नितिन नामदेव, रायपुर। ईरान और इज़राइल के बीच जारी युद्ध को लेकर छत्तीसगढ़ में रहने वाला ईरानी समाज खासा चिंतित है। हर साल बड़ी संख्या में धार्मिक यात्राओं के लिए ईरान जाने वाले इस समुदाय के लोग अब यही दुआ कर रहे हैं कि हालात जल्द सुधरें और शांति बहाल हो।

छत्तीसगढ़ में करीब 5000 भारतीय ईरानी रहते हैं, जिनमें से 1000 से अधिक रायपुर में बसते हैं। बाकी लोग बिलासपुर, अंबिकापुर, कवर्धा, मुंगेली जैसे जिलों में फैले हुए हैं। राजधानी रायपुर के राजातालाब इलाके में कुछ लोग ईरानी इमामबाड़ा में रहते हैं, जबकि अधिकांश को सरकार द्वारा दी गई सद्दू-मोवा स्थित ईरानी कॉलोनी में बसाया गया है। इस कॉलोनी में लगभग 100 परिवार रहते हैं।

यह समुदाय करीब 500 से 700 साल पहले ईरान से भारत आया था। तब से अब तक अपनी भाषा, परंपरा और संस्कृति को संजोए हुए है। यहां रहने वाले ईरानी अब भी फारसी में बात करते हैं और ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई के विचारों को मानते हैं। वे उन्हें आदर से “खामेनेई साहब” कहकर संबोधित करते हैं और उनके भाषणों को ध्यान से सुनते हैं।

छत्तीसगढ़ के ईरानी मूल के लोग आम तौर पर छोटे-मोटे व्यापार से जुड़े हुए हैं। रायपुर के गोलबाजार, जयस्तंभ चौक, एमजी रोड, पंडरी जैसे इलाकों में चश्मे, बेल्ट, घड़ियां आदि बेचते हैं। यही उनकी रोज़ी-रोटी का जरिया है।

ईरानी समाज का कहना है कि उनका दिल ईरान में अपने लोगों के लिए व्याकुल है। युद्ध किसी भी समस्या का हल नहीं हो सकता। उनकी एक ही अपील है कि युद्ध खत्म हो, और शांति लौटे।

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