झारखंड के चुनाव के नतीजे आ रहे हैं लेकिन अब ये साफ दिख रहा है कि भाजपा वहां सत्ता से गायब हो रही है और झारखंड मुक्ति मोर्चा गठबंधन सत्ता में आ गई है. ये जीत भाजपा के राष्ट्रीय मुद्दों पर कांग्रेस के स्थानीय मुद्दों की जीत है. लेकिन तमाम स्थानीय मुद्दों के साथ जेएमए गठबंधन  जिस मुद्दे को लेकर जनता के बीच गई थी वो छत्तीसगढ़ का किसान केंद्रित मॉडल था. जिसमें कर्जमाफी और धान का समर्थन मूल्य 2500 रुपये देना है.

प्रचार में आलम ये था कि कई बार स्थानीय कांग्रेस नेताओं ने प्रचार में आए अपने राष्ट्रीय स्तर के नेताओं से अनुरोध किया कि वे छत्तीसगढ़ के धान के मुद्दे को उठाएं. कांग्रे के बड़े नेताओं ने अपने भाषण में छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा दिए जा रहे धान के समर्थन मूल्य के मुद्दे को ज़ोर-शोर से उठाया. कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे राहुल गांधी भी अपने हर भाषण में छत्तीसगढ़ के किसान केंद्रित मॉडल को जनता के सामने रखते रहे और उसी तरह झारखंड के विकास का वादा करते रहे. भूपेश बघेल समेत जहां कांग्रेस के छत्तीसगढ़ के नेता झारखंड चुनाव प्रचार में गए उन्होंने  छत्तीसगढ़ के मॉडल को जनता के सामने रखा.

दरअसल, इस बात को समझना होगा कि झाऱखंड में मुख्य फसल धान है. वहां करीब 70 लाख मीट्रिक टन चावल का उत्पादन होता है लेकिन सरकार केवल 5 लाख टन चावल ही समर्थन मूल्य पर खऱीदती है. जिससे धान उत्पादक ज़रुरत के बाद बचा चावल कम दाम पर बेचने को मजबूर होते हैं. ऐसी स्थिति में छत्तीसगढ़ में 80 लाख मीट्रिक टन चावल 2500 रुपये की दर से सरकार का खरीदना उन्हें एक विकल्प के रुप में नज़र आया. ये बात भी महत्वपूर्ण है कि उत्तरी छत्तीसगढ़ में बड़ी संख्या में झारखंड से माइग्रेशन हुआ है. लिहाज़ा छत्तीसगढ़ का मॉडल उनके झारखंड के रिश्तेदारों के साथ होने वाली चर्चाओं के ज़रिए भी पहुंचा होगा.

हालांकि ये जीत सिर्फ छत्तीसगढ़ के कांग्रेस के म़ॉडल के बूते नहीं मिली है बल्कि इसमें भाजपा शासन के कारगुज़ारियों और केंद्र में उनकी नीतियों से जनता के न जुड़ने का मसला भी शामिल है.  भाजपा को लगा कि वो राष्ट्रीय मुद्दे उठाकर चुनाव को मोदी बनाम सोरेन बना देगी. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह अपने भाषणों में एनआरसी, राममंदिर को उठाते रहे. लेकिन जनता ने असल मुद्दे को चुना.

भाजपा को उम्मीद थी कि राममंदिर, 370 और सीएए के हटाने का फायदा उसे मिलेगा. लेकिन इस मुद्दे को जनता ने बिल्कुल भी तवज्जो नहीं दिया. आर्थिक मंदी और बेरोजगारी भी भाजपा की हार का बड़ा कारण साबित हुई है. झारखंड के गांवों में पानी बड़ी समस्या है. लेकिन इस मुद्दे की जगह भाजपा राममंदिर को उठाती रही. माना जा रहा है कि ये जनाधार असल मुद्दों को छोड़कर इन मुद्दो के उठाने को लेकर भी है.

स्थानीय स्तर पर रघुवर दास की छवि और उनके कामकाज का नतीजा भी भाजपा को भुगतना पड़ा. रघुवर दास  सरकार के काश्तारी कानून में बदलाव जैसे फैसलों ने उनकी छवि पर बहुत चोट पहुंचाई और अब चुनाव नतीजें भी बताते हैं कि आदिवासी वोटबैंक इस बार भाजपा के साथ नहीं गया. चुनाव नतीजें बताते हैं कि मुख्यमंत्री रघुवर दास के प्रति जनता की नाराजगी उसको महंगी पड़ी

विपक्ष ने आदिवासी के लिए जल-जंगल और जमीन का मुद्दा उठाते हुए सीएनटी-एसपीटी एक्ट के मुद्दें को खूब जोर शोर से उठाया. इसके साथ ही मॉब लिचिंग और भुखमरी से हुई मौतों को भी विपक्ष ने चुनावी मंचों पर खूब जोर शोर से उठाया. झारखंड़ मुक्ति मोर्चा के कार्यकारी अध्यक्ष और अब मुख्यमंत्री बनने की दौड़ में सबसे आगे हेमंत सोरेन ने झारखंड़ को लिंचिग फ्री राज्य का वादा करके एक विशेष समुदाय के वोट बैंक को अपनी तरफ खींच लिया.