राजकुमार भट्ट, रायपुर. 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर जानिए छत्तीसगढ़ की आठ ताकतवर महिलाओं के बारे में. इन महिलाओं ने विपरित परिस्थितियों में संघर्ष करते हुए न केवल अपना मुकाम हासिल किया, बल्कि जिस क्षेत्र में वे सक्रिय रहीं, चाहे वह सामाजिक जागृति हो, राजनीतिक क्षेत्र हो, लोक कला हो, शिक्षा हो, खेल हो, नई दिशा देने का काम किया.

बिलासा केंवटिन

प्रदेश की न्यायधानी के तौर पर अपनी पहचान रखने वाले बिलासपुर शहर को 1560 में बिलासा केंवटिन ने बसाया था. रतनपुर के राजा ने बिलासा की बहादुर को देखकर इसे जागीर के तौर पर सौंपा था. बिलासा ने अपने गांव में घुस आए जंगली सुअर को भाले से मारकर पराक्रम दिखाया.  वहीं राजा के सिपाही के एक बार हाथ पकड़ लिए जाने पर उससे भिड़ गईं. जिसकी जानकारी होने पर रतनपुर के राजा ने सैनिक को सजा दी थी. एक बार राजा शिकार के लिए जंगल गए, लेकिन दल से बिछड़कर वे आगे निकल गए और जंगली सुअरों के हमले का शिकार हो गए. ऐसे मौके पर बिलासा और उसके पति वंशी की सेवा से वे जल्द ही ठीक हो गए. बिलासा के सेवाभआव से खुश होकर राजा उसे और उसके पति वंशी को पालकी में राजधानी रतनपुर ले आए. जहां बिलासा ने तीर-कमान और वंशी ने भाले के करतब दिखाकर सबको आश्चर्यचकित कर दिया. प्रसन्न राजा ने बिलासा को जागीर दी और नए नगर की स्थापना कर उसे बिलासा का नाम दिया. यही बिलासा आज बिलासपुर के नाम से जाना जाता है.

मिनी माता

नारी शिक्षा के साथ-साथ बाल-विवाह और दहेज प्रथा को दूर करने के लिए समाज से संसद तक आवाज उठाने वाली मिनी माता छत्तीसगढ़ की पहली महिला सांसद हैं, जिन्होंने 1952 से 1972 तक सारंगढ़, जांजगीर और महासमुंद लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया. सन् 1913 में असम के नुवागांव जिले के ग्राम जमुनामुख में जन्मीं मिनी माता का विवाह सतनामी समाज के गुरु अगमदास से हुआ था. पति की असामयिक मौत के बाद मिनी माता ने उनके सामाजिक कार्यों को न केवल आगे बढ़ाया, बल्कि समाज में नई  जागृति लाने का काम किया. 11 अगस्त 1972 को भोपाल से दिल्ली जाते हुए पालम हवाई अड्डे के पास हुए विमान दुर्घटना में आपका निधन हो गया. छत्तीसगढ़ शासन ने उनकी स्मृति में महिला उत्थान के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए मिनी माता सम्मान स्थापित किया है.

राजमोहिनी देवी

आदिवासी अंचल सरगुजा सम्भाग में समाजसेवा एवं सामाजिक कुप्रथाओं को दूर करने का बीड़ा उठाने वाली सरगुजा की ‘मदर टेरेसा’ माता राजमोहिनी देवी का जन्म 7 जुलाई 1914 को वाड्रफनगर विकासखंड के सरसेड़ा (शारदापुर) गांव में हुआ था. इनका विवाह प्रतापपुर विकासखंड के गोविंदपुर ग्राम के रंजीत गोंड़ के साथ हुआ था. इन्होंने विनोबा भावे के भूदान आंदोलन से प्रेरणा लेकर गौ हत्या बंद करने अनशन पर बैठीं, वहीं 1953 में शराब भट्ठी तोड़ो सत्याग्रह प्रारंभ किया. इनके कार्यों का ही प्रतिफल है कि अनुयायियों ने इनकी स्मृति में मंदिर का निर्माण किया है. राजमोहनी देवी का 6 जनवरी 1994 को निधन हुआ. सामाजिक जागरण और देश सेवा के लिए किए गए कार्यों की वजह से राजमोहनी देवी को 1986 में इंदिरा गांधी पुरस्कार और 1989 में पद्मश्री प्रदान किया गया.

तीजन बाई

दुर्ग जिले गांव गनियारी में हुनुकलाल परधा और सुखवती के घर 1953 को जन्मी तीजन बाई ने छत्तीसगढ़ के लोक गीत पंडवानी को न केवल नई पहचान बल्कि नई जान दी. उनकी इस उपलब्धि के लिए सन 1988 में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री और 2003 में पद्म भूषण और 2018 में पद्मविभूषण से अलंकृत किया गया है. अपने नाना ब्रजलाल को महाभारत की कहानियाँ गाते-सुनाते देख पंडवानी की ओर आकर्षित हुईं तीजन महज 13 वर्ष की उम्र में अपना पहला मंच प्रदर्शन किया. उस समय में महिला पंडवानी गायिकाएं केवल बैठकर गा सकती थीं, जिसे वेदमती शैली कहा जाता है. पुरुष खड़े होकर कापालिक शैली में गाते थे. तीजनबाई पहली महिला थीं जिन्होंने कापालिक शैली में पंडवानी का प्रदर्शन किया.

ममता चंद्राकर

दुर्ग जिले में 1958 में जन्मी छत्तीसढ़ की कोकिला ममता चंद्राकर ने छत्तीसगढ़ की लोक कला को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाने का काम किया है. लोक कला के जानकार महासिंह चंद्राकर की पुत्री ममता चंद्राकर ने गाने की शुरुआत 10 वर्ष की उम्र में की थी. उन्होने इंदिरा कला संगीत विश्व विद्यालय से संगीत की शिक्षा लेते हुए पिता के कार्य को आगे बढ़ाने लगी। वर्ष 1974 में सोन बिहान कंपनी के जरिए लोक कला की सफर की शुरुआत की. 1977 में रायपुर आकाशवाणी केंद्र में लोक कलाकार के तौर पर अपनी पारी की शुरुआत की. उनकी कला के क्षेत्र में उपलब्धि को देखते हुए भारत सरकार ने वर्ष 2015 में पद्मश्री से सम्मानित किया. रायपुर आकाशवाणी से बतौर सहायक निदेशक सेवानिवृत्त हुईं.

फूलबासन बाई यादव

राजनांदगांव जिले के ग्राम छुरिया में फूलबासन यादव का वर्ष 1971 में पैदा हुई फूलबासन बाई यादव ने तमाम विपरित परिस्थितों में संघर्ष करते हुए न केवल अपने लिए बल्कि अपने जैसी हजारों महिलाओं के लिए महिला स्व-सहायता समूह के जरिए आर्थिक स्वावलंबन का मार्ग प्रशस्त किया. मात्र 12 वर्ष की उम्र में उनका विवाह ग्राम सुकुलदैहान के चंदूलाल यादव से हुआ. आर्थिक तंगी के बीच 20 साल की उम्र में 4 बच्चों की मां बन चुकी फूलबासन ने वर्ष 2001 में 11 महिलाओं का एक समूह बनाते हुए आर्थिक स्वावलंबन के लिए 2 मुठ्ठी चावल और 2 रुपये से अभियान की शुरुआत कर आज लाखों महिलाओं को स्वावलंबन की राह पर ला चुकी हैं. उनकी उपलब्धि के मद्देनजर वर्ष 2004-05 में छत्तीसगढ़ शासन ने मिनीमाता अलंकरण से और वर्ष 2012 में भारत सरकार ने पद्मश्री से सम्मानित किया.

श्मशाद बेगम

बालोद जिले के गुंडरदेही की रहवासी शमशाद बेगम ने 1995 में साक्षरता मिशन की गतिविधियों को शुरू किया और छह महीने के भीतर अपने सहयोगियों के साथ मिलकर 12269 महिलाओं को साक्षर बनाया, यह अभियान यहीं नहीं रुका इसके बाद महिलाओं को साथ लेकर महिला कमांडो का गठन किया, जिसके जरिए गांव में नशामुक्ति अभियान चलाने के साथ-साथ बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, स्वच्छ भारत अभियान को सफलतापूर्वक क्रियान्वित कर लोगों में नई जागृति लाई. वहीं समिति का गठन महिलाओं के आर्थिक स्वावलंबन की ओर अग्रसर किया. उनकी इस उपलब्धि के लिए भारत सरकार ने वर्ष 2012 में पद्मश्री से सम्मानित किया.

सबा अंजुम

दुर्ग में 1985 को जन्मी सबा अंजुम अपनी प्रतिभा की वजह से वर्ष 2001 में ब्यूनस आयर्स में आयोजित जूनियर वर्ल्ड कप, वर्ष 2002 को मेनचेस्टर, इंग्लैंड और 2006 में मेलबर्न, आस्ट्रेलिया में हुए कॉमनवेल्थ खेलों में भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व किया. इसमें मेनचेस्टर में हुई राष्ट्रकुल खेल प्रतियोगिता में सबसे कम उम्र की प्रतिभागी होने का गौरव हासिल किया. 2004 में हुए एशिया कप जैसे अन्य कई अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंटों में भारत का प्रतिनिधित्व किया. उनकी उपलब्धि को देखते हुए छत्तीसगढ़ सरकार ने वर्ष 2013 में उप पुलिस अधीक्षक के पद पर नियुक्त किया. वहीं भारत सरकार ने उन्हें 2015 में पद्मश्री से सम्मानित किया.