आशुतोष तिवारी, जगदलपुर। छत्तीसगढ़ में नई शिक्षा नीति के तहत इस सत्र से पढ़ाई की शुरुआत हो चुकी है। नीति के उद्देश्यों में शिक्षकों की नई भर्ती और एकल विद्यालयों का युक्तियुक्तकरण कर बेहतर शिक्षा देना शामिल है। लेकिन अगर हम बस्तर की ज़मीनी हकीकत पर नज़र डालें, तो तस्वीर बिल्कुल उलटी दिखाई देती है। शिक्षा सुधार के बड़े-बड़े दावों के बीच बस्तर के बच्चे आज भी खतरे के साए में पढ़ाई करने को मजबूर हैं।


बस्तर विकासखंड के नेशनल हाईवे से लगे जूनावाही गांव का प्राथमिक स्कूल इसका सबसे बड़ा उदाहरण बनकर सामने आया है। यह स्कूल पूरी तरह जर्जर हालत में है। छत कभी भी गिर सकती है, दीवारों से पानी रिसता है और बरसात में स्कूल भवन तालाब की तरह भीग जाता है। भवन की यह हालत ऐसी है कि जान जोखिम में डालकर वहां बच्चों को पढ़ाया जा रहा है। अब सवाल यह उठता है कि जब स्कूल ही सुरक्षित नहीं है, तो बेहतर शिक्षा की कल्पना कैसे की जा सकती है?

गांव की एक महिला ने इस खंडहर बन चुके स्कूल की स्थिति को मोबाइल कैमरे में रिकॉर्ड किया और लल्लूराम डॉट कॉम को भेजा ताकि जिम्मेदार अफसरों तक यह मामला पहुंचे। वीडियो में देखा जा सकता है कि शिक्षक बच्चों को स्कूल के बाहर बरामदे में या पास के छोटे सामुदायिक भवन में बिठाकर पढ़ा रहे हैं। जब महिला शिक्षक से सवाल करती है कि बच्चे बाहर क्यों बैठे हैं, तो शिक्षक का जवाब चौंकाने वाला है वो कहते हैं कि स्कूल की छत से लगातार पानी टपक रहा है और भवन कभी भी गिर सकता है। इसलिए जान जोखिम में डालकर बच्चों को बरामदे में और सामुदायिक भवन में बिठाना हमारी मजबूरी है।
शिक्षक का कहना है कि वे साल 2021 में इस स्कूल में पदस्थ हुए, लेकिन आज तक किसी भी अधिकारी ने स्कूल की हालत देखने की ज़हमत नहीं उठाई। कई बार शिकायत करने के बाद 2022 में स्कूल भवन के पास ही एक नया भवन बनाने की मंजूरी मिली। लेकिन वहां सिर्फ नींव बना दी गई और एक बोर्ड लगा दिया गया कि यह स्कूल ₹13 लाख 83 हजार की लागत से बन चुका है। बोर्ड पर निर्माण शुरू होने की तारीख 14 फरवरी 2023 लिखी है, लेकिन आज तक वह स्कूल अधूरा है और निर्माण पूर्ण होने की कोई तारीख तक नहीं लिखी गई।

यह भवन मुख्यमंत्री स्कूल जतन योजना के अंतर्गत स्वीकृत हुआ था, लेकिन दो साल बीतने को हैं, फिर भी स्कूल अब तक तैयार नहीं हुआ है। इसका खामियाजा मासूम बच्चों और शिक्षकों को भुगतना पड़ रहा है। स्कूल में पीने के पानी की भी व्यवस्था नहीं है शिक्षक आसपास के घरों से पानी लाकर बच्चों को पिलाते हैं। यह हाल उस स्कूल का है जो नेशनल हाईवे के किनारे स्थित है, तो कल्पना कीजिए बस्तर के अंदरूनी इलाकों के स्कूलों की स्थिति कैसी होगी।
क्या कहते हैं अधिकारी
जब इस मामले पर जिला शिक्षा अधिकारी से संपर्क करने की कोशिश की गई, तो उनसे बात नहीं हो सकी। हालांकि बस्तर विकासखंड के खंड शिक्षा अधिकारी (BEO) भारतीय देवांगन ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि बच्चों को पास के सामुदायिक भवन में बैठाकर पढ़ाया जा रहा है। लेकिन वह भवन इतना छोटा है कि सारे बच्चे उसमें नहीं समा सकते, इसलिए कुछ बच्चे अभी भी जर्जर स्कूल के बरामदे में पढ़ाई कर रहे हैं।
सरकार और प्रशासन के लिए यह सवाल बनता है कि जब नई शिक्षा नीति लागू हो चुकी है, शिक्षक नियुक्त किए जा चुके हैं, तो फिर भवन क्यों नहीं बन रहे। क्या ₹13 लाख से अधिक खर्च के बाद सिर्फ बोर्ड टांग देना ही शिक्षा सुधार है। क्या बच्चों की जान को खतरे में डालकर पढ़ाना गुणवत्ता की पहचान है।
बस्तर की इस तस्वीर को देखकर यह साफ़ हो जाता है कि शिक्षा सिर्फ घोषणाओं से नहीं सुधरती उसके लिए ज़मीनी इच्छाशक्ति और जवाबदेही जरूरी है। यह सिर्फ एक गांव की कहानी नहीं, बल्कि उन तमाम बच्चों की कहानी है जो सरकारी आंकड़ों में तो विद्यार्थी हैं, लेकिन हकीकत में खंडहरों के नीचे बैठकर अपना भविष्य तलाश रहे हैं।
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