रायपुर।  छत्तीसगढ़ की राजनीति में अपने जीवनकाल में सबसे ताकतवर और प्रभावशील नेता रहे विद्याचरण शुक्ल भले ही अब जीवित नहीं है, लेकिन प्रदेश की सियासत में वे आज भी जिंदा है और उनके नाम का प्रभाव भी दिखता है. शायद यही वजह है कि वीसी के प्रभाव पर राजनीतिक दांव खेलने की तैयारी नेताओं ने शुरू कर दी है.

बड़ी खबर और दिलचस्प बात ये है कि कभी वीसी के करीबी रहे पूर्व मंत्री विधान मिश्रा अब अजीत जोगी के साथ जनता कांग्रेस में है. उसी अजीत जोगी के साथ जिनका वीसी शुक्ल के साथ 36 का आंकड़ा था और दोनों एक दूसरे के धुर विरोधी थे. लेकिन राजनीति और बदलते हालात क्या ना करा दे. अब अजीत जोगी की पार्टी जनता कांग्रेस की ओर से 15 नवंबर को विधान मिश्रा, धर्मजीत सिंह और गजराज पगारिया ने सीएम से मुलाकात कर प्रदेश के किसी बड़े संस्थान का नाम वीसी शुक्ल के नाम पर करने की मांग की. जोगी कांग्रेस के नेताओं ने यह मांग की झीरमघाटी नक्सल हमले में मौत के 4 साल बाद भी वीसी शुक्ल की ना तो कहीं प्रतिमा लगी है, और ना किसी संस्थान का नाम उनके नाम पर किया गया है.

लल्लूराम डॉट कॉम से बातचीत में विधान मिश्रा ने कहा कि छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण आंदोलन से जुड़े रहने वाले वीसी शुक्ल केन्द्र सरकार में कई बार मंत्री सहित विभिन्न पदों पर रहे हैं. प्रदेश के भीतर उनके चाहने वालों की संख्या लाखों में हैं. ऐसे में शुक्ल के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि देने का काम तब होगा जब सरकार प्रदेश के किसी बड़े विश्वविद्यालय, रेल्वे स्टेशन, आईआईटी अन्य किसी बड़े संस्थान का नाम उनके नाम करे.

अब सवाल ये है कि आखिर वीसी शुक्ल को लेकर राजनीतिक पार्टियों की सक्रियता बढ़ी क्यों ?  दरअसल बीते दिनों छत्तीसगढ़ के प्रवास पर आए पीएल पुनिया ने भी वीसी शुक्ल को याद करते हुए कहा था कि कांग्रेस ने वीसी को नज़र अंदाज कर जोगी को सीएम बनाया था.  ठीक इसके बाद जनता कांग्रेस की ओर से पू्र्व मंत्री विधान मिश्रा कहा था कि पुनिया ब्राम्हण वोटरों को साधने  के लिए अब विद्याचरण शुक्ल का सहारा ले रहे हैं. विधान मिश्रा ने कांग्रेस से पूछा था कि 2000 में विद्याचरण को नजर अंदाज कर जोगी को सीएम बनाया गया था, तो फिर 2008 और 2013 के समय परिणामों की समीक्षा क्यों नहीं की गई,  वीसी शुक्ल को राज्यसभा क्यों नहीं भेजा गया, उनके मृत्यु के बाद उनके परिवार के सदस्यों को टिकट क्यों नहीं दी गई ?

सवाल ये भी उठ रहा होगा कि वीसी शुक्ल तो कांग्रेस में थे, फिर जनता कांग्रेस के नेता उनके लिए सीएम से क्यों मिल रहे हैं. सवाल ये भी उठ रहा है कि कांग्रेस की ओर से वीसी शुक्ल को नजर अंदाज करने की बात पहले क्यों नहीं कही गई थी ? जाहिर है इन सवालों का जवाब यही है कि 2003 का चुनाव जोगी कांग्रेसियों को भी याद है और कांग्रेस पार्टी को भी. तब वीसी शुक्ल ने एनसीपी का प्रदेश में नेृत्तव करते हुए सभी 90 सीटों में अपने प्रत्याशी कांग्रेस खिलाफ उतारे थे, और नतीजा 7.02 फीसदी वोट हासिल कर कांग्रेस को सत्ता से बेदखल कर भाजपा की जीत में सहायक बने थे.

2003 के चुनाव परिणाम का आंकलन करने से पता चलता है कि वीसी शुक्ल का प्रभाव प्रदेश की राजनीति में क्या रही है. 2003 में कांग्रेस का वोट प्रतिशत  36.71 था, और 38 सीटें मिली थी. वहीं बीजेपी का वोट प्रतिशत 39.26 था और उन्हें 50 सीटें मिली थी. जबकि वीसी शुक्ल की पार्टी एनसीपी 7.02 प्रतिशत के साथ 1 सीट जीतने में कामयाब रही.  और इस तरह बीजेपी 3 प्रतशित के अंतर से सरकार में बनाने सफल रही थी. इसके बाद बीजेपी और कांग्रेस के बीच 2008 और 2013 में वोटों का अंतर तीन प्रतिशत कम होते हुए 0.75 प्रतिशत हो गया, लेकिन सरकार बीजेपी की बनती गई.

मतलब साफ है कि वीसी शुक्ल का ये राजनीतिक प्रभाव ही था जिसका असर तब भी था और शायद अब भी राजनीतिक दल के लोग महसूस करते हैं. ऐसे में कभी वीसी के समर्थक रहे नेता अब जोगी के साथ है और जोगी की क्षेत्रीय पार्टी चाहेगी कि शुक्ल के प्रभाव का पूरा लाभ उनकी पार्टी को मिले. और शायद यही कोशिश कांग्रेस की भी है कि 2018 के चुनाव में कहीं कोई चुक किसी ओर से ना हो. क्योंकि अजीत जोगी अब कांग्रेस पार्टी में है नहीं, लिहाजा वीसी के समर्थन में दोनों ही ओर पार्टी के नेता खुलकर बोल रहे हैं.