रायपुर. छग राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग ने द ओरियेंटल इंश्योरेंस कंपनी चांपा शाखा के विरूद्ध प्रस्तुत परिवाद में बीमा कंपनी को अनुचित व्यापार प्रथा एवं सेवा में कमी का दोषी पाते हुए फैसला सुनाया. न्यायमूर्ति गौतम चैरड़िया ने बीमा कंपनी के विरूद्ध आदेशित किया कि बीमा कंपनी परिवादी को बीमा दावा के रूप में 85,71,271 रुपए, परिवाद प्रस्तुति दिनांक 24.12.2019 से 06 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज सहित भुगतान करेगा. बीमा कंपनी परिवादी को वाद व्यय के रूप में 15,000 रुपए का भुगतान करेगा.
परिवादी मे. श्री श्याम फूड प्रोडक्ट्स द्वारा उनके ग्राम-बनारी, नैला स्थित औद्योगिक परिसर के लिए बीमा आवरण द ओरियेंटल इंश्योरेंस कंपनी चांपा से लिया था. उक्त परिसर में दिनांक-04.05.2016 को आगजनी की घटना हुई जिसमें परिवादी कंपनी को अत्यधिक क्षति हुई जिसकी क्षतिपूर्ति के लिए बीमा कंपनी के समक्ष दावा प्रस्तुत किया गया था. बीमा कंपनी ने तत्काल प्रारंभिक अन्वेषक नियुक्त कर घटना की जाँच कराई. इसके बाद सर्वेयर नियुक्त किया गया, जिससे प्रारंभिक अन्वेषण कराने के उपरांत अंतिम सर्वे कराई गई. सर्वेयर ने अपने अंतिम सर्वे रिपोर्ट में 85,71,271 रुपए की क्षति का आकलन करते हुए बीमा कंपनी के समक्ष अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत किया था, किंतु बीमा कंपनी ने पुनः अन्वेषक जे. बशीर को नियुक्त कर पूर्व सर्वेयर की रिपोर्ट एवं दस्तावेजों के आधार पर प्रकरण की जांच करने कहा, जिसने बीमा दावा पर आपत्तियां जताते हुए अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत किया.
बीमा कंपनी द्वारा पुनः एक अन्य अन्वेषक नियुक्त कर प्रतिवेदन मांगी गई जिसने पूर्व अन्वेषक जे. बशीर के प्रतिवेदन को अनुचित बताया. अंततः बीमा कंपनी द्वारा अन्वेषक जे. बशीर के प्रतिवेदन पर कार्यवाही करते हुए दावा भुगतान करने से इंकार कर दिया गया, जिसके विरूद्ध परिवादी ने छग राज्य उपभोक्ता आयोग के समक्ष सर्वेयर द्वारा आकलित क्षतिपूर्ति राशि के भुगतान के आदेश पारित करने की प्रार्थना के साथ परिवाद प्रस्तुत किया. विरूद्ध पक्षकार बीमा कंपनी ने अन्वेषक की रिपोर्ट पर जोर देते हुए अपना पक्ष रखा और व्यक्त किया कि अन्वेषक जे. बशीर ने जो आपत्तियां इंगित की है वह नियमानुसार व बीमा शर्तो के अनुसार था जिसके आधार पर बीमा दावे का भुगतान नहीं करना उचित था एवं ऐसा करने में बीमा कंपनी द्वारा कोई अनुचित व्यापार प्रथा अथवा सेवा में कमी कारित नहीं की गई है. अतः परिवाद सव्यय निरस्त किया जाए.
छग राज्य उपभोक्ता आयोग ने परिवाद की सुनवाई के दौरान प्रस्तुत दस्तावेजों के आधार पर यह पाया कि प्रारंभिक अन्वेषक, सर्वेयर जिसने प्रारंभिक अन्वेषण के बाद अंतिम सर्वे रिपोर्ट भी प्रस्तुत किया. उसके पश्चात् अन्वेषक जे. बशीर को नियुक्त किया गया तथा अंत में बीमा कंपनी द्वारा एक अन्य अन्वेषक को नियुक्त कर प्रकरण में जांच प्रतिवेदन मांगी गई, जिसे आईआरडीए की गाईडलाईन एवं बीमा अधिनियम के प्रावधानों के प्रतिकूल मानते हुए यह मत दिया गया कि यदि बीमा कंपनी को सर्वेयर की रिपोर्ट पर कोई आपत्ति थी तो वांछित बिन्दुओं पर संबंधित सर्वेयर से स्पष्टीकरण या अतिरिक्त प्रतिवेदन की मांग किया जा सकता था अथवा अन्य सर्वेयर की नियुक्ति के लिए बीमा अधिनियम एवं निर्धारित प्रक्रिया का पालन करते हुए बढ़ सकते थे, किंतु वे निर्धारित प्रक्रिया का पालन न करते हुए एक के बाद एक अन्वेषक एवं सर्वेयर की नियुक्ति करते रहे जो उचित नहीं था. जबकि बीमा कंपनी द्वारा नियुक्त अंतिम अन्वेषक ने पूर्व अन्वेषक जे.बशीर के प्रतिवेदन, जिसके आधार पर बीमा दावा खारिज किया गया था कि आपत्तियों को अनुचित बताया था. बीमा कंपनी ने सर्वेयर के अंतिम रिपोर्ट में आकलित क्षतिपूर्ति राशि के संबंध में कोई आपत्ति नहीं की थी.
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