रायपुर. कथाकारप्रिय आत्मीय महानुभाव नवरात्रि पर्व की शुभकामनाएं आपकी सेवा में प्रस्तुत है सप्त सुमनो की श्रंखला का प्रथम सुमन
या देवी सर्व भूतेषु रुपेण संश्रिता भौतिक वादिता की चकाचौंध एवं उसके गहरे संक्रमण से सनातन मान्यातएं दुर्बल हुई है। आज हम ऊपर के समृद्ध दिखाई देते है पर आनंद से खोखले हो गये है। हममें आलस्य निशशक्ताएवं प्रमाद आया है। इस बौद्धिक शैथिल्य को आध्यात्मिक ऊर्जा की नितांत आवश्यकता है। इसलिए शक्ति पर्व की अलग महिमा है अलग प्रभाव है।
॥ या देवी सर्व भुतेषु शक्ति रूपेण संश्रिता ॥
श्री राम चरित मानस की दृष्टि से मां के इस स्वरूप की दिव्यता कॊ समझने का प्रयास करेंगे।
जब आसुरी संस्कॄति ने भारत की ऋषि संस्कॄति कॊ प्रभावित किया। तब श्री राम के अवतार की भूमिका बनी। पूछा गया प्रभु
॥ असुर मार थापहि सुरन्ह॥
का संकल्प कैसे पूरा होगा। उन्होने उत्तर दिया मै अंशो के सहित अवतार लूंगा साथ मे मॆरी शक्ति माया के रुप मे मेरे साथ इस अभियान मे रहेगी।
॥आदिशक्ति जेहि जग उप जाया”
सो अवतरहि मोर यह माया ॥
तात्पर्य माता सीता ही आदि शक्ति स्वरूपा है। इस महाशक्ति के उदार स्वरूप प्रभाव कॊ समझने का प्रयास करेंगे। श्री राम एवं माता शक्ति स्वरूपा के सम्बंध श्री राम चरित मानस मे लिखा
॥ श्रुति सेतु पालक राम तुम ,
जगदीशमाया जानकी जो सृजति पालति सहरति रुख पाई कृपा निधान की. तात्पर्य रा़म के रुख का नाम ही सीता है। मनीषियों के अनुसार इस राष्ट्र के शील , संयम एवं चरित्र का नाम ही राम है। सृजन पालन संहार ले रुप मे आदि शक्ति माता सीता ही है।आदि शक्ति स्वरूपा सीतामानस मे 2बार दांव पर लगाई गई। पहले पिता जनक ने घोषणा की कि जो शिव जाप का खंडन कर देगा। सीता उनकी हो जायेगी। देश देशांतर के राजा स्वयंवर मे आये। परंतु धनु भंग करने मे असफल रहे। जनक जी को विषाद भी हुआ। माता सीता ने धनुष के पास जाकर कहा।
॥ सकल सभा के भई मति भोरी
अब मोहि शंभु चाप गति तोरी॥
शिव पिनाक ने माता शक्ति स्वरूपा सीता से पूछा हे मां मेरे लिये क्या आज्ञा है। माता ने कहा श्री राम जब धनुष तोड़ने आये तो तुम हल्के हो जाना। धनुष ने पूछा मां कितना हल्का हो जाऊं 50. ग्राम.100 ग्राम जितना आप कहे। माता सीता को पुष्प वाटिका वह दृश्य स्मरण हो आया श्री राम का श्यामल दिव्य स्वरूप ललाट पर प्रश्वेद की बूंदे और हाथ मे फूल का दोना था। माता सीता ने सोचा जिन्हे सितंबर के माह मे फूल तोड़ने मे पसीना आता है 10 ग्राम भी नही उठा पाये तो? गोस्वामी जी॥ होहु हरूव रघुपतिहि निहारी॥
श्री राम जितना उठा सके तुम उतना हल्के हो जाना।
जब गुरु विश्वामित्र ने श्री राम को शिवचाप के खंडन की अनुमति दी तो उन्होने शिव चाप का संबोधन ही बदल दिया। उन्होने कहा॥ उठहु राम भंजऊ भव चापा॥ श्री राम गुरु आज्ञा से सहज रुप से खड़े हो गये। परंतु सृजन पालन संहार तो बिना शक्ति के संभव नही है।सबसे पहले अपने रुख को अवगत कराते हुए माता सीता की तरफ़ देखा।
॥ सियहिं बिलोकि तकेउ धनु कैसे गरुड़ चितय लघु व्यालहि जैसे॥
जैसे गरुड़ को देखकर सांप सिकुड़ जाता है। सिमट जाता है वैसे ही धनुष छोटा हो गया। इसका आध्यात्मिक एवं तात्विक भाव यह भी हो सकता है। की आध्यात्मिक शक्ति के तेज और प्रखर प्रभाव के सामने भौतिक वादिता निस्तेज हो जाता है।उसका विस्तार सिमट जाता है। आदि शक्ति की कृपा से ही भव चाप का खंडन संभव है।
॥ या देवी सर्व भुतेषु शक्ति रूपेन संश्रिता॥
दूसरी बार एक दास स्वरूप दत्तक पुत्र अंगद ने भट महाभट सुमट दारुण भट से भरे हुए दरबार मे दांव पर लगा दिया। जब विराट राष्ट्र रूपी राम आदि शक्ति संस्कॄति स्वरूपा माता का अपमान किया। तब क्रोधित होकर अंगद ने ललकारते हुए कहा लंकेश तुम्हे अपने भौतिक वादी आयुधो पर इसके संग्रह पर बहुत अभिमान है। तुम अब देखो भारतीय आध्यात्मिक शक्ति के तेज का प्रभाव कैसा होता है। तुम अनुभव करोगे भारतीय आध्यात्मिक शक्ति की जड़ कितनी गहरी है। तेरा यह भौतिक वादी उपलब्धियों का ताशमहल एक हल्के से झोंके से भर भरभराकर गिर जायेगा। जोमेरे पैर को मॆरी संस्कॄति निष्ठा से रोपित चरण को थोड़ा भी हिला देगा मै सीता को हार जाऊंगा।
॥जो मम चरण सकेसि सठ टारी फिरिहै राम सीता मै हारी॥
सब योद्धा प्रयास करके हार गये।रावण आश्चर्य मे पड़ गया। वह स्वयं अंगद के पैर को पकड़ने के लिए जैसे ही झुका अंगद ने कहा एक राष्ट्र सेवक के चरणों मे झुकने से तेरा प्रायश्चित नही होगा। तुझे इस राष्ट्र के शील संयम और चरित्र के सामने अपना सिर झुकाना होगा तब तेरी समस्या का समाधान होगा। प्रश्न यह है की अंगद का पैर इतना वजनदार कैसे हो गया। इतनी शक्ति उसमे कहा से आई। धनुष को हल्का किसने किया। और अंगद के पैर को शक्तिशाली वजनदार किसने किया। मनीषियों ने उत्तर दिया॥ गुरुह सुमेरु रेनु सम जाही राम कृपा करि चितवा जाही॥
तात्पर्य जिसके पास शील संयम और चरित्र होता है। जिसके रुख से आदि शक्ति का भाव प्रसाद मिलता है। संसार की बड़ी से बड़ी प्रकृति आपदा चाहे वह सुमेरु पर्वत के समान वजनदार क्यों ना हो वह राम की कृपा स्वरूपा आदिशक्ति की करुणा से रेत कण के समान हो जाती है। इसलिए इतने आक्रमणों के बाद भी भारत भारत है। उसके पीछे उसकी आध्यात्मिक शक्ति है।
॥ तृणते कुलिश कुलिश तृण करहि तासु दूत पन कह किमि टरही॥
कुलिश के समान व्रज धनुष को हल्का तृण के समान कर दिया।और तृण के समान अंगद के पैर को वज्र के समान वजनदार करने का प्रबल,प्रचंड सामर्थ्य भारत की आध्यात्मिक शक्ति मे है। शक्ति रामजी के पास थी। और रावण सिद्धियों से शक्ति सम्पन्न था। जो शक्ति शील के नियंत्रण मे होती है वह राम की शक्ति है। ऊदण्ड, अनियंत्रित दिशा हीन शक्ति रावण की शक्ति है। अतः॥ आदिशक्ति जेहि जग उपजाया, सो अवतरहि मोर यह माया॥ या देवी सर्व भुतेषु शक्ति रूपेन संश्रिता.
मानस भागवत प्रवक्ता कथाकार-डॉ. विजय दुबे