शब्बीर अहमद, भोपाल. मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव संपन्न हो गए हैं. अब राजनैतिक दलों के साथ प्रदेश की जनता को चुनाव परिणाम का इंतजार है. 3 दिसंबर को मतगणना होगी, जिसके बाद यह स्पष्ट हो जाएगा कि आखिर एमपी में अबकी बार किसकी सरकार? हालांकि इससे पहले एक बार फिर कांग्रेस रिजल्ट से पहले अलर्ट हो गई है. ऐसे में यह कहा जा सकता है कि कांग्रेस को ऑपरेशन लोटस का डर फिर सता रहा है.
दरअसल, 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के 114 सीटों पर जीत दर्ज करके सरकार बनाई थी, लेकिन सिंधिया समर्थक 22 कांग्रेस विधायकों ने इस्तीफा दे दिया था. जिससे कमलनाथ की सरकार गिर गई थी. ऐसे में 2020 में जो कांग्रेस के साथ हुआ वह फिर से न हो, इसी को लेकर कमलनाथ और कांग्रेस पार्टी डरी हुई है. एक बार फिर कांग्रेस को यही डर सता रहा है. सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक पीसीसी को संगठन से पता चला कि जिन सीटों पर कांग्रेस के विधायक जीत रहे हैं उनसे बीजेपी संपर्क कर रही है. एक बार फिर ऑपरेशन लोटस की सुगबुगाहट शुरु हो गई है.
बताया जा रहा है कि अबकी बार कांग्रेस कोई गलती नहीं दोहराना चाहती है. ऐसे में चुनाव परिणाम आने से पहले ही एमपी कांग्रेस अलर्ट हो गई है. इसके लिए पीसीसी कांग्रेस प्रत्याशियों पर निगरानी बढ़ाएगी. जिसके लिए जिला प्रभारियों को पीसीसी ने प्रत्याशियों पर पैनी नजर रखने की जिम्मेदारी दी है. कमलनाथ के निर्देश के बाद जिला प्रभारियों को जिम्मेदारी दे दी गई है. 26 नवंबर की बैठक के बाद जिला प्रभारी अपने प्रभार वाले जिलों में डेरा भी डाल सकते हैं. ऐसे में अब प्रत्याशियों से मिलने वालों पर भी पीसीसी की नजर होगी.
बता दें कि कांग्रेस और कमलनाथ को इस बार भी ऑपरेशन लोटस का डर सता रहा है. शायद इसी वजह से कमलनाथ ने पार्टी के सभी 230 प्रत्योशियों की बैठक बुलाई है. हालांकि इस बैठक को लेकर कहा जा रहा है कि ये एक ट्रेनिंग कैंप हैं. जिसमें उम्मीदवारों को मतगणना सबंधित जानकारी दी जाएगी. लेकिन 26 नवंबर को होने वाली इस बैठक के मायने कुछ और निकाले जा रहे हैं. दूसरी तरफ यह भी बताया जा रहा है कि चुनाव परिणाम से पहले ही कांग्रेस अपने प्रत्याशियों सच्ची निष्ठा, ईमानदारी और पार्टी न छोड़ने, पार्टी के साथ बने रहने की शपथ दिलवाएगी. सूत्रों के मुताबिक भोपाल में 26 नवंबर को पीसीसी कार्यालय में ये शपथ दिलवाई जा सकती है.
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गौरतलब है कि कमलनाथ सरकार 15 महीने चलने के बाद उनके 22 विधायकों ने इस्तीफा दे दिया था. जिसमें कमलनाथ सरकार के 6 मंत्री भी शामिल थे. मंत्री गोविंद सिंह राजपूत, प्रद्युम्न सिंह तोमर, इमरती देवी, तुलसी सिलावट, प्रभुराम चौधरी, महेंद्र सिंह सिसौदिया के अलावा विधायक हरदीप सिंह डंग, जसपाल सिंह जज्जी, राजवर्धन सिंह, ओपीएस भदौरिया, मुन्ना लाल गोयल, रघुराज सिंह कंसाना, कमलेश जाटव, बृजेंद्र सिंह यादव, सुरेश धाकड़, गिरराज दंडौतिया, रक्षा संतराम सिरौनिया, रणवीर जाटव, जसवंत जाटव के इस्तीफे के बाद कमलनाथ सरकार अल्पमत में आ गई थी.
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