दुर्ग। गौठानों को ग्रामीण उद्यमिता केंद्र के रूप में बदलने की मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की सोच जिले के गांवों में मूर्त रूप लेती जा रही है. ग्राम पतोरा को लें, यहां की महिलाएं बोरी बनाने का कार्य कर रही हैं जो मूलतः मशीन से होने वाला कार्य है. यदि गाँव में आटोमैटिक वूवन सैक कटिंग एंड स्टिचिंग मशीन लगाई जाती तो इसकी लागत लगभग पंद्रह लाख रुपए होती, लागत की तुलना में रिटर्न काफी कम होता और रोजगार की संभावना भी क्षीण हो जाती, लेकिन इस उपक्रम में काफी बड़े बाजार की संभावना थी.
कलेक्टर डॉ. सर्वेश्वर नरेंद्र भुरे ने जिला पंचायत सीईओ अश्विनी देवांगन को इस संबंध में कम लागत में इस तरह के सेटअप की संभावनाओं की दिशा में कार्य करने कहा. देवांगन ने टेक्निकल को-आर्डिनेटर मनरेगा अहसान खान को इस कार्य के लिए लगाया. खान ने इस संबंध में कमाल का कार्य किया. रायपुर में जाकर उन्होंने आटोमैटिक सीविंग मशीन की स्टडी की. उन्होंने अपनी जुगाड़ मशीन स्वयं तैयार करने का निर्णय किया. अलग-अलग कंपोनेंट तैयार किये और दस दिनों की कड़ी मेहनत के बाद उन्हें जोड़ा. उपक्रम सफल रहा और अब हर दिन पांच सौ से हजार बोरों का उत्पादन यहां हो रहा है.
60 हजार बोरों की जरूरत – जिले में बड़े पैमाने पर वर्मी कंपोस्ट का उत्पादन हो रहा है और इसमें और भी वृद्धि किये जाने की दिशा में निरंतर कार्य हो रहे हैं. पतोरा में जो सेटअप लगा है उससे हर घंटे लगभग सौ बोरे तैयार हो सकते हैं. इस तरह पाटन ब्लॉक में ही मार्केट कैप्चर करने की बड़ी संभावनाएं इसमें है.
ग्राम संगठन की सदस्य नंदा श्रीवास ने बताया कि हमें यह काम बहुत अच्छा लग रहा है. अभी हम लोग 6 महिलाएं यह कार्य कर रही हैं. प्रति बोरे के पीछे हमें दो रुपए का लाभ हो रहा है. यदि किसी दिन 600 बोरा बना लिया तो बारह सौ रुपए का लाभ हो गया. इस प्रकार हर महीने ग्राम संगठन को चालीस से पचास हजार रुपए लाभ की संभावना इस सेटअप से बनती है. जन प्रतिनिधि गोपेश साहू ने बताया कि ग्राम संगठन की महिलाएं बहुत रुचि से कार्य कर रही हैं और इस कार्य में पूरी तरह कुशल हो गई हैं.
धमधा ब्लॉक में भी शीघ्र शुरू होगा – निकुम में भी बोरा बनाने के सेटअप का काम लगभग पूरा हो चुका है, और शीघ्र ही यह आरंभ हो जाएगा. इसके बाद धमधा ब्लाक में भी सेटअप शुरू कराने की योजना है.
स्वावलंबन का सुंदर उदाहरण – पतोरा के इस सेटअप में उद्यमिता और ग्रामीण अर्थशास्त्र से जुड़ी कई खूबियां मौजूद हैं. महात्मा गांधी के सुराजी गांवों के सेटअप में उद्यम की परिभाषा ऐसी दी गई है जिसमें दूसरों पर निर्भरता न्यूनतम हो. अब गाँव में गौठान है. गोबर है वर्मी कंपोस्ट है और उसे भरने के लिए बोरा भी अपने ही मशीन का है, किसी भी तरह से निर्भरता नहीं है. साथ ही कास्ट कटिंग का भी यह खूबसूरत नमूना है कि किस तरह से ऊर्वर मस्तिष्क से और चीजों को नये तरीके से करने की सोच बड़े बदलाव का कारक बनती हैं.
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