भोपाल। मध्य प्रदेश में खंडवा लोकसभा सहित तीन विधानसभाओं में आज उपचुनाव हो रहे हैं। सुबह 7 बजे से ही चारों सीटों पर मतदान जारी है। इन चुनावों में दोनों ही राष्ट्रीय दलों बीजेपी और कांग्रेस ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। कोरोना की दूसरी लहर और बढ़ती महंगाई के बीच हो रहे इन चुनावों को जहां साल 2023 में होने वाले चुनावों के पहले का सेमीफाइनल माना जा रहा है। वहीं इन चुनावों में दोनों दलों के दिग्गजों की साख भी दांव पर लगी हुई है। प्रदेश में सरकार होने के बावजूद बीजेपी दमोह उपचुनाव हार चुकी है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में हो रहे इन उपचुनावों को लेकर उनकी प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। वहीं तीन में से दो विधानसभा सीटों पर कांग्रेस काबिज थी लिहाजा कमलनाथ के नेतृत्व की भी यह उपचुनाव किसी परीक्षा से कम नहीं। साल 2018 का विधानसभा चुनाव में कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के नेतृत्व में लड़ा गया था। ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में जाने के बाद अब इसके परिणाम का दारोमदार भी कमलनाथ के ऊपर है। कांग्रेस की हार पर कमलनाथ के विरोधियों के सुर एक होकर तेज हो जाएंगे वहीं बीजेपी में शिवराज के नेतृत्व पर भी सवाल खड़े हो सकते हैं।

खंडवा लोकसभा- खंडवा लोकसभा सीट पर बीजेपी का कब्जा था। सांसद नंदकुमार चौहान का कोरोना से निधन के पश्चात इस सीट पर उपचुनाव हो रहे हैं। कांग्रेस से इस सीट पर पिछले 6 महीने से पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरुण यादव तैयारी कर रहे थे। इस सीट पर उनकी दावेदारी मजबूत थी लेकिन उन्होंने बीच में ही पारिवारिक कारण बताते हुए अपनी दावेदारी वापस ले ली थी। हालांकि अंदरुनी खबरों के मुताबिक अरुण यादव कांग्रेस के सर्वे में पिछड़ गए थे। अरुण यादव चुनाव में ऊपरी तौर पर सक्रिय जरुर थे लेकिन चुनाव नहीं लड़ने की उनकी तकलीफें गाहे बगाहे बाहर आते ही रही है। उपचुनाव के बीच में ही अरुण यादव के करीबी माने जाने वाले बड़वाह विधायक सचिन बिरला ने कांग्रेस से इस्तीफा देकर बीजेपी का दामन थाम लिया। सचिन बिरला के बीजेपी में जाने से यहां कांग्रेस को बड़ा झटका लगा। सचिन बिरला की गुर्जर समुदाय में खासी पकड़ है। हालांकि कांग्रेस ने इसकी भरपाई के लिए सचिन पायलट को प्रचार के लिए बुलाया था। साथ ही कमलनाथ के अलावा दिग्विजय सिंह ने भी यहां कांग्रेस प्रत्याशी के पक्ष में सभाएं की।

वहीं बीजेपी से टिकट नहीं मिलने पर नंदकुमार चौहान के पुत्र की नाराजगी भी सामने आ चुकी है। शुरुआती दौर में वे बीजेपी के किसी भी कार्यक्रम में शामिल नहीं हुए। उनके साथ जनता की भी सहानुभूति जुड़ी हुई थी। दूसरी दावेदार पूर्व मंत्री अर्चना चिटणीस भी हैं, टिकट नहीं मिलने से उनमें भी नाराजगी देखी गई। वहीं खंडवा में कई जगहों पर मतदाताओं में नाराजगी और मतदान के बहिष्कार की भी खबरें सामने आई है। जिन इलाकों से ऐसी खबरें आई है वहां लोगों में मूलभूत सुविधाओं की कमी की वजह से नाराजगी देखी गई। जिसे बीजेपी के लिए एंटी इनकम्बेंसी के रुप में देखा जा रहा है। हालांकि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सबसे ज्यादा आम सभाएं इसी क्षेत्र में ली और उन्होंने नाइट स्टे डिप्लोमेसी को अपनाते हुए लोगों के घरों में रात बिताई। वहीं बीजेपी ने अपने मंत्रियों को भी क्षेत्र में उतारा था।

इस सीट पर जीत का रास्ता आदिवासी क्षेत्रों से ही होकर गुजरता है। लिहाजा बीजेपी पिछले कुछ महीनों से आदिवासियों को साधने में लगी हुई थी। आदिवासियों को साधने के लिए जबलपुर में शिवराज सरकार ने केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह को बुलाकर एक बड़ा कार्यक्रम करवाया था। इसके साथ ही शिवराज सरकार ने आदिवासियों के घर तक राशन पहुंचाने की योजना की बड़ी घोषणा की थी।

जोबट – जोबट विधानसभा सीट कांग्रेस विधायक कलावती भूरिया के कोरोना से निधन के पश्चात खाली हुई थी। इस सीट पर कांग्रेस का दबदबा रहा है। एसटी वर्ग के लिए आरक्षित इस सीट पर पूर्व मंत्री सुलोचना रावत के कांग्रेस छोड़ने से पार्टी को बड़ा झटका लगा था। आदिवासी वोट बैंक में उनकी मजबूत पकड़ को देखते हुई बीजेपी ने उन्हें इस सीट से मैदान में उतारा है। वहीं कांग्रेस ने महेश पटेल को यहां पर चुनाव में उतारा है।

पृथ्वीपुर- निवाड़ी जिले की पृथ्वीपुर सीट पर कांग्रेस का कब्जा था। कांग्रेस ने यहां से दिवंगत विधायक बृजेन्द्र सिंह राठौर के पुत्र नितेन्द्र सिंह राठौर को चुनाव में उतारा है। उन्हें इस सीट पर सहानुभूति का भी लाभ मिलता नजर आ रहा है। वहीं बीजेपी ने इस सीट पर समाजवादी पार्टी से आए शिशुपाल यादव को मैदान में उतारा है। शिशुपाल को यहां बाहरी उम्मीदवार बताया जा रहा है। शिशुपाल यादव मूलतः उत्तर प्रदेश से आते हैं यहां स्थानीय और बाहरी के मुद्दे को कांग्रेस भुनाने की कोशिश में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी।

रैगांव – रैगांव सीट पर बीजेपी का दबदबा रहा है। 1977 से अस्तित्व में आई सतना जिले की रैगांव विधानसभा सीट पर अब तक 10 विधानसभा चुनाव हुए हैं। जिनमें से पांच बार बीजेपी ने जीत दर्ज की है तो दो बार इस सीट पर कांग्रेस को जीत मिली है। जबकि एक बार बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी ने विजयश्री हासिल की थी। इसके अलावा दो बार अन्य दलों के प्रत्याशियों ने भी यहां जीत का स्वाद चखा है। यही वजह है कि रैगांव विधानसभा सीट को बीजेपी का गढ़ माना जाता है। पिछले चुनाव में यह सीट बीजेपी के खाते में थी। खंडवा लोकसभा की तरह ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सबसे ज्यादा किसी सीट पर अपना फोकस किया था तो वह यही सीट है। हालांकि कांग्रेस ने इस सीट को जीतने के लिए खास रणनीति तैयार की थी। जिले के मैहर से बीजेपी विधायक नारायण त्रिपाठी ने खुलकर बगावत कर दी है। उन्होंने किसानों से रैगांव सीट पर बीजेपी के खिलाफ वोट देने के लिए कहा था। श्रीनिवास तिवारी और अर्जुन सिंह के बाद नारायण त्रिपाठी की छवि विंध्य क्षेत्र में बड़े नेता के रुप में बन रही है। वे लगातार पृथक विंध्य प्रदेश की मांग करते आ रहे हैं।