सिद्धि हेतु स्वामी गये यह गौरव की बात।
पर चोरी चोरी गये यह बड़ी आघात॥
सखी वे मुझसे कहकर जाते।
इन पंक्तियों के रचयिता राष्ट्रकवि मैथलीशरण गुप्त को श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए…कह सकते हैं कि गुप्तजी की काव्य यात्रा पूरी हिंदी भाषा को मजबूत काव्यात्मक बनाने वाली है. उन्होंने कई कालजयी रचनाएं की जिनमें में केन्द्रीय पात्र ऐसी नारी रही जिनके त्याग और समर्पण को इतिहास ने अनदेखा कर दिया . इनमें लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला और सिद्धार्थ (गौतम बुद्ध ) की पत्नी यशोधरा शामिल हैं.
सिद्धार्थ के वियोग में यशोधरा के दुख को अपनी कलम से उकेरना शायद गुप्त जी की ही बस की बात है. उनकी खंडकाव्य ‘यशोधरा’ में पति वियोग में नारी दुखी तो है, लेकिन वो घोर संकट और विषम परिस्थितियों में भी धीरता, कर्मण्यता और कर्तव्य भावना का परित्याग नहीं करती.
स्वयं सुसज्जित करके क्षण में,
प्रियतम को, प्राणों के पण में,
हमीं भेज देती हैं रण में –
क्षात्र-धर्म के नाते
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।
हुआ न यह भी भाग्य अभागा,
किस पर विफल गर्व अब जागा?
जिसने अपनाया था, त्यागा;
रहे स्मरण ही आते!
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।
कुछ इसी तरह का भाव उर्मिला के जीवन को दर्शाते हुए उन्होंने व्यक्त किया है . महाकाव्य साकेत में लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला के कष्ट और उसके कर्तव्य बोध की व्याख्या जिस अंदाज में उन्होंने कि उससे पहले इतना प्रकाश उर्मिला के जीवन पर किसी ने कभी नहीं डाला.
मैथिलीशरण गुप्त का जन्म 3 अगस्त 1886 को चिरगाँव, झांसी उत्तर प्रदेश में हुआ था. वे बचपन से कविता और छंद लिखने लगे थे. मैथिलीशरण गुप्त जी को साहित्य जगत् में ‘दद्दा’ नाम से सम्बोधित किया जाता था। उन्होंने अपनी साहित्यिक साधना से हिन्दी को समृद्ध किया। मैथिलीशरण गुप्त के जीवन में राष्ट्रीयता के भाव कूट-कूट कर भर गए थे। इसी कारण उनकी सभी रचनाएं राष्ट्रीय विचारधारा से ओत प्रोत है। वे भारतीय संस्कृति एवं इतिहास के परम भक्त थे। परन्तु अंधविश्वासों और थोथे आदर्शों में उनका विश्वास नहीं था। वे भारतीय संस्कृति की नवीनतम रूप की कामना करते थे।
आज उनकी जयंती के मौके पर सोशल मीडिया में उन्हें याद किया जा रहा है और उनको चाहने वाले लोग उनके प्रति सम्मान प्रकट कर रहे हैं-
“नर हो, न निराश करो मन को” जैसी कालजयी कविता के रचयिता पद्मभूषण श्री मैथिलीशरण गुप्त जी मानववादी, नैतिक और सांस्कृतिक काव्यधारा के विशिष्ट कवि थे। साहित्य जगत की इस महान हस्ती को मैं उनकी जयंती पर श्रद्धासुमन अर्पित करता हूँ। pic.twitter.com/I86gFlcsyG
— Dr Raman Singh (@drramansingh) August 3, 2018
जो भरा नहीं है भावों से जिसमें बहती रसधार नहीं।
वह हृदय नहीं है पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।।राष्ट्रकवि श्रद्धेय मैथिलीशरण गुप्त जी की जयंती पर उन्हें सादर नमन…! pic.twitter.com/Q6i9miQhOi
— Brijmohan Agrawal (@brijmohan_ag) August 3, 2018
"यही पशु-प्रवृत्ति है कि आप आप ही चरे,
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे."अपनी रचनाओं से भारत के जन-मन में बंधुत्व, गांधीवाद, मानवता तथा राष्ट्रीय चेतना का जागरण कर उसे स्वाधीनता आन्दोलन के लिए प्रेरित करने वाले राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी को उनकी जयंती पर शत शत नमन। pic.twitter.com/m5ju6SDpZR
— Bhupesh Baghel (@bhupeshbaghel) August 3, 2018
खड़ी बोली हिंदी के प्रारंभिक पुरोधा, आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के एकलव्य, वाणी और विचार की वैष्णव व्याख्या, काव्य की उपेक्षिताओं के शब्द-तर्पण, राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी का आज जन्मदिन है।साहित्य-सिंधु के विशाल अर्णव पोत को जन्मदिन पर कोटिशः नमन। 🙏❤️ pic.twitter.com/sRAWJKv7Oe
— Dr Kumar Vishvas (@DrKumarVishwas) August 3, 2018
https://twitter.com/iawoolford/status/1025242254577823744