Yasin Malik: जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) चीफ और उम्रकैद की सजा काट रहे यासीन मलिक के मामले में शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) में सुनवाई हुई। जेल में बंद यासीन मलिक ने सुनवाई के दौरान कहा कि मैं कोई आतंकवादी नहीं हूं, बल्कि एक राजनीतिक नेता हूं। मलिक ने दावा किया है कि 7 प्रधानमंत्रियों ने उनसे बातचीत की थी। उसने कहा कि उसके संगठन को अभी तक आतंकवादी संगठन घोषित नहीं किया गया है।
मलिक वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ के सामने कहा कि वह आतंकवादी नहीं है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता द्वारा उसे खतरनाक आतंकवादी बताए जाने और हाफिज सईद के साथ तस्वीरों का हवाला दिए जाने का जवाब देते हुए मलिक ने कहा कि इससे उसके खिलाफ पूर्वाग्रह पैदा किया गया है।

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मालिक ने कोर्ट को बताया कि उसके संगठन को अब तक यूएपीए के तहत आतंकवादी संगठन घोषित नहीं किया गया है। साल 1994 में संघर्ष विराम की घोषणा के बाद मुझे 32 मामलों में जमानत मिली और किसी भी मामले को आगे नहीं बढ़ाया गया।
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इन सात प्रधानमंत्रियों से बात करने का किया दावा
यासीन मलिक ने अदालत में ये भी दावा किया कि अब तक सात प्रधानमंत्रियों- नरसिम्हा राव, एचडी देवेगौड़ा, इंद्र कुमार गुजराल, अटल बिहारी वाजपेयी, मनमोहन सिंह और नरेंद्र मोदी (पहले कार्यकाल के दौरान) ने उसके संघर्ष विराम प्रस्ताव को गंभीरता से लिया और बात किया। मालिक ने मौजूदा केंद्र सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि अब 35 साल पुराने आतंकवादी मामलों को फिर से खोला जा रहा है, जो संघर्ष विराम की भावना के खिलाफ है।

केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो की आपत्ति पर जवाब देते हुए मलिक ने कहा, मैं न तो किसी आतंकवादी को समर्थन देता हूं और ना ही उन्हें पनाह। मेरे खिलाफ कोई एफआईआर आतंकवादी गतिविधियों से जुड़ी नहीं है, सभी मामले राजनीतिक विरोध से संबंधित हैं। सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल मलिक को जम्मू की कोर्ट में व्यक्तिगत रूप से पेश होने की अनुमति नहीं दी है और निर्देश दिया है कि वो तिहाड़ जेल से ही डिजिटल माध्यम से गवाहों से जिरह करे।
आपको बता दें कि ये सुनवाई सीबीआई द्वारा जम्मू-कश्मीर से दिल्ली ट्रांसफर किए गए दो मामलों को लेकर थी। इसमें पहला मामला दिसंबर 1989 में तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रुबैया सईद के अपहरण से जुड़ा है। वहीं दूसरा मामला जनवरी 1990 में श्रीनगर में चार वायुसेना कर्मियों की हत्या से संबंधित है। सीबीआई ने जम्मू की कोर्ट के उस आदेश को भी चुनौती दी है, जिसमें मलिक को अपहरण मामले में गवाहों से आमने-सामने जिरह करने के लिए अदालत में पेश होने की अनुमति दी गई थी।
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