पत्रकार उमेश राजपूत हत्याकांड का खुलासा कब होगा. जांच में अबतक क्या हुआ. क्या परिजनों को न्याय मिल पायेगा. घटना के 11 साल बाद भी ये तमाम अनसुलझे सवाल जांच एजेंसियों को संदेह के घेरे में लाकर खड़ा कर देती है.
पुरुषोत्तम पात्र, गरियाबंद। 23 जनवरी 2011 को वरिष्ठ पत्रकार उमेश राजपूत की अज्ञात हमलावरों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी. घटना के तकरीबन 4 साल पुलिस जांच और 7 साल सीबीआई जांच के बाद भी कानून के हाथ आरोपियों के गिरेबान तक नही पहुंच पाए. परिजन शुरू से ही मामले की निष्पक्ष जांच और दोषियों पर कार्रवाई की मांग कर रहे हैं, लेकिन 11 साल बीत जाने के बाद भी उमेश के परिजनों को न्याय नहीॆ मिल पाया.
शहर के पत्रकारों, नेताओं, समाजसेवियों, गणमान्य नागरिकों, व्यापारियों एवं आम नागरिकों द्वारा प्रतिवर्ष 23 जनवरी को कार्यक्रम आयोजित कर उमेश राजपूत को श्रद्धांजलि दी जाती है. इस बार भी कार्यक्रम आयोजित कर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि दी गई. इस मौके पर पत्रकार उमेश राजपूत के शुभचिन्तकों ने एक बार फिर उनकी हत्या के आरोपियों का जल्द से जल्द खुलासा करने की मांग की है.
उमेश हत्याकांड मामले में सबसे हैरान कर देने वाली बात ये है कि उनकी हत्या शहर के बीचोबीच स्थित उनके निवास पर की गई. पुलिस स्टेशन से नजदीक ओर भीड़भाड़ वाला इलाका होंने के बाद भी हत्यारे भाग निकलने में कामयाब हो गए. घटना के समय घर पर तकरीबन 5 सदस्य मौजूद थे, लेकिन कोई भी हत्यारों को नही देख नहीॆ पाया. उमेश की हत्या इसलिए भी हैरान करने वाली घटना है कि छुरा शहर में उससे पहले या उसके बाद भी इस तरह की घटना कभी सामने नहीं आयी. फिर शांतिप्रिय शहर में एक पत्रकार की दर्दनाक हत्या के पीछे आखिर क्या वजह हो सकती है.
उमेश राजपूत की गिनती छुरा क्षेत्र के वरिष्ठ एवं तेजतर्रार पत्रकारों में होती थी. उन्होंने पत्रकारिता की शुरुआत अपने गृहनगर छुरा से की, उसके बाद रायपुर और महासमुंद में भी अपनी काबलियत का लोहा मनवाया. उन्होंने कम समय मे ही पत्रकार जगत में अच्छा मुकाम हासिल किया. ऐसे में एक काबिल पत्रकार की हत्या क्षेत्रवासियों के लिए भी किसी बड़ी क्षति से कम नहीं है. क्या उनकी काबलियत ही उनकी मौत का कारण बनी या फिर कोई और वजह से उनकी जान गई. ये तमाम सवाल है जिनके जवाब क्षेत्र की जनता भी जाननी चाहती है.