‘कैश कांड’ मामले में घिरे दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस यशवंत वर्मा ने लोकसभा स्पीकर की ओर से गठित तीन सदस्यीय समिति को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है। यह मामला संसद में जस्टिस वर्मा को पद से हटाने की प्रक्रिया से जुड़ा हुआ है। सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए लोकसभा और राज्यसभा दोनों के सचिवालय को नोटिस जारी किया है और उनसे 7 जनवरी तक जवाब मांगा है। अदालत ने इस मामले को जनवरी के पहले हफ्ते में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है। सुनवाई के दौरान जस्टिस दीपांकर दत्ता ने मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा कि क्या कानून बनाने वालों को यह भी नहीं पता कि ऐसा नहीं किया जा सकता?

जस्टिस वर्मा की दलील

जस्टिस वर्मा की दलील है कि संसद द्वारा अपनाई गई मौजूदा प्रक्रिया गलत है। उनका कहना है कि जजेज इन्क्वायरी एक्ट के तहत किसी जज को हटाने की प्रक्रिया तभी आगे बढ़ सकती है, जब लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदन प्रस्ताव को स्वीकार करें और उसके बाद एक संयुक्त समिति (जॉइंट कमेटी) का गठन किया जाए। लेकिन इस मामले में सिर्फ लोकसभा ने प्रस्ताव पारित किया है, जबकि राज्यसभा में यह प्रस्ताव अभी लंबित है। जस्टिस वर्मा का यह भी कहना है कि 21 जुलाई को जब दोनों सदनों में उन्हें हटाने का प्रस्ताव पेश किया गया था, तब आगे की जांच के लिए दोनों सदनों की संयुक्त समिति बननी चाहिए थी। ऐसे में केवल लोकसभा स्पीकर द्वारा समिति का गठन करना कानून के खिलाफ है।

क्या है मामला?

गौरतलब है कि इस साल जज जस्टिस यशवंत वर्मा के दिल्ली स्थित सरकारी बंगले में 14-15 मार्च की रात आग लगने की घटना सामने आई थी। आग बुझाने के दौरान फायर सर्विस को स्टोर रूम से जले हुए नोटों की गड्डियां मिलीं, जिनके वीडियो भी वायरल हुए थे। उस समय जज वर्मा बंगले में मौजूद नहीं थे और उनकी पत्नी ने पुलिस व फायर विभाग को सूचना दी। जांच में यह कैश अनएकाउंटेड बताया गया। घटना के एक हफ्ते बाद जस्टिस वर्मा का दिल्ली हाई कोर्ट से इलाहाबाद हाई कोर्ट ट्रांसफर कर दिया गया, जहां उन्हें फिलहाल कोई न्यायिक कार्य नहीं सौंपा गया है।

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