Jharkhand: झारखंड हाईकोर्ट (High court) ने मेडिकल क्लेम (Medical Claim) की सुनवाई के दौरान एक अहम फैसले में कहा मानसिक बीमारी के इलाज में होने वाले खर्च को क्लेम के दायरे से बाहर नहीं किया जा सकता, कोई भी कंपनी अपने कर्मचारियों को मेडिकल क्लेम के भुगतान में शारीरिक और मानसिक बिमारी के नाम पर भेदभाव नहीं कर सकती है. हाईकोर्ट ने कंपनी से कहा कि, याचिकाकर्ता की पत्नी के मानसिक इलाज पर किए गए खर्च का भुगतान करे. कोर्ट ने एक कोल कंपनी के रिटायर्ड एग्जीक्यूटिव की याचिका की सुनवाई के दौरान यह फैसला सुनाया है.

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झारखंड हाईकोर्ट के जस्टिस आनंद सेन की बेंच ने झारखंड स्थित कोल इंडिया की सहयोगी कंपनी बीसीसीएल (भारत कोकिंग कोल लिमिटेड) के रिटायर एग्जीक्यूटिव की याचिका पर सुनवाई की. मेडिकल क्लेम पर लगाई गई याचिका पर कोर्ट ने बीसीसीएल (BCCL) को याचिकाकर्ता की पत्नी के इलाज पर किए गए खर्च का भुगतान करने का आदेश जारी किया है.

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शारीरिक और मानसिक बीमारियों के इलाज में भेदभाव गलत’

BCCL ने कोल इंडिया और उसकी सहयोगी कंपनियों में लागू ‘कंट्रीब्यूटरी पोस्ट रिटायरमेंट मेडिकेयर स्कीम फॉर एक्जीक्यूटिव्स ऑफ सीआईएल एंड इट्स सब्सिडियरीज’ के प्रावधान का हवाला देते हुए मानसिक बीमारी के इलाज में किए गए खर्च का भुगतान करने से इनकार कर दिया था. कोर्ट ने मामले की सुनवाई के बाद अपने फैसले में कहा कि मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 की धारा 21 यह स्पष्ट करती है कि शारीरिक और मानसिक बीमारियों के इलाज में भेदभाव नहीं किया जा सकता. 

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मेडिकल क्लेम पर झारखंड HC ने क्या कहा?

हाईकोर्ट ने मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम का हवाला देते हुए कहा है कि प्रत्येक बीमाकर्ता को मानसिक रोगों के उपचार के लिए उसी तरह की स्वास्थ्य बीमा सुविधा प्रदान करनी होगी, जिस तरह शारीरिक बीमारियों के लिए की जाती है. HC ने कहा, “भारत सरकार के अधिनियम के अनुसार, किसी भी स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी में मानसिक रोगों के उपचार को बाहर करने के लिए प्रावधान नहीं हो सकता.” 

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HC ने पाया कि कोल इंडिया और इसकी सहयोगी कंपनियों में मेडिकल बीमा की जो योजना लागू है, उनमें मानसिक रोगों के उपचार के खर्च के भुगतान का प्रावधान नहीं है. इसके बावजूद यह प्रावधान मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों के सीधे विरोध में है. 

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हाईकोर्ट ने कहा कोई भी नीति संसद से पारित कानून के खिलाफ नहीं हो सकती

इस दौरान हाईकोर्ट ने कहा, “कोल इंडिया लिमिटेड और उसकी सहायक कंपनियां संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत ‘राज्य’ की परिभाषा में आती हैं. कोई भी नीति या उनकी संकल्प संसद द्वारा पारित किसी भी कानून के खिलाफ नहीं हो सकती. अगर कोई नीति या कोई भाग किसी संसदीय कानून के विपरीत है, तो उसका वह भाग अमान्य माना जाएगा.”

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