उज्जैन. देवी के भक्तों की आस्था का ऐसा मंदिर जहां उनके दर्शन मात्र से ही कष्टों का निवारण हो जाता है. यहां भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है. देश विदेश के भक्तों सहित कई जाने माने नेता, अभिनेता, मंत्री इस मंदिर में दर्शन कर चुके है. मान्यता है कि महाभारत काल में यहीं से पाण्डवों को विजयश्री का वरदान प्राप्त हुआ था. हर नवरात्र में यहां देश विदेश से हजारों भक्त दर्शन करते रहे हैं. इस बार कोरोना संक्रमण की बंदिशों का असर श्रद्धालुओं की संख्या पर भी नजर आ रहा है.

नलखेड़ा में लखुन्दर नदी के तट पर पूर्वी दिशा में विराजमान है मां बगलामुखी
उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर से सौ किलोमीटर दूर ईशान कोण में आगर मालवा जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर नलखेड़ा में लखुन्दर नदी के तट पर पूर्वी दिशा में विराजमान है मां बगलामुखी. सभी कामों की सिद्धिदात्री मां बगलामुखी. जिनके एक ओर धन दायिनी महालक्ष्मी और दूसरी ओर विद्यादायिनी महासरस्वती देवी विराजित है.

विश्व में केवल तीन स्थानों पर विराजित
बताया जाता है कि मां बगलामुखी की पावन मूर्ति विश्व में केवल तीन स्थानों पर विराजित है. एक नेपाल में दूसरी मध्य प्रदेश के दतिया में और एक नलखेडा में. कहा जाता है कि नेपाल और दतिया में श्री श्री 1008 आद्या शंकराचार्य जी द्वारा मां की प्रतिमा स्थापित की गई. जबकि नलखेडा में इस स्थान पर मां बगलामुखी पीताम्बर रूप में शाश्वत काल से विराजित है. प्राचीन काल में यहां बगावत नाम का गांव हुआ करता था. यह विश्व शक्ति पीठ के रूप में भी प्रसिद्ध है. मां बगलामुखी की उपासना और साधना से माता वैष्णदेवी और मां हरसिद्धि के समान ही साधक को शक्ति के साथ धन और विद्या की प्राप्ति होती है. सोने जैसे पीले रंग वाली, चांदी के जैसे सफेद फूलों की माला धारण करने वाली, चंद्रमा के समान संसार को प्रसन्न करने वाली इस त्रिशक्ति का दैवीय स्वरुप बरबस अपनी और आकर्षित करता है.

सूर्योदय से पहले ही सिंह मुखी द्वार से प्रवेश का सिलसिला
प्रात: सूर्योदय से पहले ही सिंह मुखी द्वार से प्रवेश के साथ ही भक्तो का मां के दरबार में हाजरी और अपनी मनोकामनाओ की पूर्ति के लिए अर्जी लगाने का सिलसिला अनादि काल से चला आ रहा है. भक्ति और उपासना की अनोखी डोर भक्तों को मां के आशीर्वाद से बांधे हुए खास दृश्य निर्मित करती है. मूर्ति की स्थापना के साथ जलने वाली अखंड ज्योत आस्था को प्रकाशमान करती है.

चमत्कारी मूर्ति की स्थापना का कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं
मां बगलामुखी की इस विचित्र और चमत्कारी मूर्ति की स्थापना का कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं मिलता. किवंदती है कि यह मूर्ति स्वयं सिद्ध स्थापित है. काल गणना के हिसाब से यह स्थान करीब पांच हजार साल से भी पहले से स्थापित है. कहा जाता है कि महाभारत काल में पांडव जब विपत्ति में थे, तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें मां बगलामुखी के इस स्थान पर उपासना के लिए कहा था. तब मां की मूर्ति एक चबूतरे पर विराजित थी. पांडवों ने इस त्रिगुण शक्ति स्वरूपा की आराधना कर विपात्तियों से मुक्ति पाई और अपना खोया हुआ राज्य वापस पा लिया. यह एक ऐसा शक्ति स्वरूप है जहां कोई छोटा बड़ा नहीं सभी के दुखों का निवारण करती है. यह शत्रु की वाणी और गति का नाश करती है और अपने भक्तों को अभयदान देती है.