पुरी. सोशल मीडिया पर एक वीडियो ने सबको चौंका दिया है, जिसमें एक चील (eagle) को श्री जगन्नाथ मंदिर के पतितपावन ध्वज (Patitapaban Bana) के साथ उड़ते हुए देखा जा रहा है. यह वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है और लोगों के बीच कौतूहल का विषय बना हुआ है.

वीडियो में एक चील को मंदिर के ऊपर मंडराते और ध्वज को अपने पंजों में पकड़कर उड़ते हुए दिखाया गया है. इस दृश्य ने ओडिशा समेत पूरे देश के के श्रद्धालुओं में हैरानी और चिंता दोनों पैदा कर दी है.

कई श्रद्धालुओं ने इसे एक अपशकुन माना. सोशल मीडिया पर तरह-तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं. हालांकि अब तक मंदिर प्रशासन या श्रीमंदिर प्रबंधन समिति (SJTA) की ओर से कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया गया है. यह भी स्पष्ट नहीं है कि यह वीडियो वास्तविक है या एडिटेड.

क्या है जगन्नाथ पुरी मंदिर के ध्वजा की पौराणिक मान्यताएं

जगन्नाथ पुरी मंदिर में हर दिन एक 20 फीट लंबा त्रिकोणीय झंडा फहराया जाता है, जिसे बदलने की जिम्मेदारी चोला परिवार निभाता है. यह परंपरा पिछले 800 वर्षों से चली आ रही है. मान्यता है कि अगर एक दिन भी झंडा नहीं बदला गया, तो मंदिर 18 साल के लिए बंद हो जाएगा. मंदिर के शिखर पर लहराता यह ध्वज दूर-दूर से दिखाई देता है और इसे भगवान जगन्नाथ का प्रतीक माना जाता है.

कहा जाता है कि एक बार भगवान जगन्नाथ ने स्वप्न में देखा कि उनका झंडा पुराना और फटा हुआ है. अगले दिन पुजारियों ने झंडे की ऐसी ही हालत देखी, और तभी से रोज़ाना नया झंडा फहराने की परंपरा शुरू हुई. नया झंडा लगाना भगवान के प्रति भक्ति और सम्मान का प्रतीक है, जबकि पुराना झंडा नकारात्मक ऊर्जा को सोख लेता है, इसलिए इसे हटाया जाता है.

पौराणिक कथा: हनुमान और हवा का रहस्य

इस ध्वज की एक खास बात यह है कि यह हवा के विपरीत दिशा में लहराता है, और इसके पीछे हनुमान जी से जुड़ी एक कथा है. प्राचीन मान्यता के अनुसार, समुद्र की तेज़ आवाज़ के कारण भगवान विष्णु को विश्राम करने में परेशानी होती थी. जब हनुमान जी को यह बात पता चली, तो उन्होंने समुद्र से शांत रहने को कहा. समुद्र ने जवाब दिया कि यह उसकी शक्ति से बाहर है, क्योंकि हवा के साथ उसकी आवाज़ फैलती है.

हनुमान जी ने तब अपने पिता पवन देव से अनुरोध किया कि वे मंदिर की ओर हवा न बहने दें. पवन देव ने इसे असंभव बताते हुए एक उपाय सुझाया. हनुमान जी ने अपनी शक्ति से खुद को दो भागों में बाँटा और मंदिर के चारों ओर वायु से भी तेज़ गति से चक्कर लगाने लगे. इससे एक ऐसा वायु चक्र बना कि समुद्र की आवाज़ मंदिर तक नहीं पहुँचती, बल्कि बाहर ही घूमती रहती है. यही कारण है कि मंदिर का झंडा हवा के विपरीत लहराता है, और भगवान जगन्नाथ को शांति मिलती है.

आप नहीं जानते होंगे ये तथ्य मंदिर की परंपराएँ यहीं खत्म नहीं होतीं. प्रसाद बनाने की प्रक्रिया भी अनोखी है. सात बर्तनों को एक के ऊपर एक रखकर लकड़ी के चूल्हे पर पकाया जाता है, लेकिन सबसे ऊपर वाला बर्तन पहले पकता है.