके से 15 लाख रुपये की कोकीन के साथ पकड़ी गई अफ्रीकन युवती लिंडा ओडियो कोटे के मामले की गर्मी अभी ठंडी भी नहीं हुई थी कि एमआईजी थाना क्षेत्र से एक और चौंकाने वाला खुलासा सामने आया है। शहर में एक विदेशी नागरिक पिछले 27 साल से अवैध रूप से रह रहा था और पुलिस को इसकी भनक तक नहीं लगी।
पुलिस की खामोशी और खुफिया विभाग की निष्क्रियता
शिव शक्ति नगर में रहने वाले मकान मालिक शेखर कुशवाह ने किराए के लालच में जिस व्यक्ति को वर्षों पहले ठहराया था, वह केनिया का रिचर्ड एस. मायका निकला। हैरानी की बात यह है कि इस विदेशी नागरिक के पास ना पासपोर्ट है और ना ही वीजा की वैधता। जांच में सामने आया कि रिचर्ड का वीजा वर्ष 1998 में ही समाप्त हो चुका था, लेकिन इसके बाद भी वह इंदौर में आराम से रह रहा था। यह सिर्फ मकान मालिक की गैर जिम्मेदारी नहीं, बल्कि पुलिस की खामोशी और खुफिया विभाग की निष्क्रियता का भी बड़ा प्रमाण है।
फेसबुक प्रोफाइल पर हिंसा भड़काने वाले वीडियो
रिचर्ड के सोशल मीडिया अकाउंट ने मामले को और गंभीर बना दिया है। उसके फेसबुक प्रोफाइल पर हिंसा भड़काने वाले वीडियो, खूनी पोस्टें और उग्र कंटेंट भरे पड़े हैं। हजारों विदेशी फॉलोअर्स हैं, लेकिन उसकी फ्रेंडलिस्ट में एक भी इंदौर का नागरिक नहीं है, जो साबित करता है कि वह गुपचुप तरीके से शहर में लंबे समय से एक्टिव था। सवाल उठता है कि इतने वर्षों तक इस व्यक्ति ने कैसे मोबाइल नंबर बनवाया, किन दस्तावेजों का उपयोग किया और आखिर किस व्यवस्था ने उसे खुली छूट दी।
वीजा 30 जून 1998 को समाप्त हो चुका
सूत्र बताते हैं कि साल 2018 में एमआईजी पुलिस के एक PSI ने रिचर्ड को पकड़कर पूछताछ भी की थी, जिसमें यह स्पष्ट हुआ था कि उसका वीजा 30 जून 1998 को समाप्त हो चुका है। यह जानकारी होने के बावजूद उसे शहर में रहने दिया गया, जो पुलिस और खुफिया विभाग दोनों की लापरवाही को बेनकाब करता है। यह वही इंदौर है जहां स्टूडेंट वीजा से लेकर टूरिस्ट वीजा पर आने वाले विदेशी अपराधियों की संख्या लगातार बढ़ रही है, लेकिन उनकी मॉनिटरिंग केवल कागजी कार्रवाई बनकर रह गई है।
5 से 7 साल की कठोर सजा और भारी जुर्माने का प्रावधान
हाईकोर्ट एडवोकेट कृष्ण कुमार कुन्हारे के मुताबिक पहले ऐसे मामलों में फॉरेनर्स एक्ट 1946 के तहत कार्रवाई होती थी, लेकिन अब लागू इमिग्रेशन फॉरेनर्स एक्ट 2025 में अवैध रूप से रहने पर पांच से सात साल की कठोर सजा और भारी जुर्माने का प्रावधान किया गया है। वहीं हाईकोर्ट एडवोकेट डॉ. रूपाली राठौर का कहना है कि FRRO के पास ऐसे अवैध ठहराव पर निरीक्षण, जांच, कार्रवाई और डिपोर्टेशन की पूरी संवैधानिक शक्तियां हैं, लेकिन इनका उपयोग तभी प्रभावी होगा जब स्थानीय पुलिस समय पर जानकारी दे और सत्यापन सिस्टम सही तरीके से काम करे।
शहर को अंदर तक असुरक्षित कर देते
रिचर्ड के मामले ने एक और गंभीर शक पैदा कर दिया है कि क्या इंदौर में और भी विदेशी इसी तरह बिना दस्तावेजों के नहीं रह रहे? क्या किसी ने इस दौरान आधार, वोटर आईडी, ड्राइविंग लाइसेंस या अन्य लाभकारी दस्तावेज बनवा लिए होंगे? क्या पुलिस बीट सिस्टम केवल औपचारिकता बनकर रह गया है? और सबसे बड़ा सवाल—क्या इस तरह की ढिलाई शहर की सुरक्षा के लिए खतरा नहीं? देशभक्ति और राष्ट्रीय सुरक्षा पर बनी कई फिल्मों में दिखाया गया है कि स्लीपर सेल कैसे आम नागरिक की तरह सालों तक सामान्य जीवन जीते हुए मौके का इंतजार करते हैं। और जब सुरक्षा एजेंसियां ढिलाई बरतती हैं, तब ऐसे ही मामले शहर को अंदर तक असुरक्षित कर देते हैं।
व्यवस्था की लापरवाही का आईना
यह पूरा मामला साफ करता है कि अब सिर्फ किरायेदार का नाम दर्ज कर देना काफी नहीं है, बल्कि दस्तावेजों का कड़ा सत्यापन और पुलिस तथा FRRO की संयुक्त निगरानी अनिवार्य हो चुकी है। शहर में रहने वाले विदेशी नागरिकों का क्षेत्रवार सत्यापन जरूरी हो गया है और किराए पर जगह देने वाले मकान मालिकों पर भी स्पष्ट कार्रवाई तय होनी चाहिए। इंदौर की सुरक्षा अब इंतजार नहीं कर सकती, इस बार मामला एक विदेशी का नहीं, बल्कि व्यवस्था की लापरवाही का आईना है।
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