रवींद्र कुमार भारद्वाज, गाजीपुर. दहेज हत्या के एक मामले में सजा काट रही एक महिला की दो बेटियों, 3 से 6 साल की अतिरिक्षा और प्रीति, को अब स्कूली शिक्षा का अवसर मिलेगा. जेल प्रशासन ने इन बच्चियों का दाखिला शहर के प्रतिष्ठित सरस्वती विद्या मंदिर स्कूल में कराया है, जिससे इनके जीवन में शिक्षा की रोशनी पहुंच सके.

यह पहल उत्तर प्रदेश जेल मैनुअल 2022 और बाल कल्याण समिति के दिशा-निर्देशों के अनुरूप उठाया गया कदम है. जेल मैनुअल के अनुसार, 6 साल से कम उम्र के बच्चों को अपनी माताओं के साथ जेल में रहने की अनुमति है, लेकिन उनकी शिक्षा और समग्र विकास की जिम्मेदारी जेल प्रशासन की होती है. इस नियम का पालन करते हुए गाजीपुर जेल प्रशासन ने इन बच्चियों के लिए स्कूली शिक्षा का प्रबंध किया है.

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जेल अधीक्षक जगदंबिका प्रसाद दुबे ने बताया कि वर्तमान में जिला जेल में 6 साल से कम उम्र के पांच बच्चे अपनी माताओं के साथ रह रहे हैं. इनमें से अतिरिक्षा और प्रीति पहली ऐसी बच्चियां हैं, जिन्हें औपचारिक स्कूली शिक्षा के लिए बाहर भेजा जा रहा है. इस व्यवस्था के तहत, दोनों बच्चियों को प्रतिदिन सुबह एक महिला कांस्टेबल की निगरानी में स्कूल ले जाया जाएगा. स्कूल की पढ़ाई पूरी होने के बाद वे वापस जेल लौट आएंगी. इस दौरान उनकी सुरक्षा और देखभाल का पूरा ध्यान रखा जाएगा.

स्कूल के पहले दिन का नजारा बेहद भावुक और प्रेरणादायक था. अतिरिक्षा और प्रीति के चेहरों पर नई शुरुआत की खुशी साफ झलक रही थी. स्कूल यूनिफॉर्म में सजी ये बच्चियां जब स्कूल के लिए रवाना हुईं, तो जेल अधीक्षक जगदंबिका प्रसाद दुबे सहित अन्य जेल कर्मचारी भी इस ऐतिहासिक पल के साक्षी बने. बच्चियों के उत्साह और जेल प्रशासन की इस पहल ने सभी का दिल जीत लिया. जेल अधीक्षक ने बताया कि यह पहल न केवल इन बच्चियों के लिए, बल्कि समाज के लिए भी एक सकारात्मक संदेश है. उन्होंने कहा “हमारा उद्देश्य है कि माता-पिता की सजा का असर बच्चों के भविष्य पर न पड़े. शिक्षा हर बच्चे का अधिकार है और हम यह सुनिश्चित करेंगे कि जेल में रह रहे सभी बच्चों को यह अधिकार मिले.”

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यह पहल न केवल शिक्षा के महत्व को रेखांकित करती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि जेल प्रशासन सुधार और पुनर्वास के प्रति अपनी जिम्मेदारी को गंभीरता से निभा रहा है. बाल कल्याण समिति ने भी इस कदम की सराहना की है और इसे अन्य जेलों के लिए एक मॉडल के रूप में देखा जा रहा है. इस पहल से न केवल अतिरिक्षा और प्रीति, बल्कि जेल में रह रहे अन्य बच्चों के लिए भी उम्मीद की किरण जगी है. यह कदम यह सुनिश्चित करता है कि सजा के दायरे में फंसे माता-पिता के बच्चे भी समाज की मुख्यधारा में शामिल होने का अवसर पाएं और अपने सपनों को साकार कर सकें.