पटना। बिहार की राजनीति में एक बार फिर हलचल तेज़ हो गई है। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के समर्थन में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड (JDU) के सांसद और विधायक खुलकर सामने आ गए हैं। वहीं, राज्य में चल रही मतदाता सूची के ‘विशेष गहन पुनरीक्षण’ (Special Intensive Revision – SIR) को लेकर भी जदयू में आंतरिक मतभेद उभरकर सामने आए हैं। जहां मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, केंद्रीय मंत्री ललन सिंह और जदयू के कई वरिष्ठ नेता SIR प्रक्रिया का समर्थन कर रहे हैं, वहीं बांका से सांसद गिरधारी यादव और परबत्ता से विधायक डॉ. संजीव कुमार ने इसके खिलाफ खुले तौर पर बयान दिए हैं।
इतिहास और भूगोल का कुछ नहीं पता
बुधवार को सांसद गिरधारी यादव ने चुनाव आयोग के फैसले को ‘तुगलकी फरमान’ बताते हुए कहा कि “आयोग को बिहार का इतिहास और भूगोल का कुछ नहीं पता। बरसात और खेती के मौसम में चुनाव या पुनरीक्षण की प्रक्रिया आम जनता के लिए परेशानी का कारण बनती है। कागज़ जमा करने में हमें ही 10 दिन लग गए। आयोग को व्यवस्था में व्यवहारिकता लानी चाहिए थी।”
मयसीमा को भी अपर्याप्त बताया
इसके कुछ ही समय बाद पटना में जदयू विधायक डॉ. संजीव कुमार ने भी प्रेस को संबोधित करते हुए कहा कि SIR की टाइमिंग पूरी तरह अव्यवहारिक है। उन्होंने कहा, “बड़ी संख्या में बिहार के लोग दूसरे राज्यों में रहते हैं। इतने कम समय में वे कैसे आकर मतदाता सूची में नाम जोड़ सकेंगे या सुधार कर पाएंगे? अगर SIR करना ही था तो इसे होली या गर्मी की छुट्टियों के समय शुरू किया जाना चाहिए था।” डॉ. संजीव ने चुनाव आयोग द्वारा निर्धारित समयसीमा को भी अपर्याप्त बताते हुए कहा कि इसका सीधा असर लाखों प्रवासी बिहारियों पर पड़ेगा। उन्होंने आयोग की “व्यवहारिक समझ पर सवाल उठाया।”
तेजस्वी यादव के समर्थन में भी बयान
गिरधारी यादव ने इसके साथ ही तेजस्वी यादव के समर्थन में भी बयान देते हुए कहा कि “कुछ राजनीतिक ताकतें तेजस्वी की लोकप्रियता से डरी हुई हैं और उन्हें निशाना बना रही हैं।” उन्होंने तेजस्वी को युवाओं की आवाज बताते हुए कहा कि उनका बिहार के भविष्य में बड़ा योगदान होगा।
जदयू के शीर्ष नेतृत्व में बगावती सुर?
अब सवाल यह है कि जदयू के शीर्ष नेतृत्व इस बगावती सुरों को कैसे संभालते हैं और चुनाव आयोग इस विवाद पर क्या प्रतिक्रिया देता है। इतना तय है कि SIR की टाइमिंग और प्रक्रिया को लेकर जदयू के भीतर ही “दो फाड़” की स्थिति पैदा हो चुकी है, जो आने वाले समय में पार्टी के लिए चुनौती बन सकती है।
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