जगदलपुर। बस्तर की प्राणदायनी इंद्रावती नदी को बचाने के लिए बुधवार से पदयात्रा की शुरुआत कर दी गई है. सुबह 5ः30 बजे जगदलपुर स्थित मां दंतेश्वरी मंदिर के दर्शन उपरांत नगर के जागरूक जनता बस में सवार होकर छत्तीसगढ़-ओडिसा सीमा स्थित भेजापदर ग्राम पहुंचे, यहीं इंद्रावती नदी छतीसगढ़ में प्रवेश करती है, स्थानीय ग्रामीणों के साथ नगरवासियों ने अभियान की शुरुआत इसी नदी तट से की इंद्रावती बचाओ, बस्तर बचाओ के नारे के साथ पदयात्रा नदी के बीचों-बीच रेत और कटीले पेड़ पौधों के रास्ते होते हुए आगे बढ़ी, नदी किनारे पडने वाले गांव के लोगों ने जगह-जगह पदयात्रियों का स्वागत किया, प्रत्येक गांव के लोग यात्रा में जुड़ते चले गए और अगले गांव तक पहुंचे, इसी तरह आने वाले गांव के लोग यात्रा में शामिल होते गए, यात्रा के प्रथम दिन ग्राम भेजापदर से उपनपाल तक कुल 5 किलोमीटर की यात्रा तय की गई।
अगले दिन गुरुवार को यात्रा की शुरुआत यहीं से की जाएगी, पदयात्रियों ने कहा कि बस्तर की प्राणदायनी इंद्रावती नदी को बचाने के लिए लगातार 10 से 12 दिनों तक चित्रकूट तक पैदल यात्रा किया जाएगा, इस बीच लोगों का जन समर्थन भी यात्रा को प्राप्त हो रहा है.बस्तर के लोगों ने बताया इंद्रावती का कम होता जलस्तर भविष्य में जल संकट में तब्दील हो सकता है.अगर अभी वक्त रहते इसे बचाया नहीं गया तो आने वाले भविष्य में इंद्रावती नदी किताबों में देखने और कहानियों में सुनने मिलेगी, और इसका अस्तित्व खत्म हो जाएगी, पैदल यात्रियों ने कहा कि उनके यात्रा का उद्देश्य दोनों राज्य सरकारों का ध्यान आकर्षित कराना है। ताकि कातीगुड़ा डेम से उड़ीसा सरकार से हुये अनुबंध के तहत पानी बस्तर को दें.क्योंकि बस्तर में एकमात्र नदी इंद्रावती है जो बस्तर के लोगों को पानी उपलब्ध कराती है। साथ ही जगदलपुर संभाग मुख्यालय में पेयजल का सबसे बड़ा स्रोत इंद्रावती नदी ही है.दोनों सरकारों पर दबाव बनाने के साथ-साथ जोरा नाला में अधूरे स्ट्रक्चर निर्माण को पूरा कराना भी उद्देश्य है.
पदयात्री योगेंद्र पांडे ने कहां की इंद्रावती नदी बस्तर की जीवन है और इसे सही समय और सही ढंग से नहीं बचाया गया तो आने वाले समय इंद्रावती हमें देखने को नहीं मिलेगी,सरकार को इस ओर ध्यान देना होगा,उर्मिला आचार्य ने कहा कि यह आंदोलन गांधीवादी तरीके से की जा रही है। सत्याग्रह की तरह हम इसे देख रहे हैं.जमीन से जुड़े कार्यकर्ता जिन्हें यह पता है कि पानी की कीमत क्या है वे लोग आज नदी के मुहाने और नदी के बीच में चल कर नदी बचाने सत्याग्रह कर रहे हैं.यह हमारा संकल्प है। सर्व आदिवासी समाज के अध्य्क्ष दशरथ कश्यप ने कहा कि नदी किनारे बसे लोगों में काफी दहशत है वह इसलिए कि अगर नदी सूख जाएगी तो उन्हें उनके खेतों की सिंचाई और निस्तारी केलिये पानी कहां से मिलेगी,उनकी दैनिक उपयोग के लिए पानी कहां से लाएंगे इसलिए ग्रामीणों के साथ-साथ बस्तर को बचाने के लिए इंद्रावती नदी में पानी का आना आवश्यक है।
बारिश के अलावा ग्रीष्म काल में भी इंद्रावती नदी में पानी हो इसलिए इस आंदोलन की शुरुआत हुई है जो मांग पूरी होने तक जारी रहेगी। पदयात्री किशोर पारेख ने बताया कि इंद्रावती को बचाने के लिए चरणबद्ध आंदोलन किया जा रहा है। नदी की स्थिति काफी दयनीय हो चुकी है और सरकार को इस ओर का ध्यानाकर्षण करना ही उनका उद्देश्य है। नदी में पानी कम और मैदान ज्यादा नजर आने लगा है। इसलिए उक्त आंदोलन प्रतिदिन सुबह शुरू होगी और 5 किलोमीटर तक यात्रा चलती रहेगी यह यात्रा चित्रकूट में संपन्न होगी, पदयात्री संपत झा ने कहा कि बस्तर की प्राणदायिनी नदी केवल बस्तर के लिए ही नहीं उन जीव जंतुओं के लिए भी है जो गर्मी के वक्त विपरीत परिस्थिति से गुजरते है। भविष्य में अगर जल की कमी होगी तो इंसानों के साथ साथ जीव-जंतु भी इसकी चपेट में आएंगे बेहतर होगा कि सरकारें इस ओर ध्यान दें ताकि बस्तर की आने वाली पीढ़ी इंद्रावती के जल का उपयोग कर सके। पर्यावरणविद हेमंत कश्यप ने इस दौरान कहा की नदी को बचाने के साथ-साथ प्रत्येक गांव में वृक्षारोपण करने की भी आवश्यकता है। वृक्षारोपण करने से लोगों को राहत तो मिलेगी ही इससे पर्यावरण को भी संतुलित किया जा सकता है.बेहतर होगा कि संबंधित विभाग भी इस ओर ध्यान दें।
पद्मश्री धर्मपाल सैनी ने कहा कि वे नदी को बचपन से देखते आ रहे हैं इस तरह की विकराल स्थिति कभी निर्मित नहीं हुई। बस्तर में पानी आए इसके लिए आंदोलन के अलावा सरकारों को चेताना भी जरूरी है क्योंकि आने वाला कल की तस्वीर इंद्रावती नदी ही साफ कर सकती है और इसी नदी के भरोसे बस्तर का जनमानस है। पदयात्रा में शामिल अनिल लुंकड़ ने कहा कि हमें एकजुटता के साथ इंद्रावती को बचाने के लिए लड़ाई लड़ना होगा शासन स्तर पर इस ओर ध्यान जाए इसके लिए वृहद आंदोलन की आवश्यकता है पदयात्रा के बाद बड़े पैमाने पर सरकार का ध्यानाकर्षण कराना अतिआवश्यक है। बुधवार से शुरू हुई पदयात्रा में माता रुक्मणी सेवा संस्थान डिमरापाल के दो दर्जन से अधिक बच्चे, शहर के युवा, पुरुष और बड़ी संख्या में महिलाएं शामिल हुई।