नई दिल्ली। 1973 में भारत सरकार ने बाघों के संरक्षण के लिए एक महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत की थी. पिछले पचास वर्षों में प्रोजेक्ट टाइगर ने बाघ संरक्षण में महत्वपूर्ण प्रगति करते हुए 18,278 वर्ग किमी में फैले नौ बाघ अभयारण्यों से बढ़कर आज 75,796 वर्ग किमी में फैले 53 अभ्यारण्यों के तौर पर विकसित हुई है. इस परियोजना की वजह से आज भारत में वर्तमान में दुनिया की लगभग 75% जंगली बाघ आबादी रहती है.

1970 के दशक में बाघ संरक्षण का पहला चरण वन्यजीव संरक्षण अधिनियम को लागू करने और बाघों और उष्णकटिबंधीय जंगलों के लिए संरक्षित क्षेत्रों की स्थापना पर केंद्रित था. इसके बाद 1980 के दशक में व्यापक अवैध शिकार के कारण बाघों की संख्या में गिरावट देखी गई, जिसके जवाब में सरकार ने 2005 में दूसरे चरण की शुरुआत की. वर्ष 2022 की स्थिति में देश में बाघों की संख्या 3080 है, अब बाघों की 3/4 से अधिक आबादी संरक्षित क्षेत्रों में पाई जाती है.

बाघों की सबसे बड़ी आबादी 785 मध्य प्रदेश में है, इसके बाद कर्नाटक (563) और उत्तराखंड (560), और महाराष्ट्र (444) हैं. टाइगर रिजर्व के भीतर बाघों की बहुतायत कॉर्बेट (260) में सबसे अधिक है, इसके बाद बांदीपुर (150), नागरहोल (141), बांधवगढ़ (135), दुधवा (135), मुदुमलाई (114), कान्हा (105), काजीरंगा (104), सुंदरबन (100), ताडोबा (97), सत्यमंगलम (85), और पेंच-एमपी (77) में है.

बात करें छत्तीसगढ़ तो वर्ष 2022 में बाघों की संख्या 17 दर्ज की गई है, जो 2018 में की गई गणना के लिहाज से दो कम है. इसके पहले की बात की जाए तो 2014 में यह आंकड़ा 46 और 2010 और 2006 में 26-26 हुआ करती थी. ताजा आंकड़ों में सबसे ज्यादा 5 बाघ अचानकमार टाइगर रिजर्व में होने का अनुमान है, वहीं उदंती सीतानदी और इंद्रावती अभयारण्य में एक-एक बाघ होने का अनुमान है.