रायपुर। जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ जे का स्पष्ट अभिमत है कि “एक्जिट पोल इग्ज़ैक्ट पोल नहीं होता है” हमारा अभी भी यही मानना है कि छत्तीसगढ़ में जो पाँच महीने पहले इंडीयन नेशनल कांग्रेस पार्टी को भारी जनादेश मिला था. उसका प्रमुख कारण भाजपा सरकार की विफलताओं, वादा-खिलाफ़ियों और भ्रष्टाचार से जनता की नाराज़गी थी. वे कारण आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने पाँच महीने पहले थे. ऐसे में हमारा पूरा विश्वास है कि छत्तीसगढ़ की जनता प्रदेश की 11 की 11 लोक सभा सीटों में सांप्रदायिक ताक़तों को पराजित करेगी विशेषकर जब हमने ख़ुद अपने आप को ग़ैर साम्प्रदायिक वोटों के बँटवारे को रोकने के उद्देश्य से इस चुनाव से बाहर रखा. ऐसे में निश्चित रूप से छत्तीसगढ़ की जनता ग़ैर-सांप्रदायिक और प्रगतिशील व्यक्तियों को निर्वाचित करके संसद में पहुँचाएगी.

अगर ऐसा नहीं होता है और लगभग सभी प्रकाशित एक्जिट पोलों द्वारा अनुमानित नतीजे कल आते हैं तो इसके लिए जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ जे पूरी तरह से मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की राज्य सरकार के विगत पाँच महीने के कार्यकाल और कार्यप्रणाली को दोषी मानेगी. मुख्यमंत्री का नतीजे आने के पहले ही बिना किसी ठोस प्रमाण के ये कहना कि EVM में धाँधली हुई है से हम बिलकुल वास्ता नहीं रख सकते क्योंकि अगर धाँधली होती तो मात्र पाँच महीने पहले उसी EVM के द्वारा छत्तीसगढ़ की जनता उनकी पार्टी को ऐतिहासिक जनादेश नहीं देती.

उस ऐतिहासिक जनादेश के पीछे कांग्रेस पार्टी द्वारा हमारे नेता आदरणीय अजीत जोगी के शपथ पत्र की नक़ल करके अपने ‘जनघोषणा पत्र’ में किसानों को पूर्ण कर्ज़ माफ़ी, बिजली बिल हाफ़, प्रदेश में आउटसोर्सिंग बंद, संविदा कर्मचारियों के नियमितीकरण करने और ₹ 2500 समर्थन मूल देकर ख़रीफ़ और रबी फ़सल की धान ख़रीदने का वादा प्रमुख आधार बने. भूपेश सरकार ने ख़रीफ़ फ़सल की धान को ₹ 2500 में ख़रीदने और किसानों द्वारा सहकारिता और ग्रामीण बैंकों से खाद, बीज और कीटनाशक के विरुद्ध अल्पक़ालीन ऋणों की माफ़ी करने की घोषणा करके बेहद अच्छी शुरुआत करी थी लेकिन अब ऐसा प्रतीत होने लगा है की दूरदृष्टि और प्रशासनिक कौशल के अभाव में अब उसके क़दम लड़खड़ाने लगे हैं. जितनी तेज़ी से जनता ने इस सरकार को अपनी नज़रों में बैठाया था, उस से ज़्यादा तेज़ी से उसे अपनी नज़रों से गिरा भी दिया है.

पाँच महीने में 9 बार क़र्ज़ा लेने के बाद आज पूरे प्रदेश की अर्थव्यवस्था चरमरा चुकी है. सम्पूर्ण शराबबंदी लागू करने के बजाए शराब माफ़िया के प्रभाव में आकर भूपेश सरकार ने शराब की दरों, शराब की क़िस्मों की संख्या और शराब दुकानों में संचालित काउंटरों को बढ़ाने के जनविरोधी निर्णय लिए हैं. विगत विधानसभा सत्र में पारित बजट में जो लगभग 50,000 नौकरियां स्वीकृत की गई थी, उसमें भी सरकार ने यह शर्त रख दी कि “छत्तीसगढ़ का मूल निवासी होना अनिवार्य नहीं है.” संविदा कर्मचारियों के नियमितीकरण का वादा करना तो दूर, विगत चार महीनों से उन्हें भूपेश सरकार तनखा तक नहीं दे पाई है.

राशन दुकानों में प्रशासनिक लापरवाही के कारण तीन महीने से चना और दाल मिलना बंद हो चुका है. अधोसंरचना विकास से जुड़े कार्य जैसे सड़क, पुल-पुलिया, कूप और बाँधों के निर्माण कार्यों पर पैसा न होने के कारण पूरी तरह से रोक लगा दी गई है. जिस दिन सरकार ने बस्तर में टाटा-विस्थापितों की ज़मीनें वापस करने का निर्णय लिया, उसी दिन सरकार ने हाथियों के लिए संरक्षित कोरबा-रायगढ़ स्थित हसदेव-अरण्य और लेमरू के जंगलों में 30 कोयला खदानों को स्वीकृति देकर, एक विशेष औद्योगिक घराने को लाभ पहुँचाने की दृष्टि से, वहाँ के लाखों वनवासियों को बेघर करने का फ़तवा भी जारी कर दिया है. मतलब साफ़ है- इन एग्ज़िट पोलों की सत्यता जो भी हो, उन्होंने भूपेश सरकार की पोल ज़रूर खोल दी है.

जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) का यह मानना है कि ये एग्ज़िट पोल सरकार के लिए “वेक-अप कॉल” है. अभी भी सरकार का चार साल से ज़्यादा का कार्यकाल शेष है. ऐसे में ‘कोर्स करेक्शन’ (ग़लतियों को सुधारने) की आवश्यकता है. इस पर कांग्रेस आलाकमान और कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ताओं को गंभीरता से विचार करना चाहिए.