नई दिल्ली। असम मुख्यमंत्री के तौर पर आने वाले दिनों में शपथ लेने वाले हेमंत बिश्वा सरमा का सफर किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है. वर्ष 1993 में कांग्रेस में प्रवेश के बाद कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री पद की सशक्त दावेदारी करने वाले हेमंत बिश्वा सरमा ने भी खुद कभी नहीं सोचा होगा कि बतौर भाजपा विधायक दल के नेता के दौर पर वे असम के मुख्यमंत्री बनेंगे. लेकिन आज ऐसा ही होने जा रहा है.

नामचीन पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने अपनी पुस्तक ‘2019: How Modi Won India’ में हेमंत बिश्वा सरमा के जुड़े प्रसंगों को खासा स्थान दिया है. उन्होंने बताया कि किस तरह से कांग्रेस नेता राहुल गांधी के प्यारे कुत्ते PIDI ने राहुल गांधी के साथ हेमंत बिश्वा सरमा के रिश्तों में अहम भूमिका निभाई. यही नहीं कैसे अपने बेटे में मोह से दबी मां सोनिया गांधी ने सरमा को अपने निवास 10 जनपथ में सामने के रास्ते की बजाए पीछे के रास्ते से प्रवेश करने को मजबूर किया. राजदीप बताते हैं कि किसी तरह से कांग्रेस में पुराने नेतृत्व सोनिया गांधी और नए नेतृत्व राहुल गांधी के बीच छिड़े 2014 से 2016 तक चले शांत युद्ध के दौरान कांग्रेस पार्टी एक तरह से नेतृत्वहीन हो गई, बल्कि हेमंत बिश्वा सरमा जैसे रणनीतिकार को भी खो दिया.

सरदेसाई बताते हैं कि वर्ष 2014 लोकसभा चुनाव में मिली हार से असमी नेता हेमंत बिश्वा सरमा के लिए तीन बार के असम के मुख्यमंत्री रहे तरुण गोगोई के नेतृत्व को चुनौती देना का अवसर लेकर आया. सरमा ने सोनिया गांधी और उनके राजनीतिक सचिव अहमद पटेल के साथ हुई बैठक में बिना किसी लाग-लपेट के कहा कि अगर आप असम में अगला चुनाव जीतना चाहते हैं तो आपको कांग्रेस में पीढ़ि के बदलाव को स्वीकार करना होगा. कांग्रेस का नेतृत्व ने सरमा की दावेदारी की पुष्टि के लिए मलिल्कार्जुन खड़गे को गुवाहाटी भेजा. दिल्ली लौटे खड़गे ने सरमा के दावे पर सहमति जताते हुए बताया कि सरमा के पास 78 कांग्रेस विधायकों में से 52 विधायकों का समर्थन है. इसके बाद से पार्टी हाईकमान भी सरमा को नेतृत्व सौंपने पर राजी हो गया, लेकिन राहुल गांधी अड़ गए.

भाजपा में प्रवेश के बाद गुवाहाटी आगमन पर हेमंत बिश्वा सरमा का स्वागत करते समर्थक. (वर्ष 2015)

राहुल गांधी ने स्पष्ट कर दिया कि वे गोगोई को इस तरह से हटाए जाने के पक्षधर नहीं है. सोनिया गांधी केंद्र में सत्ता जाने के बाद राहुल गांधी की नाराजगी झेलने की लिए तैयार नहीं थी, लिहाजा असम में नेतृत्व परिवर्तन के मुद्दे को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया. इसके बाद सरमा ने पार्टी नेतृत्व पर दबाव बनाने के लिए मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. शारदा चिट फंड जैसे विवादों का सामना कर रहे सरमा पार्टी को यकायक छोड़ना नहीं चाह रहे थे. वर्ष 2015 में कोर्ट से राहत मिलने के बाद एक बार फिर पार्टी नेतृत्व को मनाने के लिए दिल्ली और गुवाहाटी के चक्कर लगाने लगे, लेकिन अहमद पटेल, गुलाम नबी आजाद जैसे वरिष्ठ नेताओं के समर्थन के बाद भी राहुल गांधी के वीटो की वजह से बात नहीं बन रही थी.

आखिरकार मार्च 2015 में राहुल गांधी के तुगलक रोड स्थित निवास में तरुण गोगोई और अमम कांग्रेस अध्यक्ष अंजन दत्ता की मौजूदगी में बैठक हुई. किताब में बताया गया है पांच मिनट की चर्चा के बाद ही राहुल गांधी की चर्चा में दिलचस्पी खत्म हो गई. उन्होंने गुस्से में सरमा से कहा, देखिए आपको जो करना है करिए. मुझे परवाह नहीं है. कृपया सीपी जोशी (कांग्रेस के असम प्रभारी) से बात करिए, वे आपका मुद्दा सुलझाएंगे. मेरे पास दोबारा मत आइए.

इसके बाद जो हुआ वह इतिहास का हिस्सा है, जिसकी हेमंत बिश्वा सरमा गाहे-बगाहे याद दिलाते रहते हैं. सरमा को हड़काने के बाद राहुल गांधी अपने प्यारे कुत्ते Pidi को टेबल में रखे प्लेट में से बिस्किट खिलाने लगे.

इस घटना के चंद दिन बाद सरमा ने सोनिया गांधी से मुलाकात करने की इच्छा जाहिर की. इस पर सोनिया गांधी ने उन्हें सामने के रास्ते से नहीं बल्कि पीछे के रास्ते से निवास में आने के लिए कहा. पुस्तक में सरमा को उद्धत करते हुए लिखा कि मैं सालों से सोनिया गांधी के साथ मिलता रहा हूं, ऐसा पहली बार हुआ जब मुझे सामने की बजाए पीछे के रास्ते से आने के लिए कहा गया. इस संबंध में जब मैने मैडम से पूछा तो उन्होंने कहा कि हेमंता आप भी पिता और पालक हो. एक मां होने के नाते आप समझ सकते हो कि मैं अपने बेटे की इच्छा के खिलाफ नहीं जा सकती. सरमा कहते हैं कि उस पल मुझे अहसास हो गया कि कांग्रेस में मेरा समय खत्म हो चुका है.

किताब में बताया गया है कि किस तरह से अगस्त 2015 में भाजपा के असम में महासचिव राम माधव के माध्यम से भाजपा में प्रवेश के बाद राहुल गांधी उनसे संपर्क करने के लिए लगातार प्रयास करते रहे. आखिरकार अनेक मिस कॉल के बाद जब राहुल गांधी से बात हुई तो सरमा ने दो टूक कह दिया कि माफ कीजिए राहुलजी, अमित शाहजी को मैने कमिटमेंट कर दिया है. अब बहुत देर हो चुकी है. बताने की जरूरत नहीं हेमंत बिश्वा सरमा के प्रवेश के साथ न केवल असम में बल्कि पूरे नार्थ-ईस्ट में एक सक्षम नेतृत्व की तलाश में जुटी भाजपा की मानो लाटरी निकल गई. आज केवल असम में ही नहीं बल्कि नार्थ-ईस्ट के तमाम राज्यों में भाजपा सत्ता पर काबिज है.