व्यंग्य सम्राट हरिशंकर परसाई का जन्म मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले में इटारसी के पास जमानी गांव में 22 अगस्त 1922 को हुआ था. उन्होंने जीवनभर सामाजिक पाखंड और रूढ़िवाद के खिलाफ जमकर कलम चलाई. वे राजनितिक और सामाजिक खामियों को खुलकर उजागर किए. हरिशंकर ने नागपुर विश्वविद्यालय से हिंदी में एमए किया था. कुछ समय नौकरी के साथ लेखन कार्य किया, लेकिन बाद में लेखन को पूर्णकालिक करियर के रूप में अपना लिया.

 

परसाई का निधन 15 अगस्त 1995 को जबलपुर में हुआ था. परसाई ने हिंदी में व्यंग्य लेखन की कला में क्रांति ला दी थी. उन्होंने अपनी लेखनी के दम पर व्यंग्य को हिंदी साहित्य में एक विधा के तौर पर मान्यता दिलाने का काम किया. हरिशंकर परसाई का शुरूआती जीवन पेशानियों में बीता. मैट्रिक नहीं हुए थे कि उनकी मां की मृत्यु हो गई. इसके बाद असाध्य बीमारी से पिता की भी मृत्यु हो गई. गहन आर्थिक अभावों के बीच चार छोटे भाई-बहनों की जिम्मेदारी परसाई पर आ गई.

इसे भी पढ़ें – जयंती विशेष : प्रेमचंद ने समाज की बुराइयों को अपने उपन्यासों और कहानियों में उकेरा, आज भी प्रासंगिक है उनकी रचनाएं

शाजापुर में एक कॉलेज के प्रिंसिपल नियुक्त होने का प्रस्ताव आया, पर उन्होंने इसे भी अस्वीकार कर दिया और जबलपुर में रहकर स्वतंत्र रूप से लेखन करना स्वीकार किया. व्यंग्य के अलावा हरिशंकर परसाई के कहानी संग्रह ‘हंसते हैं रोते हैं’, ‘जैसे उनके दिन फिरे’, ‘भोलाराम का जीव’ उपन्यास ‘रानी नागफनी की कहानी’, ‘तट की खोज’, ‘ज्वाला और जल’ तथा संस्मरण ‘तिरछी रेखाएं’ भी प्रकाशित हुए. उनकी रचनाओं में तब की बात और थी, भूत के पांव पीछे, बेईमानी की परत, वैष्णव की फिसलन, पगडंडियों का जमाना, शिकायत मुझे भी है, सदाचार का ताबीज, विकलांग श्रद्धा का दौर, तुलसीदास चंदन घिसैं, हम इकउम्र से वाकिफ हैं, जाने पहचाने लोग (व्यंग्य निबंध-संग्रह) शामिल हैं.

Read more – 150 People Abducted by Taliban Militia; Not in Danger Inform Govt Sources