जालंधर लोकसभा उपचुनाव के लिए कल मतदान किया जा चुका है, अब 13 मई को नतीजे घोषित किए जाएंगे.
वोटिंग से पहले अपनी-अपनी जीत का दावा कर रही सभी राजनीतिक पार्टियों के लिए अब समीकरण बदले हुए नजर आ रहे हैं, जिसकी एक बड़ी वजह बनी है- कम वोटिंग. इससे ना सिर्फ जीत के समीकरणों में बदलाव हुआ है, बल्कि जीत का अंतर भी घट गया है.
आखिर क्या रहेगा नतीजा?
आपको बता दें कि संगरुर उपचुनाव में वोटिंग प्रतिशत 45 प्रतिशत रहा था, जिसकी वजह से जीत का समीकरण बदला और अकाली दल ने जीत दर्ज की थी. इसी तरह जालंधर में इस बार 54 प्रतिशत वोटिंग हुई है. जिसके बाद बीजेपी, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, अकाली-बसपा गठबंधन सभी राजनीतिक दल अंदाजा लगा रहे है कि नतीजा क्या रह सकता है.
इन 3 फैक्टर में छुपा है पूरा गणित
पहला फैक्टर है यह है कि कम मतदान से एक बात तो स्पष्ट है कि जीत दर्ज करने वाले उम्मीदवार और दूसरे नंबर पर रहने वाले उम्मीदवार के बीच वोटों का अंतर बहुत कम रहने वाला है.
दूसरा फैक्टर यह है कि उम्मीदवार की हार और जीत शहरी वोटरों के हाथ में है. बीजेपी को पड़ने वाले वोटों के अलावा जो वोटर किसी भी दल को वोट नहीं करने गया. उसने जिस भी पार्टी को विधानसभा में वोट दिया था वो उसे नुकसान कर रहा है.
तीसरा फैक्टर माना जा रहा है कि शाहकोट हल्के में हुए विधानसभा चुनाव में बंपर वोटिंग में कांग्रेस की जीत हुई थी. इस बार शाहकोट में 78 हजार वोट पड़े है. यहां पर सबसे ज्यादा वोटिंग प्रतिशत 58 फीसदी रहा है. इससे इस बार कांग्रेस और अकाली दल को उम्मीद है कि उनका वोट कटिंग सीमित रहा है लेकिन आम आदमी पार्टी के लिए ये शुभ संकेत नहीं है. क्योंकि उनके उम्मीदवार सुशील रिंकु इसी हल्के से विधायक रहे है.
19 में से 15 बार कांग्रेस ने मारी बाजी
इस बार कम मतदान की वजह से सभी पार्टियों के अलग-अलग समीकरण बन रहे है. जालंधर लोकसभा सीट पर साल 1999 में 49 फीसदी मतदान हुआ था तो कांग्रेस के बलबीर सिंह की जीत हुई थी. साल 1992 में महज 30 प्रतिशत वोट गिरे थे तब भी कांग्रेस की जीत हुई थी. इसके अलावा साल 1971 में 71 प्रतिशत वोटिंग हुई थी तब शिरोमणि अकाली दल ने जीत दर्ज की थी. अब तक जालंधर में 19 लोकसभा चुनाव हो चुके है, जिसमें से कांग्रेस ने 15 तो 2 बार अकाली दल और 2 बार जनता दल ने जीत दर्ज की है. वेस्ट इलाके में विधानसभा चुनाव के मुकाबले लोकसभा उपचुनावों में वोटिंग कम हुई है.
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