IPL 2025: आईपीएल 2025 को लेकर फैंस बेहद उत्साहित हैं. कुछ ही महीनों बाद क्रिकेट की दुनिया की सबसे बड़ी लीग शुरू होगी. आईपीएल में दुनिया के बड़े-बड़े दिग्गज अपने खेल से फैंस का दिल जीतते हैं. कई बार बल्लेबाज तो कई बार गेंदबाज. वैसे तो आईपीएल में बल्लेबाजों का जलवा रहता है, लेकिन अब ऐसा नहीं है. गेंदबाज भी अपनी गेंदबाजी से महफिल लूट ले जाता है. डीआरएस के आने के बाद से गेंदबाजों को फायदा हुआ है. कई बार ऐसा होता है कि बल्लेबाज आउट होता लेकिन फील्ड अंपायर उसे आउट नहीं देता फिर विपक्षी टीम का कप्तान DRS का प्रयोग करता है. और थर्ड अंपायर फील्ड अंपायर के फैसले को बदल देता है. आईपीएल में डीआरएस की कहानी ज्यादा पुरानी नहीं है. आइए जानते हैं कि IPL में पहली बार DRS का इस्तेमाल कब किया गया था.

DRS क्या होता है?

DRS का मतलब डिसीजन रिव्यू सिस्टम. DRS एक ऐसी टेक्निक है, जो खिलाड़ियों को ऑन-फील्ड अंपायर के फैसलों को चुनौती देने का मौका देती हैं. इसकी मदद से बल्लेबाज और गेंदबाज थर्ड अंपायर तक जा सकता है और फिर थर्ड अंपायर सही फैसला सुनाता है. DRS को इस लिए लाया गया ताकि क्रिकेट को और भी निष्पक्ष बनाया जा सके.

IPL में DRS का इस्तेमाल पहली बार कब हुआ?

आईपीएल में पहली बार DRS का इस्तेमाल सीजन 2018 में हुआ. इससे पहले आईपीएल में यह DRS नहीं लागू था. भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) शुरुआत में DRS को अपनाने के लिए संकोच कर रहा था, लेकिन ICC मैचों में इसकी मदद से कई बार गलत फैसलों को सही होता देखा BCCI ने IPL में भी लागू किया.

7 अप्रैल 2018 को यूज किया गया था DRS

2018 के सीजन में IPL में DRS लागू हुआ. पहली बार इस्तेमाल 7 अप्रैल 2018 को मुंबई इंडियंस और चेन्नई सुपर किंग्स के बीच हुए मुकाबले में किया गया. मुंबई के एविन लुईस को ऑन फील्ड अंपायर ने LBW करार दिया था. इसके बाद उन्होंने DRS लिया, लेकिन टीवी अंपायर ने पाया कि ऑन फील्ड अंपायर का फैसला सही है, इसलिए लुईस को वापस जाना पड़ा.