आशुतोष तिवारी, जगदलपुर। तीर्थंकर प्रभु महावीर के प्रतिनिधि तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम अधिशास्ता आचार्य श्री महाश्रमण जी ने गुरुवार को सुबह मावली भाटा से मंगल विहार किया. इस दौरान अनेक क्षेत्रों से आए श्रद्धालुओं ने जन -जन में अहिंसा की चेतना का जागरण करने निकले शांतिदूत श्री महाश्रमण जी के दर्शन किए.
धर्मसभा में प्रवचन करते हुए आचार्य श्री ने कहा कि जैन धर्म में कर्मवाद सिद्धांत है. पूण्य-पाप सबका अपना-अपना होता है. कोई भी किसी के पुण्य अथवा पाप को बांट नहीं सकता, इसलिए व्यक्ति जागरूक रहे कि ऐसे पाप कर्म न करू, जिससे कष्ट भोगने पड़े. जैन धर्म में कर्म के आठ प्रकार है. कर्मों के अनुसार व्यक्ति के व्यक्तित्व व व्यवहार का भी पता चल सकता है. हम देखें तो कई बार स्थूल रूप में कर्मों का फल देखने को भी मिल जाता है. व्यक्ति अच्छा कार्य करता है तो अच्छा और बुरा कार्य करता है तो बुरा परिणाम मिलता है. हमारे बालमुनि इतना सीखना करते हैं, कंठस्थ करते हैं. कोई जल्दी याद कर लेता है, तो किसी को जल्दी याद नहीं भी होता.
उन्होंने कहा कि मानना चाहिए कि यह ज्ञानावर्णीय कर्म के प्रभाव से होता है. शरीर में कष्ट उत्पन्न हो जाए, कोई बीमारी हो जाए तो वह वेदनीय कर्म की प्रतिकूलता के कारण होता है. शरीर स्वस्थ हो तो सातवेदनीय कर्म का उदय माना जा सकता है. किसी का आयुष्य लंबा होता है तो किसी का आयुष्य कम यह भी आयुष्य कर्म के कारण होता है. एक व्यक्ति है जिसकी प्रतिष्ठा है, ख्याति है लोग भी उसकी बात सुनते हैं, तो यह शुभ नामकर्म का उदय है. एक व्यक्ति की कोई भी सुनता नहीं है, उसका सम्मान नहीं है तो मैं अशुभ नामकर्म का उदय है. 8 कर्म हैं, जैसा कर्म वैसा फल व्यक्ति को मिलता है. हम कर्मवाद के सिद्धांत पर मनन करें और जीवन में अशुभ कामों से बचें. मेरी ओर से किसी को कष्ट नहीं हो किसी भी प्राणी की हिंसा नहीं हो मन में यह चिंतन रहना चाहिए.
दृष्टांत के माध्यम से प्रेरणा देते हुए गुरुदेव ने आगे कहा कि चलते समय भी ध्यान दें कि कोई चींटी ना मर जाए, कोई छोटा जीव ना मर जाए. मार्ग में हरियाली आ जाती है तो उस पर भी पाव न पड़े. जितना हो सके उससे बचाव करने का प्रयास करना चाहिए. देख-देख कर चलना ही अहिंसा का भाव है. हमारे छोटे साधु भी ध्यान रखें चले तो ज्यादा तेज न जले धीमी-धीमी गति से चले. बचपन में शरीर में अनुकूलता हो सकती है पर दौड़ना नहीं चाहिए. क्षमता होना अलग बात है और उसका उपयोग करना अलग बात. ईर्या समिति के साथ-साथ भाषा समिति का भी ध्यान रखना चाहिए. हमारी भाषा निरवद्य हो, परिमित हो, संयत भाषा हो. कुछ भी बोले तो विचारपूर्वक बोलें, ना कहने की बात ना कहें.
उन्होंने कहा कि आगम में कहां गया कि साधु बहुत कुछ सुनता है और बहुत सी चीजें देखता है. परंतु सारा सुना हुआ, सारा देखा हुआ कहने का नहीं हो.। किसी की गोपनीय बात को फैलाने का प्रयास नहीं करना चाहिए. किसी की गलती ध्यान में आ गई तो उसे बता दें उसे फैलाये नहीं. शांति, अहिंसा, क्षमा, विवेक आदि से व्यक्ति का आचरण अच्छा होना चाहिए. जीवन में पाप कर्मों से अपनी आत्मा को बचाने का प्रयास करें यह काम्य है.
प्रवचन के बाद सायं 4.21 बजे पूज्य प्रवर का केशलूर से मंगल विहार हुआ. इस मौके पर जगदलपुर के विधायक रेखचंद जैन आचार्य श्री की सेवा में उपस्थित हुए और विहार में संभागी बने. 4 किलोमीटर विहार कर शांतिदूत श्री महाश्रमण विनोबा ग्राम डिमरापल के माता रुक्मणी सेवा संस्थान में पधारे. इस अवसर पर संस्थान के प्रबंधकों सहित शिक्षक एवं छात्रों ने नमस्कार महामंत्र के पाठ द्वारा गुरुदेव का स्वागत किया. आचार्यश्री का 22 एवं 23 जनवरी को जगदलपुर में दो दिवसीय प्रवास रहेगा.
राजनेताओं का दर्शन करने लगा रहा तांता
आज शांतिदूत के दर्शन करने राजनेताओं का तांता लगा रहा. इनमें भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष विष्णु देव राय, पूर्व सांसद दिनेश कश्यप, पूर्व मंत्री केदार कश्यप, पूर्व मंत्री महेश गागड़ा, पूर्व विधायक डॉ. सुभऊ रामजी, पूर्व मंत्री संतोष बाफना, पूर्व विधायक बैदू कश्यप, प्रदेश महामंत्री किरण देव, भारतीय जनता पार्टी जिला अध्यक्ष रूप सिंह मंडावी, पूर्व जिला अध्यक्ष विद्या शरण तिवारी, अक्षय ऊर्जा निगम के अध्यक्ष मिथिलेश स्वर्णकार शामिल रहे.