रायपुर. 25 मई 2013 की छठीं बरसी के मौके पर झीरम घाटी में नक्सली हमले में शहीद लोगों को श्रद्धांजलि दी गई. श्रद्धांजलि देेने वालों में सभी मंत्री और कांग्रेस के पदाधिकारी शामिल रहे. इस मौके पर टीएस सिंहदेव ने झीरम घाटी को एक साजिश करार देते हुए कई सवाल उठाए. इस घटना में किसी तरह अपनी जान बचाकर लौटने वाले लोग भी इस बात से नाराज दिखे कि उन्हें अब तक इंसाफ नहीं मिला.

टीएस सिंहदेव बताते हैं कि वे झीरम से घटना से पांच मिनट पहले निकले थे. टीएस सिंहदेव के पास भूपेश बघेल का फोन आया. भूपेश ने पूछा कि ‘महाराज आप ठीक हैं’. उन्होंने जब जवाब हां में दिया. तो भूपेश ने घटना के बारे में बताया. चूंकि टीएस सिंहदेव परिवर्तन तब यात्रा के प्रभारी थे. वो इन सबसे अगले दिन की तैयारियों के लिए कुछ समय पहले निकल गए थे. इसलिए हमले से बच गए.

राजीव भवन में शहीदों को श्रद्धांजलि देेने के बाद वे कई सवाल उठाते हैं. अपने स्वभाव के विपरीत आक्रोशित होकर इस घटना को हत्याकांड करार देते हैं. वे कहते हैं कि षडयंत्र का खुलासा होना ही चाहिए. इसकी तह तक जाना ही चाहिए. उन्होंने कहा कि जांच में एनआईए ने वो बिंदु रखे ही नहीं. जिससे इसकी साज़िश की पड़ताल हो सके.

टीएस सिंहदेव का कहना है कि गोलीबारी क्यों हुई. वहां सुरक्षा क्यों नहीं थी. नक्सली नंदकुमार पटेल और उनके गैर राजनितिक बेटे दिनेश पटेल को क्यों खोज रहे थे. जब तक इन बिंदुओं की पड़ताल नहीं होगी तो साजिश का खुलासा कैसे होगा. उन्होंने इस मामले में गठित कमीशन की रिपोर्ट को लेकर भी सवाल उठाए. टीएस सिंहदेव ने कहा कि इस मामले में हमने एसआईटी गठित की लेकिन अब तक एनआईए ने वो दस्तावेज़ और रिपोर्ट नहीं दिए हैं. जो उन्होंने जांच में पाया है.

कांग्रेस के ही शिव सिंह ठाकुर बताते हैं कि आज भी उनके बदन पर गोलियों के छर्रे मौजूद हैं. अक्सर वो 13 मई की घटना को याद कर सिहर उठते हैं जब दोनों तरफ से अंधाधुंध फायरिंग हो रही थी. सारे लोग एक-एक करके मारे जा रहे थे. उम्मीद नहीं थी कि वो बच पाएंगे लेकिन किस्मत तेज़ थी कि गोली लगने के बाद भी शिवसिंह ठाकुर बच गए. गोलियां उनके जिस्म से निकल गईं लेकिन गोलियों के छर्रे शरीर का हिस्सा बन चुके हैं. वो पूछते हैं कि तबके मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह ने सीबीआई जांच की बात विधानसभा में की थी लेकिन इसकी जांच नहीं हुई. उन्होंने घटना के पीड़ितों को गृहमंत्री से मिलाने का वादा किया ताकि वे अपना दर्द उनके सामने रख सके. वो वादा भी अधूरा रहा. शिव सिंह ठाकुर भी कहते हैं कि साज़िश का खुलासा क्यों नहीं हो रहा है. बीजेपी सरकार ने कई नक्सलियों को गिरफ्तार कर बताया गया कि वे घटना में शामिल रहे फिर उनसे पूछताछ क्यों नहीं हुई. उनसे एनआईए ने भी पूछताछ नहीं की.

विद्याचरण शुक्ल के बेहद करीबी रहे दौलत रोहड़ा बताते हैं कि वीसी शुक्ल की समझदारी और दिलेरी से उन लोगों की जान बची. 80 साल से ज्यादा के रहे वीसी शुक्ला के सीने में गोली लगी थी. वो तब भी इस बात की चिंता कर रहे थे कि दौलत रोहड़ा समेत जो सहयोगी उनकी गाड़ी में मौजूद थे, उनकी जान बच जाए. गोलियों की आवाज़ों और बारुद की गंध के बीच वीसी सबको सीट के नीचे झुकने को कह रहे थे. गोलियां वीसी के पेट में लगी थीं. फिर भी उनका जज़्बा कायम था. घटना के बाद वीसी बुरी तरह ज़ख्मी हो गए और फिर दिल्ली के अस्पताल में इलाज के दौरान दम तोड़ दिया. दौलत इस बात पर हैरानी जताते हैं कि मामले के अहम चश्मदीद होने के बाद भी उनसे एनआईए ने पूछताछ नहीं की.