रोहित कश्यप,मुंगेली। विजयादशमी पर रावण दहन की परंपरा तो देश-दुनिया में निभाई जाती है.लेकिन क्या आपने रावण को दहन करने के बजाय पीट-पीटकर मारने वाली परम्परा के बारे में कभी नहीं सुना होगा. छत्तीसगढ़ के मुंगेली जिले में रावण को जलाया नहीं बल्कि पीटा जाता है. यहां मिट्टी के रावण को पीट-पीटकर नष्ट किया जाता है. इसके पीछे तर्क है कि अहंकार को पीट पीटकर खत्म करना है.साथ ही इस मिटटी के रावण के अंगों के अवशेष को घर ले जाने के लिए लोगो की होड़ मच जाती है. जिससे यहां भगदड़ जैसा माहौल बन जाता है. मान्यता है कि रावण के अंगों की मिट्टी घर के पूजा पाठ,धान की कोठरी,घर की तिजौरी जैसे अन्य स्थानों में रखने से धन्य धान्य में बढ़ोतरी होती है.
बता दे कि मुंगेली में रावण को पीटने की परम्परा सैकड़ों सालों से चलती आ रही है. इसके पीछे का तर्क है कि पुराने ज़माने में विस्फोटक सामग्री नहीं होने की वजह से लोग मिटटी के रावण ही बनाकर उसका वध करते थे. उसी परम्परा को मुंगेली के गोवर्धन परिवार अपने पूर्वजों के जमाने से निभाते आ रहे हैं. मुंगेली के मालगुजार गोवर्धन परिवार के पूर्वजों के द्वारा सैकड़ों सालों से शुरू किया गया. मिट्टी के रावण को पीट पीटकर मारने की परम्परा आज भी मुंगेली में देखी जा सकती है.
हर साल की तरह इस साल भी गोवर्धन परिवार द्वारा दशहरा के त्यौहार के अवसर पर मिट्टी के रावण निर्माण करवाया है जिसे स्थानीय वीर शहीद धनंजय सिंह राजपूत स्टेडियम पर स्थापित किया गया है. जिसके वध के लिए स्थानीय बड़ा बाजार से देशी वाद्य एवं बाजे गाजे के साथ भगवान राम की झांकी निकाली जाती है. सबसे पहले मिट्टी के रावण की पूजा अर्चना की जाती है उसके बाद झांकी में शामिल यादव समाज और इस दशहरा में शामिल लोगों के द्वारा लाठी से पीट पीटकर मिटटी के रावण को नष्ट किया जाता है. इसका तर्क यह है कि बुराई के प्रति अपने आक्रोश को मिटाना है जिससे लोग लाठी से पीट पीटकर अहंकार को खत्म करते हैं. वहीं इस रावण की मिट्टी को पाने के लिए लोगों का हुजूम उमड़ता है. मिटटी का एक टुकड़ा पाने के लिए लोगों के बीच भगदड़ मच जाती है. इस मिट्टी की मान्यता है कि इसे घर के प्रमुख जगहों में रखने से धन्य-धान्य में बढ़ोतरी होती है आज भी दशहरा के अवसर पर मिट्टी से निर्मित रावण को जब पीटा जाता है तो इसकी मिटटी को कई लोग सालों से अपने घरों में रखे हुए हैं. स्थानीय लोगों का यह भी कहना है कि वो कई सालों से दशहरा के समय मिटटी के रावण की मिट्टी लाते है जिसकी मान्यता है कि घरों के पूजा पाठ,धान की कोठरी,घर की तिजौरी जैसे अन्य स्थानों में रखने से धन्य धान्य में बढ़ोतरी होती है. इसके पीछे लोगों की मान्यता है कि रावण ज्ञानी,स्वाभिमानी और शक्तिशाली पुरुष था जिसकी शरीर का हर अंग कीमती होने की वजह से मिट्टी से बने रावण की मिट्टी का भी एक अलग महत्व है.
असत्य पर सत्य की जीत के प्रतीक के रूप में मनाए जाने वाला दशहरा भले ही रावण के दहन करके मनाया जाता हो. लेकिन आज भी कई ऐसी परम्पराएं हैं जो सदियों से चली आ रही हैं उसका भी एक अलग महत्व है वही मिटटी के रावण को पीटने वाली परम्परां को देखने के लिए लोग दूर दूर से पहुंचते है और मिटटी के रावण की मिट्टी लेकर अपने घरों में ले जाते है.