शब्बीर अहमद, भोपाल। चुनाव आयोग ने आज जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव (Jammu Kashmir Election 2024) की तारीखों की घोषणा कर दी है। इसी के साथ कांग्रेस ने भी इस चुनाव को लेकर कमर कस ली है। वहीं एमपी कांग्रेस ने प्रवक्ता अब्बास हफीज को बड़ी जिम्मेदारी सौंपी है। जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी ने उन्हें कश्मीर का मीडिया को ऑर्डिनेटर बनाया है। उनकी नियुक्ति को लेकर आदेश भी जारी कर दिया गया है।
जम्मू-कश्मीर में 3 चरणों (18 सितंबर, 25 सितंबर और 1 अक्टूबर) मतदान होगा। इसके नतीजे 4 अक्टूबर को जारी होंगे। जम्मू कश्मीर में 10 साल बाद विधानसभा चुनाव हो रहा है। आखिरी बार जम्मू कश्मीर में 2014 में चुनाव हुए थे।
जम्मू-कश्मीर में 87 लाख मतदाता मत का करेंगे इस्तेमाल
राजीव कुमार ने कहा कि इलेक्शन कमीशन ने जम्मू-कश्मीर का दौरा किया था। वहां पर 87 लाख 9 हजार वोटर हैं, 11 हजार 838 पोलिंग बूथ हैं और लोगों में विधानसभा चुनाव को लेकर उत्साह है। जम्मू कश्मीर में लोगों ने आतंक को नकार दिया और बॉयकॉट छोड़कर बैलेट का साथ दिया। मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में लगभग 20 लाख युवा मतदाता हैं। पिछले चुनाव में लोगों की लंबी-लंबी कतारें दिखीं थी।
जम्मू-कश्मीर में 90 सीटों पर होंगे विधानसभा चुनाव
जम्मू-कश्मीर में अब विधानसभा सीटों की संख्या बढ़कर 90 हो गई है। जम्मू में अब 43 तो कश्मीर में 47 सीटें होंगी। पीओके के लिए 24 सीटें ही रिजर्व हैं। यहां चुनाव नहीं कराए जा सकते, जबकि लद्दाख में विधानसभा ही नहीं है। इस तरह से कुल 114 सीटें हैं, जिनमें से 90 पर चुनाव कराए जाएंगे। जम्मू रीजन में सांबा, कठुआ, राजौरी, किश्तवाड़, डोडा और उधमपुर में एक-एक सीट बढ़ाई गई है। वहीं, कश्मीर रीजन में कुपवाड़ा जिले में एक सीट बढ़ाई गई है।
जम्मू-कश्मीर में 10 साल बाद चुनाव
जम्मू-कश्मीर में 10 साल बाद विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। आखिरी बार यहां 2014 में चुनाव हुए थे. यहां की 87 सीटों में से पीडीपी ने 28, बीजेपी ने 25, नेशनल कॉन्फ्रेंस ने 15 और कांग्रेस ने 12 सीटें जीती थीं। बीजेपी और पीडीपी ने मिलकर सरकार बनाई और मुफ्ती मोहम्मद सईद मुख्यमंत्री बने थे। जनवरी 2016 में मुफ्ती मोहम्मद सईद का निधन हो गया था। करीब चार महीने तक राज्यपाल शासन लागू रहा। बाद में उनकी बेटी महबूबा मुफ्ती मुख्यमंत्री बनीं. लेकिन ये गठबंधन ज्यादा नहीं चला था। 19 जून 2018 को बीजेपी ने पीडीपी से गठबंधन तोड़ लिया था। राज्य में राज्यपाल शासन लागू हो गया। अभी वहां उपराज्यपाल मनोज सिन्हा हैं।
कितना बदलगया जम्मू-कश्मीर
5 अगस्त 2019 को ही जम्मू-कश्मीर काफी बदल गया था। इसके बाद जम्मू-कश्मीर दो हिस्सों में बंट गया। पहला- जम्मू-कश्मीर और दूसरा- लद्दाख। दोनों ही अब केंद्र शासित प्रदेश हैं। जम्मू-कश्मीर में विधानसभा भी है, जबकि लद्दाख में ऐसा नहीं है। हालांकि, जम्मू-कश्मीर में विधानसभा भले ही है, लेकिन यहां अब सरकार पहले जैसी नहीं रहेगी। पहले जम्मू-कश्मीर में चुनी हुई सरकार ही सबकुछ थी, लेकिन अब उपराज्यपाल सबसे ऊपर होंगे। पुलिस, जमीन और पब्लिक ऑर्डर पर उपराज्यपाल का अधिकार होगा। जबकि, बाकी सभी मामलों पर चुनी हुई सरकार फैसला कर सकेगी। हालांकि, उपराज्यपाल की मंजूरी जरूरी होगी।
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सीटों की संख्या कितनी बदली?
पहलेः जम्मू-कश्मीर में कुल 111 सीटें थीं। जम्मू में 37, कश्मीर में 46 और लद्दाख में 4 सीटें थीं। पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) में 24 सीटें होती थीं।
अबः जम्मू में अब 43 तो कश्मीर में 47 सीटें होंगी. पीओके के लिए 24 सीटें ही रिजर्व हैं। यहां चुनाव नहीं कराए जा सकते। जबकि लद्दाख में विधानसभा ही नहीं है। इस तरह से कुल 114 सीटें हैं, जिनमें से 90 पर चुनाव कराए जाएंगे।
कश्मीरी पंडितों के लिए क्या?
कश्मीरी पंडितों के लिए दो सीटें रिजर्व रखी गई हैं. हालांकि, इन्हें कश्मीरी प्रवासी कहा गया है। अब उपराज्यपाल विधानसभा के लिए तीन सदस्यों को नामित कर सकेंगे, जिनमें से दो कश्मीरी प्रवासी और एक पीओके से विस्थापित व्यक्ति होगा। जिन दो कश्मीरी प्रवासियों को नामित किया जाएगा, उनमें से एक महिला होगी। कश्मीरी प्रवासी उसे माना जाएगा जिसने 1 नवंबर 1989 के बाद घाटी या जम्मू-कश्मीर के किसी भी हिस्से से पलायन किया हो और उसका नाम रिलीफ कमीशन में रजिस्टर हो। वहीं, जो भी व्यक्ति 1947-48, 1965 या 1971 के बाद पीओके से आया होगा, उसे विस्थापित माना जाएगा।
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