रुचिर गर्ग. शाहरुख खान की फिल्म जवान देखी. शाहरुख खान कभी जलवा बिखेरते हैं, कभी निराश करते हैं. कभी हिट होते हैं, कभी फ्लॉप! शाहरुख पूरी तरह मसाला हैं, उनमें आमिर नजर नहीं आता. नसीरुद्दीन, इरफान, ओमपुरी जैसे तो बिल्कुल नहीं. शाहरुख खान की फिल्में सिर्फ व्यवसाय को लक्ष्य कर के ही बनती रही हैं. जवान भी ऐसी ही है. इसमें मसाला से लेकर व्यवसाय तक सब कुछ है, लेकिन फिर भी जवान अलग क्यों है? क्योंकि इसमें शाहरुख खान ने भरपूर फिल्मी मसालों के साथ लोकप्रिय अंदाज को अपनाते हुए, व्यायवसायिक लक्ष्य के साथ जो कहानी पेश की है, उसे आज सिर्फ एक ही नाम दिया जा सकता है – शाहरुख का हौसला!
फिल्में मुझे बहुत याद नहीं रहती हैं ,शाहरुख खान की तो कभी नहीं क्योंकि वो कभी मेरे पसंदीदा अभिनेता नहीं रहे. लेकिन इतना कह सकता हूं कि शाहरुख ने शायद ही कभी वर्तमान को ऐसा हिट किया हो, जितना मुखर वो जवान में नजर आए हैं. कल्पना कीजिए कि, क्या देश की सत्ता आज यह बर्दाश्त कर पाएगी कि कोई किसानों के सवाल को इस तरह से उठाए कि करोड़पति के लिए ऑडी जैसी कार सिर्फ 8 प्रतिशत ब्याज दर पर मिल जाएगी. लेकिन किसान के लिए ट्रैक्टर 13 प्रतिशत ब्याज दर पर ही मिलेगा ?
क्या ये सत्ता कर्ज में डूबे, आत्महत्या कर रहे किसानों के दर्द को बयां करती किसी फिल्म को पसंद करेगी? इस फिल्म में विजय माल्या जैसा नजर आते एक उद्योगपति के करोड़ों के कर्ज माफ किए जाने पर सवाल हैं. रक्षा सौदों में दलाली और घोटाले का मुद्दा है. यहां सरकारी अस्पतालों की सुनियोजित बदहाली को दिखाया गया है.
गोरखपुर ,उत्तर प्रदेश की वो दर्दनाक घटना याद दिलाई गई है, जिसमें बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन की कमी से 70 से ज्यादा बच्चों की मौत हो गई थी और उसकी जिम्मेदारी एक ऐसे मुस्लिम डॉक्टर कफील खान पर थोप दी गई, जो दरअसल बच्चों को बचाने के जतन कर रहे थे. लेकिन उन्हें यूपी सरकार ने झूठा फंसा कर जेल भेज दिया था.
प्रदूषण फैला रहे उद्योगों से लेकर राजनीतिज्ञों और माफियाओं के गठजोड़ पर भी शाहरुख प्रहार करते हैं. फिल्म एकदम बॉलीवुड अंदाज में देश में ईवीएम के गायब हो जाने की घटनाओं को भी दर्ज करती है. शाहरुख खान जब इस फिल्म में उठाए गए मुद्दों के साथ जनता को जागरुक बनने की नसीहत देते दिखते हैं तो उनका राजनीतिक संदेश साफ होता है. ये साफ होता है कि, वो आज की सत्ता के खिलाफ क्रुद्ध और मुखर हैं.
शाहरुख इस फिल्म में जो सबसे बड़ी बात कर गए वो है अन्याय के खिलाफ बागी महिलाओं को संगठित कर अपनी लड़ाई का हिस्सा बनाना. खास बात यह है कि, जवान में यह सब बिना कलात्मकता के पूरे फिल्मी स्टाइल में है! यह सब दर्शकों के एक ऐसे तबके को लक्ष्य करके किया गया, जो प्रतिबद्ध नहीं है. पर उसका एक हिस्सा हॉल से निकलते हुए कनविंस सा नज़र आता है.
शाहरुख खान ने लोकप्रियता के फॉर्मूले को पकड़ कर आज के निजाम पर जिस तरह हमला किया वो इस फिल्म को एक अलग मंच पर खड़ा कर देता है. इसे व्यवस्था की धज्जियां उड़ाती राजनीतिक फिल्म कह लीजिए या बॉलीवुड मसाला, लेकिन शाहरुख खान सफल हो गए. देश में हर रोज जब एक प्रचार फिल्म रिलीज हो रही हो तब तमाम प्रचार अभियानों के मुकाबले शाहरुख खान जवान को खड़ा कर देते हैं! यह हौसले की ही बात है कि, शाहरुख खान हाथ का पंजा भी दिखाते हैं और विश्व–विद्यालयों में लगाए गए आजादी के नारे को भी उछालते हैं.
वो अपने बेटे आर्यन पर लादे गए फर्जी ड्रग केस की भी तब याद दिला जाते हैं जब कहते हैं – “बेटे को हाथ लगाने से पहले बाप से बात कर. “अबकी बार, ठीक याद नहीं पर शायद पहली बार,व्यवस्था. विरोधी स्टैंड लेने वाले शाहरुख से मिलिए “जवान” में. पूरी दुनिया SRK के इस तेवर को देख रही है. SRK के साथ–साथ डायरेक्टर एटली कुमार की भी पीठ थपथपाई जा रही है.
(लेखक छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के मीडिया सलाहकार हैं)