विश्व के महान दार्शनिक विचारक और कवि संत कबीर दास संवत 1455 में ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन काशी के लहर तालाब में कमल पुष्प पर प्रगट हुए थे. जिसे उनकी जन्मतिथि माना गया. उनके जन्म के बारे में कई किदवंती हैं, इसलिए उनके वास्तविक माता-पिता के संबंध में स्पष्ट जानकारी नहीं है. लेकिन पालन पोषण करने वाले नीरू नीमा नाम के जुलाहे दंपत्ति को ही उनका माता-पिता माना जाता है. उनके जन्म के समय भारतीय इतिहास का मध्य काल था और देश में मुगलों का साम्राज्य था.

समाज में उस समय विभिन्न प्रकार की सामाजिक बुराइयां व्याप्त थी. जहां पाखंड, जात-पात, छुआछूत, अंधश्रद्धा, कर्मकांड संप्रदायिकता की होड़, हिंदू मुस्लिम धर्म के ठेकेदारों का ढोंग चरम सीमा पर था. आम जनमानस में धर्म के प्रति कई भ्रांतियां थी और वे पूरी तरह से दिग्भ्रमित थे. उस समय कबीर साहेब लोगों में दिव्य दृष्टि, सामाजिक चेतना और जागृति के लिए एक वरदान साबित हुए. कबीर साहेब ने सत्य और असत्य में फर्क करना सिखाया और उनकी वाणी-वचनों से लोगों में नई सूझ-बूझ की शक्ति पैदा हुई. उन्होंने अपने वाणी-वचनों से लोगों की अध्यात्मिक जिज्ञासाओं को शांत किया. कबीर साहेब की बातें और ज्ञान किंतु, परंतु, लेकिन से रहित है. वे सीधा और स्पष्ट बोलते हैं. काने को काना कहने से वे तनिक भी फर्क नहीं करते. सत्य बोलने में जरा भी नहीं झिझकते. उनकी बातें आज के परिदृश्य में भी प्रासंगिक है. अपनों को खोने वाले आज उनकी वाणी वचनों का अध्ययन कर लें, तो आशावादी होकर आध्यात्मिक उत्थान की ओर अग्रसर हो जाएंगे.

कबीर को आत्मसात करती सरकार

वर्तमान समाज में जहां क्षेत्रवाद, पाखंड और राजनीतिक द्वेष व्याप्त है, ऐसे में छत्तीसगढ़ समेत कई राज्यों में नक्सलवाद और देश-दुनिया में आतंकवाद भी एक बड़ी समस्या है. इन परिस्थितियों से लड़ने में कबीर की वाणी वचन ही कारगर साबित होगी. छत्तीसगढ़ की वर्तमान भूपेश सरकार ने कबीर की वाणी ‘साईं इतना दीजिए, जामे कुटुंब समाय, मैं भी भूखा ना रहूं, साधु ना भूखा जाए’ को आत्मसात सभी वर्ग के लोगों को चावल दे रही है. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल किसान, मजदूर, आदिवासी, दाई-दीदी समेत सभी वर्ग के लिए कल्याणकारी योजना संचालित कर रहे हैं.

कबीर वाणी से साहस और चेतना

वर्तमान में भी मध्यकाल की तरह आडंबर और अंधश्रद्धा का झूठा जाल फैला है, जो लोगों को भ्रमित करने वाला है. ऐसे में कबीर साहेब की वाणी वचन आज भी प्रासंगिक है. उनकी वाणी वचन लोगों में आज भी जन चेतना और साहस पैदा कर रहा है. कबीर की वाणी वचनों को उनके अनुयायियों ने लिपिबद्ध किया है. वे एक ईश्वर को मानते हैं. वे कर्मकांड के घोर विरोधी थे. एचएस विलियम के अनुसार कबीर साहेब के कुल 8 ग्रंथ हैं. विशप जी. एच. वेस्टकॉट के अनुसार उनके 84 ग्रंथ हैं. वहीं रामदास गौड़ ने उनकी 71 पुस्तकें गिनाई हैं. इसमें सबसे प्रमुख बीजक के नाम से प्रसिद्ध है. कबीर साहेब के अनुयायी हिंदू मुस्लिम दोनों थे. उन्होंने पाखंड का पुरजोर विरोध किया. उनकी मृत्यु 119 वर्ष में संवत 1575 में मघहर में मानी जाती है. किदवंतियों के अनुसार वे अंतर्ध्यान हुए थे. उन्होंने इस संसार को प्रेम और शांति का संदेश दिया.

कबीरपंथ और गुरु गद्दी

छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में कबीर पंथ का व्यापक प्रभाव रहा है. दरअसल कबीर साहेब ने बांधवगढ़ के धनी धर्मदास को अपना शिष्य बनाकर अटल 42 वंश की गुरुवाई गद्दी का आशीर्वाद दिया. इसी क्रम में चुरामणि नाम साहेब कुदुरमाल कोरबा में अपनी गुरु गद्दी बनाई, फिर सुदर्शन नाम साहेब ने गुरु गद्दी रतनपुर में बनाई. आगे कुलपति नाम साहेब पुनः कुदुरमाल गए, फिर प्रमोद गुरु बालापीर नाम साहेब बंगोली रायपुर, दिल्ली और अंत में मंडला मध्यप्रदेश में रहे. उनके आगे के क्रम में केवल नाम साहेब धमधा दुर्ग में, अमोल नाम साहेब मंडला में सुरतिस्नेही नाम साहेब छिंदवाड़ा, सिंघोरी में, हक नाम साहेब कुदुरमल, रतनपुर, हाटकेश्वर, धमधा, सिंघोरी, नागपुर, राजनांदगांव, खैरागढ़ और अंत में कबीरधाम कवर्धा में गुरु गद्दी बनाए. उनके बाद पाक नाम साहेब, प्रकट नाम साहेब धीरज नाम साहेब ने कबीरधाम में गुरु गद्दी रखी, फिर उग्र नाम साहेब ने दामाखेड़ा बलौदा बाजार में गुरु गद्दी बनाई. तदोपरांत से दया नाम साहेब, गृन्धमुनि नाम साहेब, प्रकाशमुनि नाम साहेब और अब उदित मुनि नाम साहेब दामाखेड़ा में गुरु गद्दी संचालित कर रहे हैं. यही कारण है कि समूचे छत्तीसगढ़ के जनमानस में कबीर पंथ का गहरा प्रभाव है.

छत्तीसगढ़ में कबीरपंथी

प्रदेश में 80 लाख से अधिक लोग कबीरपंथी हैं. कबीर पंथ सर्वधर्म समभाव का प्रतीक है और मानव सेवा में ही विश्वास व्यक्त करता है. कबीर पंथ सभी धर्मावलम्बियों में आपसी सौहार्द्र स्थापित करता है. सतगुरू कबीर साहेब की गणना विश्व के महान संतों में है. उन्होंने भारतीय संस्कृति के गहनतम ज्ञान को सरलतम शब्दों में अपने दोहे और साखियों के माध्यम से कबीरदास आम जनमानस को समझाया. उनकी साखी और दोहे हमारे जीवन पर गहरा प्रभाव डालते हैं. साथ ही हमें जीवन जीने का तरीका सिखाते हैं. उनके वाणी-वचन मानव मन को सीधे प्रभावित करती है. इन रचनाओं में व्यक्त होने वाली शुद्ध-हृदयता, सामाजिक समरसता तथा सबसे बढ़कर सात्विक जीवन शैली को अपनाने की प्रेरणा, उन्हें आदर्श मानव जीवन के सफल निर्माता के रूप में स्थापित करती है. उनके विचार आज भी प्रासंगिक हैं. यही कारण है कि उनके एक-एक दोहे पर लोग पीएचडी कर रहे हैं. हमें उनके द्वारा स्थापित सामाजिक मूल्यों को मन, वचन और कर्म से आत्मसात कर जन-कल्याण को ही जग-कल्याण समझना है, ताकि सम्पूर्ण विश्व मानव धर्म मानवता, सत्य और प्रेम स्थपित हो सके.

लेखक, एन.डी.मानिकपुरी
अध्यक्ष, पदुमलाल पुन्नालाल बख़्शी शोधपीठ, छत्तीसगढ़ शासन

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