सेठ आरसीएस कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय में राष्ट्रीय संगोष्ठी
दुर्ग। कबीर दर्शन जीवन जीने की एक कला है. कबीर की साकियां आज भी उतना ही महत्वपूर्ण हैं, जितनी उस समय थीं. यह बात हेमचंद यादव विश्वविद्यालय की कुलपति डॉ. अरूणा पल्टा ने सेठ आरसीएस कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय में संत कबीर के जीवन मूल्य एवं समाज दर्शन विषय पर आयोजित संगोष्ठी में कही.
सेठ आरसीएस कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय और हेमचंद यादव विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में हिन्दी एवं समाजशास्त्र विभाग की ओर से आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के प्रथम दिवस की मुख्य वक्ता महाराष्ट्र के अकोला से डॉ. निभा एस. उपाध्याय ने कबीर के प्रचलित एवं प्रसिद्ध दोहों को विस्तार से बताया. उन्होंने कहा कि आज भी कबीर के दोहे समाज के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. कबीर ज्ञान का पुंज हैं. कबीर वाणी अमृत वाणी है. जो साहित्य और समाज का एक अभिन्न अंग है.
कार्यक्रम के अध्यक्षता कर रहे पूर्व प्राचार्य डॉ. महेश चन्द्र शर्मा ने कहा कि कबीर ने रुढ़िवादियों पर अपने दोहों के माध्यम से कड़ा प्रहार किया और ढोंगी-पाखंडों की कड़ी आलोचना की है. महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. गजानंद कटहरे ने कहा कि कबीर की साकियों इतनी प्रसिद्ध है कि लोग आधे साकियों से ही पूरा अर्थ समझ जाते हैं. जिला शिक्षण समिति दुर्ग के अध्यक्ष प्रवीण चन्द्र तिवारी ने कहा कि कबीर के दोहे समाज में व्याप्त बुराइयों और अंधविश्वास को दूर करते हैं.
संगोष्ठी के द्वितीय सत्र के मुख्य वक्ता दुर्गा महाविद्यालय रायपुर के हिन्दी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष आचार्य बालचंद कछवाहा ने कबीर के भाव को व्यक्त करते हुए धर्म और संस्कृति के बारे में अपना व्याख्यान प्रस्तुत किया. अध्यक्षता कर रहीं दुर्गा महाविद्यालय रायपुर के दर्शनशास्त्र विभागाध्यक्ष डॉ. रंजना शर्मा ने कबीर के साकियों को दर्शनशास्त्र की दृष्टिकोण से समझाते हुए कहा कि दर्शन यह बताता है कि जीवन को किस दृष्टि देखें और किस मार्ग पर चलें.
शोध संगोष्ठी में विभिन्न महाविद्यालयों के प्राध्यापकगण एंव शोधार्थी एवं कबीर के अनुयायी भी उपस्थित थे. कार्यक्रम का संचालन संगोष्ठी के परामर्शदाता योगाचार्य मंगलदास मंगलम एवं हिन्दी विभाग की विभागध्यक्ष डॉ. दुर्गा शुक्ला ने किया. अतिथियों का आभार प्रदर्शन आईक्यूएसी समन्वयक डॉ. पूजा मल्होत्रा ने किया.
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