कुमार इंदर, जबलपुर। मध्य प्रदेश में प्रमोशन में आरक्षण मामले को लेकर गुरुवार को हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। एमपी सरकार की ओर से बहस समाप्त हो गई है। प्रदेश सरकार ने प्रमुख तर्क दिए। जिसमें कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट के मार्गदर्शी सिद्धांतो के अनुसार ही प्रमोशन नियम 2025 बनाए गए है। इस मामले में हाईकोर्ट की ओर से हस्तक्षेप करने की कोई गुंजाइश नहीं है। वहीं याचिकाओं की प्रचलनशीलता पर सरकार ने सवाल उठाए हैं।

जबलपुर हाईकोर्ट में गुरुवार को प्रमोशन में आरक्षण को लेकर अहम सुनवाई हुई। इस दौरान हाईकोर्ट में सरकार की ओर से दलील दी गई। याचिकाकर्ता नहीं चाहते प्रमोशन क्यों कि अनेक याचिकाकर्ता प्रतिनियुक्ति पर है। याचिकाओं की प्रचलनशीलता पर सरकार ने सवाल उठाए। जब प्रमोशन में आरक्षण कानून लागू ही नहीं हुआ तो याचिकाकर्ता प्रमोशन के कानून से कैसे पीड़ित होगे। सर्विस मेटर के संबंध में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के हवाले से सरकार ने तर्क दिया। याचिकाओं को जनहित याचिकाओं की तरह ट्रीट नहीं किया जा सकता है। नियम लागू होने के बाद पीड़ित का व्यक्तिगत रूप केस का परीक्षण करने का नियम है।

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सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता सी.एस.विद्यानाथन ने पक्ष रखा। अधिवक्ता सी.एस.विद्यानाथन ने कहा कि संसद के अलावा हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट को क्रमीलेयर के संबंध में कानून बनाने का संवैधानिक रूप से अधिकार नहीं है। अजाक्स एवं हस्तक्षेपकर्ताओं की ओर से बहस के लिए हाईकोर्ट ने 1 घंटे का समय तय किया है। अब इस मामले की अगली सुनवाई 6 जनवरी 2026 को होगी।

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