अमृतसर : पंजाब के अमृतसर जिले में 22 अप्रैल 1993 को हुई एक फर्जी मुठभेड़ ने एक परिवार को तहस-नहस कर दिया था। इस मुठभेड़ में पंजाब पुलिस के कांस्टेबल सुरमुख सिंह को तत्कालीन एसपी परमजीत सिंह ने आतंकवादी करार देकर मार गिराया था।

अब 33 साल बाद मोहाली की सीबीआई अदालत ने इस मामले में फैसला सुनाते हुए पूर्व एसपी परमजीत सिंह को 10 साल की सजा और 50,000 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई है। हालांकि, पीड़ित परिवार इस फैसले से पूरी तरह संतुष्ट नहीं है और इसे ‘अधूरा इंसाफ’ मान रहा है।

पीड़ित पत्नी की आपबीती

सुरमुख सिंह की पत्नी शरणजीत कौर ने अपनी पीड़ा साझा करते हुए कहा, “मेरे विवाह को सिर्फ चार महीने हुए थे। मैं गर्भवती थी और मेरे गर्भ में चार महीने का बेटा था। तभी खबर आई कि मेरे पति को पंजाब पुलिस ने फर्जी मुठभेड़ में मार दिया और उन्हें आतंकवादी बताया। यह मेरे लिए सदमे से कम नहीं था। मैं एक नई-नवेली दुल्हन थी, मेरे हजारों सपने और इच्छाएं एक झटके में चकनाचूर हो गईं। मेरे हाथों की मेहंदी और सुहाग का चूड़ा भी फीका नहीं पड़ा था। मुझे मेरे पति की लाश तक देखने नहीं दी गई। पुलिस ने उसे लावारिस बताकर उसका अंतिम संस्कार कर दिया। उसी दिन मैंने कसम खाई थी कि मैं अपने पति को इंसाफ दिलाऊंगी।” शरणजीत कौर को इंसाफ के लिए 33 साल तक इंतजार करना पड़ा।

परिवार का दावा ये है फर्जी मुठभेड़ का सच

परिवार के अनुसार, सुरमुख सिंह को 18 अप्रैल 1993 को एसपी परमजीत सिंह और अन्य पुलिस अधिकारियों ने उनके घर से उठाया था। इसके बाद, उन्हें आतंकवादी घोषित कर 22 अप्रैल को फर्जी मुठभेड़ में मार दिया गया। सीबीआई अदालत के फैसले के बाद सुरमुख सिंह के बेटे चरणजीत सिंह ने कहा, “मैंने अपने पिता को कभी नहीं देखा। 33 साल बाद मेरे पिता पर लगे आतंकवादी होने का दाग हटा, लेकिन यह इंसाफ अधूरा है। इस मुठभेड़ में चार पुलिसकर्मी शामिल थे, लेकिन सजा सिर्फ एक को मिली है। बाकी तीन आरोपी आजाद घूम रहे हैं। हम सुप्रीम कोर्ट में अपील करेंगे ताकि सभी दोषियों को सजा मिले।”

पुलिस की नौकरी की मांग

चरणजीत सिंह ने बताया कि फर्जी मुठभेड़ के बाद उनके पिता को पुलिस नौकरी से भी हटा दिया गया था, जिससे परिवार की आजीविका छिन गई। उन्होंने कहा, “अदालत ने साबित कर दिया कि मेरे पिता बेगुनाह थे। अब मुझे उनके हक मिलने चाहिए। मुझे पुलिस में नौकरी दी जानी चाहिए और मेरे पिता के सभी अधिकार मुझे सौंपे जाने चाहिए।” चरणजीत ने यह भी बताया कि उनका परिवार गरीबी में जी रहा है और उन्होंने अपने पिता को केवल तस्वीरों में देखा है। “हर बार उनकी तस्वीर देखकर मेरी आंखें भर आती हैं। अगर वे आज जीवित होते, तो हमारी जिंदगी अलग होती।”


परिवार ने कहा कि अदालत का फैसला राहत देने वाला है, लेकिन इंसाफ अभी अधूरा है। वे सुप्रीम कोर्ट में अपील करेंगे और सभी दोषियों को सजा मिलने तक अपनी लड़ाई जारी रखेंगे। यह मामला पंजाब में उस दौर की फर्जी मुठभेड़ों की कड़वी सच्चाई को उजागर करता है, जब कई बेगुनाह लोग आतंकवाद के नाम पर शिकार बनाए गए थे।