लखनऊ. केंद्र में तीसरी बार बीजेपी ने गठबंधन के साथ मिलकर सरकार बनाई है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज पीएम पद की शपथ लेने के बाद पहली बार वाराणसी आ रहे हैं… लेकिन मोदी सरकार 3.0 को उत्तर प्रदेश ने निराश किया है. खैर अब बीजेपी हार की वजह तलाशने में जुट गई है. कई तरह के कयासबाजियों का दौर जारी है.

इसी बीच सूत्रों के हवाले से जानकारी आई है कि बीजेपी ने जिस कमेटी का गठन किया था. उस कमेटी ने यूपी में पार्टी की हार की कुल 10 प्रमुख वजहों को जिम्मेदार माना है और यूपी में हार की प्रारंभिक रिपोर्ट तैयार हो गई है.

योगी-मोदी के भरोसे रहे प्रत्याशी

बीजेपी के रणनीतिकारों के मुताबिक उत्तर प्रदेश में बीजेपी की हार की वजह प्रत्याशियों में अति उत्साह होना. जो योगी औ मोदी के भरोसे रह गए और ग्राउंड जीरो पर एक्टिव नहीं रहे. साथ ही में कामकाज में ढिलाई भी नाराजगी की बड़ी वजह थी. चुनाव में उतरे प्रत्याशी नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ के नाम पर खुद को जीता हुआ मानकर चल रहे थे.

सांसद प्रत्याशी के खिलाफ जनता की नाराजगी

बताया जा रहा है कि कई सांसदों के लोगों के साथ गलत व्यवहार की शिकायतें भी थीं. या फिर यूं कहें कि सांसद प्रत्याशी का स्वयं का व्यवहार लोगों के साथ अच्छा नहीं रहा… कई बारे मीडिया में खबरें भी आईं, जिससे जनता में काफी नाराजगी रही.

राज्य सरकार की सलाह नहीं मानी

समीक्षा में यह बात भी सामने आई है कि राज्य सरकार ने करीब 3 दर्जन सांसदों के टिकट काटने या बदलने के लिए कहा था, उसकी अनदेखी हुई. दावा है कि यदि सरकार की ओर से दिए गए सुझावों पर अमल होता तो नतीजा कुछ और हो सकता था. एक और जगह जहां बीजेपी के नेता कमजोर साबित हुए, वो है विपक्ष के संविधान बदलने और आरक्षण खत्म करने के दावे का जवाब पूरी दमदारी से न दे पाना.

प्रत्याशी और संगठन में तालमेल नहीं

खबर यह भी है कि संगठन और प्रत्याशियों के बीच तालमेल अच्छा नहीं रहा, जिसके चलते प्रत्याशियों को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा. कुछ जिलों मे विधायकों की अपने ही सांसद प्रत्याशियों से नहीं बनी. तालमेल के अभाव में विधायकों ने उतने मन से प्रत्याशी का सहयोग नहीं किया.

विधायकों का सपोर्ट नहीं मिला

सूत्रों के हवाले से बताया जा रहा है कि सांसद प्रत्याशियों को स्थानीय या संसदीय क्षेत्र के विधायकों का सपोर्ट नहीं मिला. वजह यह रही कि टिकट वितरण में विधायकों की बातों को नजरअंदाज किया गया. तालमेल के अभाव में विधायकों ने उतने मन से प्रत्याशी का सहयोग नहीं किया.

स्थानीय कार्यकर्ताओं की अनदेखी

समीक्षा में यह भी बात सामने आई है कि सांसद प्रत्याशी अति उत्साह और मोदी-योगी के चेहरे पर खुद को जीता हुआ मानकर चल रहे थे. आलम यह कि स्थानीय कार्यकर्ताओं को तवज्जों नहीं दी गई. जिसकी वजह से इस बार स्थानीय कार्यकर्ताओं में उत्साह नहीं देखा गया. जिसकी नतीजा सबके सामने है.

दलित मतदाताओं का साथ नहीं मिला

इस आम चुनाव में एक खास बात थी कि कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में एक लाख सालाना देने की बात कही. जिसकी वजह से महिलाओं ने एकतरफा इंडिया गठबंधन को वोट किया. खासतौर पर बीजेपी को दलित मतदाताओं का साथ नहीं मिला. उसका कारण रहा कि संविधान बदल जाएगा, आरक्षण खत्म हो जाएगा… ये चर्चाएं थीं.

सवर्ण मतदाता की पार्टी से नाराजगी

सूत्रों के मुताबिक उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनावों में शिकस्त का एक और कारण सवर्णों के वोट का बिखरना भी रहा है. राजपूतों का तो वोट नहीं ही मिला है कई जगहों पर ब्राह्मणों का वोट भी बंटा है. कांग्रेस का अगर रिवाइवल होता है तो सवर्ण वोटों में और सेंध लगना तय है. ब्राह्रण वोटों के बिखराव को रोकने का कोई प्रयास करते नई सरकार नहीं दिख रही है.

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संविधान बदलने की बात का जवाब न दे पाना

विपक्ष के नेताओं में खासतौर पर अखिलेश यादव अपनी प्रत्येक सभा या रैली में बीजेपी द्वारा संविधान बदलने की बात को पूरी ताकत से उठाते रहे थे. इसका परिणाम यह हुआ कि दलित और पिछड़े वर्ग में यह बात घर कर गई, जिसके चलते उसने इंडिया गठबंधन के प्रत्याशियों के पक्ष में काफी हद तक मतदान किया.

आरक्षण खत्म करने वाले दुष्प्रचार की काट नहीं

इस आम चुनाव में आरक्षण का मुद्दा भी छाया रहा है. बीजेपी पर विपक्ष लगातार आरक्षण खत्म करने का आरोप लगाती रही है. जिस पर बीजेपी कभी खुलकर अपनी बात नहीं रख पाई. जिसकी वजह से जनता के मन में संशय था. बीजेपी के 400 पार वाले नारे को विपक्ष ने खूब भुनाया. इस नारे को लेकर विपक्ष ने ऐसा माहौल तैयार कर दिया कि अगर मोदी सरकार 400 पार चली गई, तो वह संविधान बदल देगी. लोगों ने इसे दिमाग में रखा और सब गड़बड़ हो गया.

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