विदेश मंत्री एस जयशंकर ने गुरुवार को मॉस्को में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात की है। इस दौरान उन्होंने दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार के महत्व पर दिया है। जयशंकर ने इससे पहले रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव से भी मुलाकात की है। विदेश मंत्री का रूस दौरा ऐसा समय में हो रहा है जब रूस से कच्चे खरीदने की वजह से अमेरिका ने भारत पर कुल 50 फीसदी टैरिफ लगाने का ऐलान कर दिया है। रूस में जयशंकर ने अपने बयानों से अमेरिका को साफ शब्दों में यह संदेश दे दिया है कि भारत ट्रंप की टैरिफ नीतियों के आगे नहीं झुकेगा और ना ही US भारत और रूस के संबंधों में दूरी पैदा कर सकता है।
जयशंकर ने रूसी विदेश मंत्री के साथ बैठक के दौरान कहा है कि भारत और रूस के संबंध द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद दुनिया के सबसे प्रमुख साझेदारियों में से एक है। दोनों देशों ने अपने द्विपक्षीय व्यापार को संतुलित और टिकाऊ तरीके से बढ़ाने का का संकल्प लिया है। वहीं भारत और रूस ने टैरिफ संबंधी बाधाओं और अड़चनों को तेजी से दूर करने की जरूरत पर भी जोर दिया है। इससे पहले जयशंकर रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की इस साल के अंत में होने वाली भारत यात्रा से पहले मंगलवार को मॉस्को पहुंचे थे।
जयशंकर ने अपने रूसी समकक्ष सर्गेई लावरोव के साथ बैठक के बाद संयुक्त प्रेस वार्ता में कहा, ‘‘हमारा मानना है कि भारत और रूस के बीच संबंध द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद दुनिया के सबसे प्रमुख संबंधों में से एक रहे हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘भू-राजनीतिक स्थिति, जन भावनाएं और नेतृत्व संपर्क इसके प्रमुख प्रेरक बने रहेंगे।”
जयशंकर ने अमेरिका को सुनाया
आगे एक सवाल का जवाब देते हुए जयशंकर ने अमेरिका को सुना दिया। जयशंकर ने रूसी तेल खरीद पर अमेरिका की तरफ से लगाए गए टैरिफ से जुड़े सवाल के जवाब में कहा कि भारत रूसी तेल का सबसे बड़ा आयातक नहीं है और ऐसे में अमेरिका के तर्कों को कोई मतलब नहीं है। उन्होंने कहा, “हम रूस के सबसे बड़े तेल खरीददार नहीं हैं, चीन है। हम रूस से सबसे ज्यादा LNG भी नहीं खरीदते। इसमें शायद यूरोपीय संघ आगे हैं।”
जयशंकर ने आगे कहा कि अमेरिका ने खुद बीते कुछ सालों में भारत को रूसी तेल खरीदने के लिए प्रोत्साहित किया था। उन्होंने कहा, “खुद अमेरिकी हमसे पिछले कुछ सालों से कह रहे हैं कि हमें वैश्विक ऊर्जा बाजार को स्थिर रखने के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए, जिसमें रूस से तेल खरीद भी शामिल है। हम अमेरिका से भी तेल खरीदते हैं और वह मात्रा भी बढ़ी है। ऐसे में हमें सच में समझ नहीं आता कि यह तर्क क्यों दिया जा रहा है।”
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