नई दिल्ली। कहते हैं पुत्र रत्न की प्राप्ति बगैर पितृऋण से मुक्ति नहीं मिलती है. पुत्र कुलतारण और वंशवृद्धि का कारक माना जाता है. हर मां-बाप अपनी संतान की ख़ुशी के लिए अपनी जिंदगी लुटाते हैं, फिर भी कुछ मां-बाप के हिस्से में सिर्फ आंसू ही आते हैं. ऐसा ही एक मामला बिहार के सीवान से आया है. जहां कोरोना के खौफ के कारण एक जज बेटे ने अपने पिता का शव लेने से इनकार कर दिया. 80 वर्षीय पिता को अंतिम दिनों में भी अपने ही पुत्र का साथ नहीं मिल सका.

जज बेटे ने शव लेने से किया इनकार

दरअसल, सीवान शहर के डायट परिसर में चल रहे डेडिकेटेड कोविड हेल्थ सेंटर में शुक्रवार की रात एडीजे जीवन लाल के 70 वर्षीय पिता ब्रह्मदेव की मौत हो गई. स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने रात में ही इसकी सूचना जज साहब को दी. स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने बताया कि जज साहब ने कहा कि डेड बॉडी हम अपने यहां नहीं लाएंगे. पूरा परिवार संक्रमित हो जाएगा. आप अपने स्तर से दाह-संस्कार करा दीजिए.

अस्पताल में ही पड़ी रही डेड बॉडी 

करीब 20 घंटे से अधिक समय तक डेड बॉडी अस्पताल में ही पड़ी रही. बाद में जिला प्रशासन के हस्तक्षेप के बाद जज साहब ने अधिवक्ता गणेश राम को पत्र देकर दाह-संस्कार के लिए अधिकृत किया. एसडीओ रामबाबू प्रसाद, नोडल पदाधिकारी डॉ अनिल कुमार सिंह और प्रभारी सीएस डॉ एमआर रंजन की उपस्थिति में शव को दिया गया.

डॉ एमआर रंजन ने बताया कि जज साहब ने मुझे प्रेषित पत्र में अधिवक्ता गणेश राम को डेड बॉडी देने की बात लिखी थी. जिला प्रशासन ने समाजसेवी श्रीनिवास यादव के सहयोग से कंधवारा दहा नदी के तट पर जज साहब के पिताजी का अंतिम संस्कार करवाया. गौरतलब है कि तीन दिन पहले जज साहब के पिताजी का ऑक्सीजन लेबल कम होने पर डीसीएचसी में भर्ती किया गया था.

स्वास्थ्य विभाग के पदाधिकारियों ने बताया कि कोई अटेंडेंट नहीं होने से काफी परेशानी हो रही थी. सिविल सर्जन ने कहा कि जज साहब को डेड बॉडी ले जाने के लिए कई बार फोन किया गया, लेकिन उन्होंने फोन रिसीव नहीं किया. उन्होंने बताया कि इसके बाद उन्होंने एक वकील के माध्यम से शव के दाह संस्कार की अनुमति दी. समाजसेवी के माध्यम से अंतिम संस्कार कराया गया.