रायपुर। राम किसी दिव्य पुरुष का नाम नहीं है. राम मनुष्य की आस्था, शक्ति और सौंदर्य का उज्ज्वल नाम है. यह भी सत्य है कि राम मूर्तियों में नहीं, हमारे जीवन में हैं. जीवन में व्याप्त इसी राम को एक विज्ञापन का रूप देते हुए कुछ लोग हमें कमजोर करने का प्रयास कर रहे हैं, हमें इसे समझना ही होगा. कहीं ऐसा न हो कि हमारी आस्था की शक्ति को कोई राजनीति का हथियार बना दे. ये बात 22वें अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन के दौरान ‘राम का काम’ विषय पर अभिकेंद्रित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में संबोधित करते सुप्रसिद्ध रचनाकार और उत्तराखंड सरकार में उच्च शिक्षा विभाग की पूर्व निदेशक डॉ. सविता मोहन ने कही. यह कार्यक्रम श्रीलंका के कोलंबो में हुआ. आयोजन के मुख्य अतिथि जाने-माने लेखक, संपादक और गीतकार डॉ. अजय पाठक थे.

हिंदी संस्कृति और विश्व बंधुत्व के विकास के लिए सतत आयोजित इस अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में विशेष तौर पर भारत के डॉ. बीना बुदकी, प्रो.पुष्पा उनियाल, डॉ. रामकृष्ण राजपूत, डॉ. मंजुला दास, राजेन्द्र सिंह, डॉ. अरविंद श्रीवास्तव ‘असीम’, डॉ. आरती झा, डॉ. रत्ना सिंह, आनंद प्रकाश गुप्ता, डॉ. नमिता चतुर्वेदी, कृष्ण कुमार मरकाम ‘अनुरागी’, डॉ. हरिसुमन बिष्ट, कामिनी संघवी, डॉ. गीता सराफ, कुंतला दत्ता, नारायण जोशी, स्वतंत्र कौशल, पूरन सिंह, आशुतोष चतुर्वेदी, रवि भोई, उमा बिष्ट, डॉ. नमिता चतुत्वेदी डॉ. कुंवर जय पाल सिंह, उर्मिला सिंह, डॉ. संदीप पगारे और श्रीलंका के प्राध्यापकों, साहित्यकारों और शोधार्थियों ने अपने-अपने विशिष्ट शोध आलेखों का वाचन किया.

सम्मेलन के विभिन्न सत्रों (जैसे संगोष्ठी, सर्वभाषा रचनापाठ, सांस्कृतिका आदि) में केलानिया यूनिवर्सिटी, कोलंबो के हिंदी साहित्य तथा विभिन्न संकाय के विभागाध्यक्ष सहित बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं, रचनाकार, संस्कृतिकर्मी और बड़ी संख्या लोग सहभागी बने. इसमें प्रमुख रूप से डॉ. लक्ष्मण, डॉ. उपल रंजीथ, डॉ. नीता सुभाषिनी, डॉ. इजी वज़ीर गुणसेना, डॉ. अनुषा नीलमणि, डॉ. आमिला, बसंथ पद्मिनी, डॉ. निरोशा साल्वथुरा, डॉ. संगीथ रत्नायके, डॉ. जेएडी सरसी उपेक्षिका रणसिंह, सुभा रत्नायक आदि हैं. सम्मेलन में निर्णय लिया गया कि श्रीलंका के अहिंदीभाषी रचनाकारों की कृतियों का प्रकाशन अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन परिवार की ओर से किया जाएगा.

31 किताबों का लोकार्पण

22वें अंहिंस सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में हिंदी की 31 कृतियों और पत्रिकाओं के नए अंक का विमोचन हुआ. इसमें शोध कृति-श्रीलंका में बौद्ध धर्म (आनंद प्रकाश गुप्ता), गीत संग्रह-चंदन वन जल गया (डॉ. अजय पाठक), यात्रा वृतांत-सुख शांति के प्रतीक भूटान की यात्रा, इतिहास- भारत की अनार्य संस्कृति और उसके महापुरूष (डॉ. रामकृष्ण राजपूत), नवगीत संग्रह-खेमों में बंटे लोग (डॉ. अरविंद श्रीवास्तव), इतिहास-गाजीपुर जनपद का ऐतिहासिक और पुरातात्विक विमर्श (डॉ. रत्ना सिंह), पत्रिका-समवेत सृजन (रवि भोई), पत्रिका-ट्रू मीडिया (ओम प्रकाश प्रजापति), लघुकथा संग्रह-नंगा कोरोना (डॉ. जसवीर चावला), उपन्यास-वनगमन और दंडकारण्य की ओर, यात्रा-वृतांत-पातालकोट जहां धरती बांटती है प्रेमपत्र, कहानी संग्रह-खुशियों वाली नदी (गोवर्धन यादव), उपन्यास- देह के पुल पर खड़ी लड़की, कहानी संग्रह-अकेली लड़की, आलेख-और आदमी मर जाता है (कृष्णा नागपाल), कहानी संग्रह-अमरूद का पेड़ (हरिप्रकाश राठी), डायरी-सदके करूं शरीर (अंबिकादत्त चतुर्वेदी), उपन्यास-बसंती की बंसत पंचमी, हड़सन तट का जोड़ा, मगंल ग्रह के जुगूनू और मेरी कहानियां (प्रबोध खुमार गोविल), विचार-राजनीति का धरम-करम : धरम करम की राजनीति (डॉ. जयप्रकाश मानस), यात्रा-संस्मरण एक शब्द ऋषि के देश में और कविता संग्रह जैसे प्राणों में हंसता है सूर्य (सवाई सिंह शेखावत) आदि प्रमुख हैं.

सम्मेलन के सांस्कृतिका सत्र में यूनिवर्सिटी ऑफ केलानिया के कला विभाग के छात्रों की ओर से लार्ड शिवा नामक नृत्य नाटिका के अलावा भारत के सुप्रसिद्ध नृत्यांगनाओं डॉ. काजल मूले, ममता अहार और कविता गुलकरी की ओर से क्रमशः कत्थक, मोनोप्ले (वैदेही) तथा शास्त्रीय नृत्य की प्रस्तुति दी गई, जिसे दर्शकों का काफी प्रतिसाद मिला.

केलानिया विश्वविद्यालय ने किया 50 भारतीय लेखकों का अभिनंदन

सम्मेलन के संस्थापक समन्वयक और साहित्यकार डॉ. जयप्रकाश मानस ने विगत 2 दशकों से हिंदी के संवर्धन के लिए सक्रिय संस्था अंहिंस से परिचित कराते हुए कहा कि “अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन एक ऐसा परिवार है, जिसके सदस्य भले ही लेखन और विचारधारा के स्तर पर परस्पर सहमत नहीं, लेकिन हिंदी साहित्य और संस्कृति के वैश्विक विस्तार के लिहाज से ठीक ऐसे संगठित हैं, जैसे कोई रक्त संबंधी हों. पिछले 20-21 सालों से अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन की रचनात्मकता और विश्वसनीयता का प्रश्नांकित रहस्य भी यही है. अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन मूलतः स्वाश्रयी, स्वावलंबी, स्वाध्यायी और स्वतंत्र चेतना के अनुयायियों का ऐसा संगठन है, जो गौतम बुद्ध की जिज्ञासा, कबीर की घुमक्कड़ी, राहूल सांस्कृत्यायन की यायावरी और बाबा नागार्जुन की फक्कड़ी पर यदकिंचित आस्था रखते हैं. अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ के पाठों का व्यवहारिक अर्थ इन्हीं रास्तों से तलाशने का एक अति लघु प्रयास है.”

उल्लेखनीय है कि बिना किसी केंद्रीय या राज्य सरकार के सहयोग, विश्व भर में सृजनरत हिंदी और भारतीय भाषाओं के सक्रिय और प्रवासी रचनाकारों को मुख्यधारा से जोड़ने के लिए इससे पूर्व रायपुर, बैंकाक, मारीशस, पटाया, ताशकंद, संयुक्त अरब अमीरात, दुबई, कंबोडिया, वियतनाम, चीन, नेपाल, इडोनेशिया (बाली), गुवाहाटी (असम), राजस्थान, रूस, ग्रीस, म्यांमार, वियतनाम, भूटान में 21-21 अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलनों का आयोजन हो चुका है. सम्मेलन में डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र, डॉ. खगेन्द्र ठाकुर, डॉ. हरिसुमन बिष्ट, टीएस सोनवानी के बाद ख्यात शिक्षाविद और साहित्यकार डॉ. सविता मोहन को अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन का अध्यक्ष मनोनीत किया गया.

कोलंबो सम्मेलन के दौरान भारत के विभिन्न प्रांतों से पहुंचे रचनाकारों और हिंदीसेवियों के सम्मान में केलानिया विश्वविद्यालय कोलंबों और श्रीलंका में हिंदी के विकास के अग्रसर संस्थाओं की ओर से आयोजित स्नेह समारोह में 50 से अधिक रचनाकारों, संपादकों और हिंदी-शिक्षकों को प्रतीक चिन्ह, उत्तरीय, श्रीफल और प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया.

अंतरराष्ट्रीय रचनापाठ में 7 भाषाओं की भागीदारी

अंतरराष्ट्रीय रचना पाठ सत्र में सिंहली और श्रीलंकन भाषा सहित गुजराती, हिंदी, ओड़िया, कश्मीरी, असमिया, तमिल, छत्तीसगढ़ी, उत्तराखंडी, राजस्थानी सहित कई जनपदीय भाषाओं की उत्कृष्ट रचनाएं और उसके अनुवाद का वाचन किया गया है. रचना पाठ करने वाले भारतीय रचनाकारों में डॉ. अजय पाठक, डॉ. हरिसुमन बिष्ट, डॉ. मनोहर लाल श्रीमाली, कुंतला दत्ता, युक्ता राजश्री झा, किरणबाला जीनगर, जगमोहन आजाद, लताबेन हिरानी, मंजू भटनागर आदि प्रमुख हैं.