जयपुर. जावर दुनिया में सबसे पहले जिंक देने वाली खदान के लिए प्रसिद्ध रहा है. जिंक का प्रयोग होने से पहले इस धातु को जिन लोगों ने खोजा और वाष्पीकृत होने से पहले ही धातुरूप में प्राप्त करने की विधि को खोजा वे भारतीय थे और मेवाड़ में उनका जन्म हुआ था. जावर की खदान सबसे पहले चांदी के लिए जानी गई. देशभर में चांदी-लेड-जिंक की 5 माइंस हैं, जिनमें से 4 अकेले राजस्थान में हैं. जावर माइंस का हजारों वर्ष पुराना इतिहास सीसा, जस्ता, चांदी के उत्पादन की दृष्टि से पूरी दुनिया में अपनी पहचान रखता है.
उदयपुर शहर से 35 किलोमीटर दूरी पर राष्ट्रीय राजमार्ग आठ पर टीडी चौराहे से पांच किलोमीटर दूर स्थित जावर कभी समृद्ध नगर हुआ करता था. जावर के इतिहास पर समय-समय पर शोध किए गए हैं. ब्रिटिश म्यूजियम के डॉ. पोल के्रडोक की टीम ने 80 के दशक में जावर में कार्बन डेटिंग से ज्ञात किया कि जावर की खदानें करीब तीन हजार वर्ष पुरानी हैं. यहां तीन हजार साल से सीसा और चांदी जैसे धातुओं का स्रोत रहा है. वैज्ञानिक आधार पर यह प्रमाणित किया जा चुका है कि जस्ता जैसे वाष्पीकृत होने वाले धातु का प्रगलन पूरे विश्व में सर्वप्रथम जावर में एक हजार वर्ष पूर्व हुआ था, जो हमारे पूर्वजों के तकनीकी कौशल को परिलक्षित करता है.
जिंक और लेड का बायप्रोडक्ट है सिल्वर
सोने की तरह चांदी सीधे खदानों से नहीं मिलती है. ये एक बायप्रोडक्ट है जो लेड और जिंक से निकलता है. आसान भाषा में समझने के लिए घी का उदाहरण लिया जा सकता हैं. जैसे- दूध को जमाने पर दही तैयार होता है और फिर उसे मथने के बाद मक्खन और उससे फिर घी बनता है. ठीक इसी तरह पत्थर के टुकड़ों से लेड और जिंक नाम की दो मेटल निकलती हैं. इन मेटल को प्रोसेस करने के बाद चांदी निकाली जाती है.